सत्संग में बताया गया दर्शन का महत्व , जानिए आखिर धरती को प्रणाम करने का क्या है पौराणिक रहस्य?
बालोद/डौंडीलोहारा । प्रतिदिन की भांति पाटेश्वर धाम के संत राम बालक दास जी द्वारा उनके सीता रसोई संचालन रूप में ऑनलाइन सत्संग का आयोजन 10:00 से 11:00 बजे और दोपहर 1:00 से 2:00 बजे किया गया, इसमें सभी भक्तगण सुंदर सत्संग का आनंद प्राप्त करते हैं और नित्य नए भजनों के साथ प्रस्तुत होते हैं, मधुर संगीत में भजनों के साथ सत्संग की परिचर्चा प्रारंभ होते हुए विभिन्न जिज्ञासाओं को भी बाबा जी द्वारा समाधान प्रदान किया जाता है।
आज की सत्संग परिचर्चा में पुरुषोत्तम अग्रवाल जी ने जिज्ञासा रखी की, प्रातः कर दर्शन का क्या महत्व है उसके पश्चात धरती माता को प्रणाम क्यों किया जाता है, इस भारतीय परंपरा के विषय पर प्रकाश डालते हुए राम बालक दास जी ने अपने प्रेममयी भाव से कहा कि, हमारे हिंदू धर्म और दर्शन में कर दर्शन और धरती माता को प्रणाम का बहुत अधिक महत्व है, ब्रह्म मुहूर्त में उठते ही ‘कर दर्शन’ मंत्र द्वारा किया जाता है, अपने दोनों हाथों को जोड़कर मंत्र, “कराग्रे वसते लक्ष्मी कर मध्ये सरस्वती कर मूले वसते ब्रह्मा प्रभाते कर दर्शनम्” के साथ अपने दिन की शुरुआत करनी चाहिए, कुछ लोग अपने दोनों हाथों को देखते हैं और उसमे स्थित अपनी लकीरों पर विश्वास करते हैं, परंतु जो लकीरे प्रतिदिन बदलती है उस पर कभी भी विश्वास नहीं करना चाहिए ना ही उसके लिए चिंतित होना चाहिए ना ही उसके लिए उत्साहित होना चाहिए, इन दोनों हाथों के दर्शन का महत्व यही है कि हम इन दोनों हाथों से जो पुण्य प्रताप करते हैं परोपकार कार्य करते धार्मिक कार्य करते हैं, वह महत्व रखता है। आप प्रातः कर दर्शन मंत्र के साथ अवश्य रूप से, किसी पूण्य कार्य को करने का संकल्प अपने हृदय में ले। इसी महत्व को कर दर्शन में वर्णित किया गया है, जो लोग इन बदलती हुई लकीरों पर फिर भी विश्वास करते हैं, उनको लकीर का फकीर कहा गया है। अतः अपने कर्मों पर विश्वास करें ना कि अपने हाथों की लकीरों पर, अपने अच्छे कर्मों के द्वारा अपने जीवन को महान बनाइए, इन हाथों के द्वारा किए गए सदकर्मों से आपको आनंद और शांति का भी अनुभव होगा।
कर दर्शन के पश्चात आप धरती माता को प्रणाम “समुद्र वसने देवी पर्वत स्तन मंडले विष्णु पत्नी नमस्तुभयम पाद स्पर्श क्षमस्व मे” मंत्र के साथ उन पर अपने चरण रखने से पूर्ण करें, यह हमारे ऋषि-मुनियों ने परंपरा इसलिए बनाई कि हम धरती को सदा मां के भाव से देखें यदि हमारे देश के ऋषि मुनि ने कर दर्शन धरती मां को प्रणाम दीप जलाना पूजन स्नान प्रणाम सूर्य को प्रणाम करना, तुलसी को जल देना, ब्रह्मा विष्णु महेश्वर देवी देवताओं की पूजा करना प्रकृति के विभिन्न जीव-जंतुओं को पूजना, यदि यह रीति रिवाज नहीं बनाए होते तो आज भारत भी सामान्य सा देश ही होता। इतना महान पवित्र देश ना होता। आध्यात्मिक जगतगुरु देश नहीं बन पाता, लेकिन पाश्चात्य सभ्यता का प्रभाव आज हमारे देश पर होता जा रहा है और बहुत से लोग नास्तिक होते जा रहे हैं यह बहुत ही दुखद है।
दाताराम साहू ने रामचरितमानस की चौपाई जन्म जन्म मुनि यतन……. के भाव को स्पष्ट करने की विनती बाबा जी से की। रामचरित मानस की चौपाइयों के दुइ अर्थी भाव को स्पष्ट करते हुए बाबाजी ने बताया कि गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरितमानस में बहुत से चोपाई ऐसी रचित की है जिनके द्विअर्थीभाव है, इन चौपाई में एक भाव, अंत में राम कहने में नहीं आता या अंत में राम कहो तो नहीं आता या फिर कहना ही नहीं आता बोलना ही नहीं आता, इनमें से किसी भी भाव को आप अपने सप्रसंग रख कर देख सकते हैं, गीता में श्रीकृष्ण भगवान ने कहा भी है कि यह अवस्था तभी आप प्राप्त कर सकते हैं। जब आप अभ्यास और वैराग्य से योग सुलभ हो, उस योग की प्राप्ति आपको कैसे होगी, वह योग प्रतिदिन अभ्यास के रूप में करें तभी होगा। प्रातः काल उठते ही श्रीराम का नाम जपना दिनभर भगवान के नाम का भजन करना है, ह्रदय में उनका सुमिरन करना, सदैव ऐसे सत्संग का आयोजन का हिस्सा बनना, जिसमे श्रीराम के नाम की महिमा का गीत गान लीलाओं का वर्णन हो, तभी जाकर आप अपने मन में श्रीराम के प्रति भाव ला सकेंगे, राम का नाम सुनते ही आपका मन भाव विभोर हो जाए तो अंत समय में राम का नाम आपके मुख पर स्वयं ही आ जाएगा और आपका उद्धार हो जाएगा।