हिन्दू,सनातन धर्म में रथयात्रा का है बड़ा महत्व, रथ खिंचने का पुण्य 100 यज्ञ के बराबर
बालोद। ब्लाक के ग्रामीण अंचल निवासी पंडित दानेश्वर प्रसाद मिश्रा ने रथयात्रा के महत्व को बताते हुए कहा कि इस रथ यात्रा को लेकर कई तरह की मान्यताएं हैं। कहा जाता है कि एक दिन भगवान जगन्नाथ की बहन सुभद्रा ने उनसे द्वारका के दर्शन कराने की प्रार्थना की थी। तब भगवान जगन्नाथ ने अपनी बहन की इच्छा पूर्ति के लिए उन्हें रथ में बिठाकर पूरे नगर का भ्रमण करवाया था। इसके बाद से इस रथयात्रा की शुरुआत हुई थी। इस रथ यात्रा के बारे में स्कंद पुराण, नारद पुराण, पद्म पुराण और ब्रह्म पुराण में भी बताया गया है। इसलिए हिंदू सनातन धर्म में इसका विशेष महत्व बताया गया है। हिंदू सनातन धर्म की मान्यताओं के अनुसार, जो भी व्यक्ति इस रथयात्रा में शामिल होकर इस रथ को खींचता है उसे सौ यज्ञ करने के बराबर पुण्य प्राप्त होता है।
यात्रा की शुरुआत सबसे पहले बलभद्र जी के रथ से होती है। उनका रथ तालध्वज के लिए निकलता है। इसके बाद सुभद्रा के पद्म रथ की यात्रा शुरू होती है। सबसे अंत में भक्त भगवान जगन्नाथ जी के रथ ‘नंदी घोष’ को बड़े-बड़े रस्सों की सहायता से खींचना शुरू करते हैं।
रथ यात्रा पूरी कर भगवान जगन्नाथ अपने भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ अपनी मौसी के घर मुख्य मंदिर से ढाई किमी दूर गुंडिचा मंदिर में जाते है। यहां सात दिन रुकने के बाद आठवें दिन फिर मुख्य मंदिर पहुंचते है। कुल नौ दिन का उत्सव पुरी सहित पूरे भारतवर्ष में धूमधाम से मनाया जाता है। बालोद नगर सहित ग्रामीण क्षेत्रों में जगन्नाथ भगवान को समर्पित यह रथ दूज का पर्व 1 जुलाई को मनाया जा रहा है।
1 thought on “हिन्दू,सनातन धर्म में रथयात्रा का है बड़ा महत्व, रथ खिंचने का पुण्य 100 यज्ञ के बराबर”
Comments are closed.