November 21, 2024

स्कूलों में ऐसा हाल- नौकरी के चक्कर में कहीं शिक्षक ही परोस रहे चावल तो गला रहे दाल, इधर सहायक शिक्षक संगठन विरोध में उतरा

शिक्षकों के बाद अब स्व सहायता समूह ने भी खड़े किए मध्यान्ह भोजन पकाने से हाथ

बालोद। रसोइयों को डेढ़ घंटे काम करने के आदेश के बाद 1500 रुपए मानदेय के आधार पर उतना ही काम करने की बात कहते हुए रसोइए भी मनमानी पर उतर आए हैं। तो बच्चों को मध्यान्ह भोजन के अधिकार के चलते उन्हें भोजन पका कर देने की जिम्मेदारी शिक्षकों और स्व सहायता समूह पर आ गई है। अधिकारियों ने इसके लिए स्पष्ट आदेश भी जारी कर दिया है। पर इस आदेश का पालन अलग-अलग स्कूलों में अलग-अलग ढंग स्व देखने को मिल रहा है। हमारी टीम ने विभिन्न स्कूलों में जाकर मंगलवार को मध्यान्ह भोजन की व्यवस्थाओं का जायजा लिया कि रसोइए कैसे आते हैं, कितना काम कर पाते हैं और कितने बजे जाते हैं। कुछ ऐसे भी थे, जहां 3 बजे तक रसोइए रुके थे और पूरा भोजन परोस कर बर्तन धोकर घर लौटे। लेकिन अधिकतर स्कूलों में रसोइए डेढ़ घण्टे के हिसाब से ही काम किए और शिक्षकों को अधूरे कार्य को पूरा करना पड़ा। लेकिन इससे मनमुटाव की स्थिति बन रही। पढ़ाई छोड़ कर शिक्षक कहीं सब्जी तल रहे हैं तो कहीं दाल गल रहे हैं। कोहंगाटोला प्राइमरी स्कूल में शिक्षिका खाना परोसते मिली। तो बालोद के भी कुछ स्कूलों में बच्चों को क्लास रूम में बैठा कर शिक्षक सब्जी परोस रहे थे। खास तौर से महिला शिक्षिकाएं किचन संभाल रही तो परोसने में शिक्षक जुटे हैं। ऐसे में हमने शिक्षक संगठन और स्व सहायता समूह की महिलाओं से भी बातचीत की, कि वे क्या चाहते हैं। दोनों ही इस मुसीबत से खुद को दूर रखना चाह रहे हैं। और भोजन पकाने की जिम्मेदारी को उन पर लादने का विरोध कर रहे हैं । स्व सहायता समूह को जिम्मेदारी सरकार ने दी है पर वह भी हाथ खड़े कर दी है। ऐसे में आने वाले दिनों में बच्चों को नियमित भोजन मिल पाएगा या नहीं? इस बात पर संशय नजर आ रहा है। बालोद में एक स्कूल में मध्यान्ह भोजन चलाने वाली स्व सहायता समूह की सचिव मनीषा योगी का कहना है कि रसोइयों से ही खाना पकाना है लेकिन अब शिक्षक हम पर जिम्मेदारी थोप रहे हैं। हमें इसका एक रुपए भी नहीं मिलता। एक तो हमारा जो भुगतान होता है वह भी नियमित नही रहता है। आंदोलन के बाद भुगतान की व्यवस्था में सुधार तो हुआ है लेकिन रसोइयों का अतिरिक्त भार हम नहीं सहन कर सकते हैं। शासन को इसकी व्यवस्था करनी चाहिए। रसोइए अगर काम नहीं करना चाह रहे हैं तो उनका विकल्प तलाशना चाहिए। ऐसी परिस्थिति में हम भी काम नहीं कर पाएंगे। कुर्मी पारा में रसोइए मंगलवार को 3 बजे तक तो पूरा काम किए हैं। लेकिन वे यह लिखकर भी दे गए हैं कि बुधवार से वे डेढ़ घंटे ही काम करेंगे। इसके बाद जवाबदारी समूह की होगी।

