November 21, 2024

यादें अतीत की- बालोद में रथयात्रा के जनक माने जाते हैं स्व. पहलवान बीरबल गुरुजी, 1958 से उन्होंने शुरू किया था आयोजन

92 साल की उम्र तक संभालते रहे जिम्मा, आज भी ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व रखता है बालोद की रथ यात्रा

बालोद। बालोद में 2 साल के कोरोना काल के बाद इस बार रथयात्रा निकलेगी। इस बार पर्व धूमधाम से मनाया जाएगा। इसके लिए रथ यात्रा समिति, नगर पालिका प्रशासन, स्थानीय मंदिर समिति और लोगों ने तैयारी कर रखी है। बालोद में रथ यात्रा का ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व भी है। इसके जनक पांडे पारा के रहने वाले स्वर्गीय वीरेंद्र कुमार आर्य उर्फ बीरबल गुरुजी (पहलवान) माने जाते थे। जो जुंगेरा में प्रधान पाठक थे। उम्र के 92 साल के पड़ाव तक वे रथ यात्रा का जिम्मा संभालते थे। फिर जब उनका शरीर जवाब देने लगा तो उन्होंने इसकी जिम्मेदारी नगर पालिका को सौंपी। फिर 2005-06 से नगर पालिका ने रथ यात्रा निकालनी शुरू की और यह तय कर दिया गया जो भी अध्यक्ष होगा वही रथ यात्रा समिति का पदेन अध्यक्ष भी होगा। बालोद शहर में रथयात्रा का इतिहास 1958 से है। विगत 2 वर्ष कोरोना के चलते रथयात्रा नहीं निकल पाई थी। लेकिन पूजा अर्चना पूरे विधि विधान से हुई थी। कपिलेश्वर मंदिर में नगर पालिका अध्यक्ष विकास चोपड़ा सहित अन्य लोगों ने रथ दूज पर्व मना कर खुशहाली की कामना की थी। इस बार रथयात्रा निकलेगी। जिसको लेकर लोगों में पहले से उत्साह चरम पर है।

लोगों से चंदा कर इकट्ठा करते थे चना मूंग और गुड़, जज्बा था बहुत

रथयात्रा के जनक माने जाने वाले बीरबल गुरु जी के परिवार के सदस्य पूर्णानंद आर्य बताते हैं कि वह उनके दादा के छोटे भाई थे। रथ यात्रा के लिए नगर के लोगों से चंदा करते थे ।तथा चना मूंग गुड़ इकट्ठा किया जाता था ताकि सबको प्रसाद मिल सके और जी भर के प्रसाद बांटा जाता था। रथयात्रा का प्रसाद पाने लोग भीड़ के रूप में जुट जाते थे। 1977 के पहले महामाया मंदिर से रथयात्रा निकाली जाती थी फिर इसे कपिलेश्वर मंदिर में शिफ्ट किया गया। कुछ साल तक मोखला मांझी मंदिर और पांडे पारा से भी रथयात्रा निकाली जाती थी।फिलहाल कपिलेश्वर मंदिर से ही स्थाई रूप से रथ यात्रा निकाली जा रही है। रथ यात्रा का सिलसिला शुरू करने के लिए आर्य परिवार का आज भी विशेष नाम है और नगर के सांस्कृतिक संरक्षण के लिए उनके वर्तमान पीढ़ी भी प्रयास कर रही है।

धर्म के नाम पर एक जगह हो इकट्ठा, इस उद्देश्य से शुरू हुई थी रथ यात्रा

परिवार के लोग बताते हैं कि रथयात्रा को बालोद में शुरू करने का खास मकसद था। स्वर्गीय बीरबल गुरु जी उर्फ वीरेंद्र कुमार आर्य की सोच थी कि धार्मिक आयोजन के नाम पर लोग इसी बहाने इकट्ठा हो। अपने रिश्तेदारों को भी आमंत्रित करें। आसपास के गांव के लोग भी यहां पहुंचे और एक अच्छा आपसी भाईचारे व प्रेम का माहौल बने। इसलिए उन्होंने रथ यात्रा की शुरुआत की थी और एक लंबे अरसे तक इसकी जिम्मेदारी संभालते रहे। रथ पहले लकड़ी से बना दो मंजिला तैयार किया गया था। जिसे नगर पालिका अध्यक्ष राकेश यादव के कार्यकाल में रथ यात्रा समिति नगरपालिका को सुपुर्द की गई। उसके बाद फिर लोहे का रथ तैयार किया गया। जिससे आज भी यात्रा निकाली जाती है। 2003 में जब बीरबल गुरुजी आगे जिम्मेदारी नहीं संभाल पा रहे थे क्योंकि उनकी उम्र भी 92 वर्ष हो चली थी इसलिए उन्होंने अपनी जिम्मेदारी नगरपालिका को सौंपी और साथ ही रकम 85000 को भी सुपुर्द किया और कहा था कि यह परंपरा कायम रहनी चाहिए और आज भी यह परंपरा बरकरार है। हर साल रथ दूज पर्व पर नगर में रथयात्रा निकाली जाती है।

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