A DIGITAL MEDIA

बालोद जिले (छत्तीसगढ़) का विश्वसनीय डिजिटल मीडिया 9755235270/7440235155

Advertisement

रथ दूज विशेष- छत्तीसगढ़ के इस गांव का ऐसे पड़ा है नाम “जगन्नाथपुर”, रिश्ता है ओडिसा के पुरी और बस्तर के राजा से….

बालोद (छत्तीसगढ़ )। आज ओडिसा के पुरी में विश्व में प्रसिद्ध रथ यात्रा निकलेगी। यह पर्व पूरे संसार भर में अलग-अलग क्षेत्र में अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है। बालोद जिले में भी रथयात्रा मनाने का रिवाज है। पर हम एक ऐसे गांव की कहानी बता रहे हैं जिनका नामकरण ओड़ीसा के पुरी से जुड़ा हुआ है। वैसे तो हर गांव के नाम पड़ने के पीछे कोई ना कोई कहानी छुपी होती है, वैसे ही जगन्नाथपुर गांव का नाम भी खास तरीके से ही पड़ा है। जगन्नाथपुर बालोद से लगभग 12 किमी दूर अर्जुंदा मार्ग पर स्थित है। इस गांव की खास पहचान यहां के प्राचीन शिव मंदिर व अन्य रहस्यात्मक पत्थरों से है। जिनके बारे में अभी भी पुरातत्वविदों को शोध की जरूरत है। इस गांव का नाम कभी “डूआ”हुआ करता था। इसे जगन्नाथपुर की संज्ञा देने के पीछे पुरी की कहानी है। जैसे जगदलपुर में आज भी गोंचा पर्व के तहत रथ दूज (रथ यात्रा)का रिवाज है। जो लगभग 600 सालों से प्रचलित है उसी तरह जगन्नाथपुर का अस्तित्व ग्राम डूआ के नाम से 600 साल पहले से रहा है। इसे डुआ से जगन्नाथपुर बनाने का श्रेय जगदलपुर के राजा पुरषोत्तम देव व रानी कंचन कुंवरी को जाता है। जो ओडिसा पुरी से भगवान जगन्नाथ के दर्शन कर लौट रहे थे तब यहां विश्राम के लिए रुके थे और यहां के माहौल, वातावरण को देखकर उन्होंने इस गांव का नाम जगन्नाथपुर रखा था। तब से यही नाम चला आ रहा है और राजा-रानी के निर्देश के बाद बंजारों व स्थानीय ग्रामीणों के जरिए यहां मंदिर बनाकर शिवलिंग की स्थापना की गई थी। इसके अलावा गणेश व अन्य मूर्तियां भी हैं जो प्राचीन हैं। कुछ रहस्यात्मक पत्थर भी हैं। जिन्हें स्थानीय लोग सुदर्शन पत्थर बोलते हैं। जिसे सहेज कर रखा गया है। इस मंदिर को शासन राज्य संरक्षित स्मारक भी घोषित किया है। भले ही यहां रथ यात्रा आदि जगन्नाथ भगवान से जुड़े कोई आयोजन नही होते लेकिन इस गांव के पीछे पुरी से जुड़ाव ही है। उस समय दो मंदिर बने थे। आज जो एक मंदिर बचा हुआ है उस मंदिर पर नाग नागिन का जो़ड़ा भी विचरण करते हैं। नेवला और सांप एक साथ यहां रहते हैं।

ऐसी है बनावट

मंदिर के ऊपर विष्णु चक्र सुदर्शन आकार का गुंबद भी बना हुआ है इसी मंदिर में सुदर्शन चक्र की तरह दो पत्थर और भी हैं। कहावत है कि जिसमें पहले कोई ग्रामीण स्नान करता तो वह पत्थर तैरते हुए बीच तालाब में ले जा कर डूबा देता था और वापस अपने स्थान पर आ जाता था वह पत्थर आज भी देवालय में रखा हुआ है। हालांकि अब ऐसे चमत्कार नही होते। ये सब किस्से कहानी हैं।

100 एकड़ में फैला है बांध

जनपद सदस्य छगन देशमुख, ग्रामीण दीपक यादव ने बताया बुजुर्गों से सुनी बातों के अनुसार मंदिर बनाते समय उसी जगह एक बड़े तालाब का भी निर्माण 11वीं शताब्दी में किया गया था, उसके बाद सन 1972 में सिंचाई विभाग द्वारा लगभग 100 एकड़ भूमि इसी तालाब से लगा बांध का निर्माण किया गया, इसके साथ ही यह मंदिर आसपास के गांव में प्रतिष्ठित पौराणिक व एक प्राचीन मंदिर के रूप में ग्राम जगन्नाथपुर प्राचीन नाम से जाने जाते है जो कि पुरातत्व विभाग की अनदेखी की वजह से अस्तित्व भी खो रहा है।

तालाब के बीचोबीच दूसरे तट पर होगा हरिद्वार की तर्ज पर शिव शंकर की स्थापना

सरपंच अरुण साहू ने बताया कि वर्तमान में तालाब तट को सुंदरीकरण करने का प्रयास जारी है। जिसके तहत आगामी महाशिवरात्रि तक यहां तालाब के दूसरे तट पर छग की सबसे बड़ी शंकर भगवान की प्रतिमा स्थापित करने का कार्य होगा। जिसमें ग्रामीण चंदा भी कर रहे हैं। तो जन सहयोग और शासन से भी प्राप्त कुछ फंड व मनरेगा से भी कुछ कार्य हो रहे हैं।

ये भी पढ़े

You cannot copy content of this page