डेढ़ घंटे में सब काम हो जाए संभव नहीं

तो वही यह बात भी समझा जा सकता है कि सैकड़ों बच्चों के लिए खाना बनाना, उन्हें परोसना और बर्तन धोना यह सब महज डेढ़ घंटे में संभव नहीं है। इसमें वक्त लगता है। इसलिए यह आदेश भी अव्यवहारिक लग रहा है ।शिक्षकों का कहना है कि आदेश में संशोधन करना चाहिए या फिर सरकार को रसोइयों के मानदेय बढ़ाने पर भी विचार करना चाहिए। ताकि उनसे समन्वय बनाकर काम कर सके। सरकार रसोइयों की मांग पूरी नहीं कर रही है। वे 12 जुलाई से हड़ताल पर जाने की तैयारी कर बैठे हैं। इधर स्कूलों में स्वीपर भी हड़ताल है। कुल मिलाकर इस परेशानी में बीच में शिक्षक और समूह को पीसना पड़ रहा है।

इधर सहायक शिक्षक संगठन उतरा विरोध में

सरकार और शिक्षा विभाग के अफसरों के इस अजीबोगरीब आदेश से सहायक शिक्षक संगठन विरोध में उतर आया है। इस संगठन के जिलाध्यक्ष देवेंद्र हरमुख ने बताया कि यह आदेश व्यवहारिक नही है। शिक्षक बच्चों को पढ़ाना छोड़ कर क्या खाना बनाएंगे? सरकार को खुद यह समझना चाहिए और आदेश जारी करने से पहले सोचना चाहिए था। यह गलत है। शिक्षकों पर इतना पढ़ाई का बोझ होता है कि उन पर अब खाना बनाने का बोझ भी लादा जा रहा है। जो बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। यह काम स्व सहायता समूह का है। उनसे यह काम करना चाहिए। पर समूह वाले उल्टा शिक्षकों पर जिम्मेदारी थोप रहे हैं। इसका विरोध करते हुए हम कलेक्टर और जिला शिक्षा अधिकारी को ज्ञापन सौंपेंगे। अभी तो बालोद जिले से विरोध शुरू हुआ है। आने वाले दिनों में इसका विरोध पूरे छत्तीसगढ़ स्तर पर किया जाएगा।

क्या है आदेश

डीईओ प्रवास बघेल सहित सभी बीईओ द्वारा आदेश जारी किए गए हैं। जिसमें शासन के आदेश का ही संदर्भ है। रसोइयों को होने वाली विभिन्न परेशानी जैसे आकस्मिक व अन्य कारणों से स्कूल नहीं जा पाते, ऐसी स्थिति में खाना बनाने की जिम्मेदारी किस पर हो, इसको लेकर विशेष आदेश शासन से जारी हुआ है। जिसमें कहा गया कि रसोई अब डेढ़ घंटे ही काम करेंगे। दरअसल में पूरा मामला निर्धारित मानदेय 1500 को बढ़ाने को लेकर है। रसोईए अप्रत्यक्ष रूप से सरकार पर दबाव बना रहे हैं और मानदेय बढ़ाने की मांग कर रहे। सरकार मानदेय ना बढ़ाकर उनके काम के घंटों में कटौती कर रही। सरकार का मानना है कि डेढ़ घंटे में खाना बनाने का काम हो सकता है। पर रसोईए टालमटोल कर रहे हैं और डेढ़ घंटे को अपर्याप्त बताते हुए जितना हो सकता है वहीं तक काम करके स्कूल से घर चले जा रहे हैं। कहीं चावल पकी है तो सब्जी नहीं, कहीं सब्जी पका है तो दाल नहीं गली। ऐसी मुसीबतों के बीच आगे का जिम्मा शिक्षकों और स्व सहायता समूह को संभालना पड़ा है। अब देखने वाली बात होगी ये मुसीबत कब तक रहती है। अधिकारी भी खुद ऐसी स्थिति में व्यवस्था संभालते परेशान हो गए हैं।

शिक्षकों और समूह को है कन्फ्यूजन, किसे मिलेगी राशि?

ब्लॉक की मध्यान्ह भोजन योजना की प्रभारी रजनी वैष्णव का कहना है कि कई जगह रसोईया डेढ़ घंटे ही काम कर रहे हैं। उनकी अनुपस्थिति भी नहीं हो रही है। शासन के आदेश का हवाला देकर डेढ़ घंटे के बाद चले जा रहे हैं। लेकिन इधर बाकी काम शिक्षक भी कर रहे हैं कुछ जगह समूह वाले भी कर रहे। ऐसे में दोनों की ओर से शिकायत व जानकारी पूछी जा रही है कि अगर हम इसका काम करें तो इसकी राशि किसे मिलेगी? दिक्कत तो दोनों को हो रही है। कुछ जगह समूह वाले नहीं पकाने की बात कर रहे तो शिक्षक भी इसे गलत बता रहे हैं। उच्च अधिकारियों के निर्देश व मार्गदर्शन पर आगे की कार्रवाई की जाएगी।

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