हलषष्ठी पर बच्चों को सगरी में उतार माताओं ने मांगा दीर्घायु का वरदान
बालोद। जिले भर में माताओं ने अपने बच्चों के लिए दीर्घायु की कामना के साथ हलषष्ठी व्रत का उपवास रखा। इस दौरान जगह-जगह सगरी यानी छोटा तालाब बनाकर पंडित की अगुवाई में पूजा अर्चना की गई। जिन माताओं के बच्चे हैं उन्होंने अपने बच्चों के दीर्घायु की कामना के साथ यह उपवास रखा। तो वही नव विवाहित महिलाओं ने भी संतान सुख के लिए यह व्रत रखा। सगरी में बच्चों को उतारकर उन्हें पैर धुलाने की रस्म भी अदा की गई। बालोद मुख्यालय से 15 किलोमीटर दूर ग्राम खपरी में पंडित दानेश्वर प्रसाद मिश्रा ने हलषष्ठी व्रत कथा का श्रवण कराते हुए बताया कि 17 अगस्त को देश में हिंदू पंचांग के अनुसार हलछठ मनाया जा रहा है। हर साल भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को भगवान श्रीकृष्णजी के बड़े भाई बलराम जी के जन्मोत्सव के उपलक्ष्य में इसे मनाया जाता है। जन्माष्टमी से 2 दिन पहले यानी षष्ठी् के दिन पुत्रवती माताएं और बहनें व्रत करती हैं और अपनी संतान की दीर्घायु की कामना करती हैं। इस पर्व को बलराम जयंती भी कहा जाता है। देश के अलग-अलग हिस्सों में हलषष्ठी को कई अलग-अलग नामों से जाना जाता है। इसे लह्ही छठ, हर छठ, हल छठ, पीन्नी छठ या खमर छठ भी कहा जाता है। बलराम जी का मुख्य शस्त्र हल और मूसल है इसलिए उन्हें हलधर भी कहा जाता है एवं उन्हीं के नाम पर इस पावन पर्व का नाम हल षष्ठी पड़ा है। इस दिन व्रत करने वाली महिलाओं को हल से जोती गई वस्तुएं खाने की मनाही होती है। वहीं इस दिन गाय के दूध, दही और घी का सेवन नहीं किया जाता है।
इस तरह हुई पूजा
हलषष्ठी का व्रत पुत्रवती माताएं और बहनें संतान की खुशहाली एवं दीर्घायु की प्राप्ति के लिए और नवविवाहित स्त्रियां संतानसुख की प्राप्ति के लिए करती हैं। हिन्दू मान्यताओं के अनुसार इस व्रत में इस दिन दूध, घी, सूखे मेवे, लाल चावल आदि का सेवन किया जाता है। हालांकि इस दिन गाय के दूध व दही का सेवन वर्जित है। हलषष्ठी के दिन प्रात: काल स्नान आदि से निवृत्त होकर दीवार पर गोबर से हरछठ चित्र मनाया जाता है। इसमें गणेश-लक्ष्मी, शिव-पार्वती, सूर्य-चंद्रमा, गंगा-जमुना आदि के चित्र बनाए जाते हैं। इसके बाद हरछठ के पास कमल के फूल, छूल के पत्ते व हल्दी से रंगा कपड़ा भी रखें। हलषष्ठी की पूजा में पसहर के चावल, महुआ व दही आदि का प्रसाद चढ़ाया जाता है। इस पूजा में सतनजा यानी कि सात प्रकार का भुना हुआ अनाज चढ़ाया जाता है। इसमें भूने हुए गेहूं, चना, मटर, मक्का, ज्वार, बाजरा, अरहर आदि शामिल होते हैं। इसके बाद हलषष्ठी माता की कथा को पूरी श्रद्धा के साथ सुनने का भी विधान है।
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