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फादर्स डे विशेष- मिलिए इनसे,ये हैं कलयुग के श्रवण कुमार, 8 साल से पिता की आंखें बना बालोद जिले का ये बेटा

बालोद(छत्तीसगढ़) (कंटेंट- सुप्रीत शर्मा/ कमलेश वाधवानी)। हर साल जून महीने के तीसरे रविवार को फादर्स डे मनाया जाता है। ये दिन उस इंसान को समर्पित है जो बेटियों के किंग और बेटों के लिए रोल मॉडल हैं। इस फादर्स डे पर हमने भी जिले में कुछ चुनिंदा पिता- पुत्र की कहानी सामने लाने की कोशिश की। जो दूसरों के लिए उदाहरण है। अक्सर बेटियों के लिए कहते हैं वह पापा की परी है। तो हम उन बेटों के अपने पिता के प्रति प्यार की कहानी को पेश कर रहें जो उन पापा के परिंदे हैं। और इन्हीं के पंखों के सहारे उनके पापा भी हौसले की उड़ान भर रहे हैं। बात करेंगे गुरुर ब्लाक के ग्राम डढारी के दृष्टिहीन पिता विशेषर साहू और उनके पुत्र वीरेंद्र साहू के बारे में । 26 वर्षीय वीरेंद्र साहू प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पुरुर में वैक्सीन परिवहन का कार्य करते हैं। उनके पिता के दोनों आंखों की रोशनी 2013-14 से जा चुकी है। करीब 8 साल से दृष्टिहीन पिता के लिए उनका बेटा ही मानो श्रवण कुमार की भूमिका निभा रहा है । पिता अपनी कल्पनाओं की आंखों से नहीं बल्कि बेटे की आंखों से दुनिया देखते हैं। बचपन में जिस पिता ने अपने बेटे को अपनी गोद में खिलाया, उंगली पकड़कर चलना सिखाया, उनके बाल संवारे, आज वह बेटा भी अपना फर्ज अदा कर रहा है। और अपने दृष्टिहीन पिता का सहारा बन, उनकी सेवा कर रहा है। बच्चों की तरह अपने पिता के बाल सवारना, उनके हाथ पकड़ उन्हें चलना सिखाना, यह सब एक पुत्र भी करता है। वह इसलिए क्योंकि पिता देख नहीं सकते। अचानक से उनकी जिंदगी में अंधेरा सा छा गया। पुत्र वीरेंद्र साहू बताते हैं कि पापा का इलाज करवाने बहुत कोशिश की। कई डॉक्टरों को दिखाया लेकिन सब ने हाथ खड़े कर दिए। कहने लगे कि इनका ऑपरेशन से भी कुछ नहीं हो सकता। फिर तो पिता की हिम्मत भी टूट चुकी थी। लेकिन बेटे ने हौसला बरकरार रखा। पिता कहते थे कि अब तो मेरी आंखें काम की नहीं रही ।अब तुम्हें ही सब संभालना है। बेटा हार मत मानना। उस वक्त वीरेंद्र की उम्र महज 18 साल की थी। 12वीं की पढ़ाई कर रहे थे और कंधे पर उनकी परिवार की ही जिम्मेदारी आ गई। खेती किसानी करने वाले पिता अब 8 साल से घर पर ही हैं। क्योंकि वह दृष्टिहीन होने की वजह से कुछ कर नहीं पाते हैं। ऐसे हालात में जहां बचपन और जवानी के दिन मस्ती में गुजारते आपने आजकल के बेटों को देखा है वहां इस कलयुग में ऐसे श्रवण कुमार रुपी बेटे और पुत्र की कहानी विरले ही हैं। जो समाज के लिए भी उदाहरण पेश करती हैं। वीरेंद्र उनका इकलौता बेटा है। एक बेटी मधु साहू है, जिसकी शादी हो चुकी है। शादी के बाद भी पुत्र और उनकी पत्नी अपने पिता का पूरा ख्याल रखते हैं। उन्हें किसी चीज की कमी नहीं होने देते। पुत्र वीरेंद्र साहू का कहना है कि जब पिता ने आंखों की रोशनी जाने के बाद हिम्मत न हारी तो वे भला कैसे पीछे हटेंगे। इसलिए उन्होंने पिता की हालातों से हार ना मानते हुए अपने हौसले को और मजबूत किया और विपरीत हालातों में भी डटकर मुकाबला करते हुए हैं आगे बढ़ने की हिम्मत दिखाई। और यही वजह है कि इन 8 सालों में दृष्टिहीन पिता का श्रवण कुमार बने रहने में ही उन्हें सुकून मिलता है । उनके पिता का सपना था उनका बेटा पढ़ लिख कर अच्छी नौकरी हासिल करें पर गरीबी और पिता की इन हालातों की वजह से वे ज्यादा आगे नहीं पढ़ पाए और जो काम मिला उसी को संभालते हुए खेती-किसानी के साथ आज प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पुरुर में वैक्सीन परिवहन का कार्य करते हैं। और परिवार की जिम्मेदारी भी निभा रहे हैं। पिता अपने बेटे की आंखों से दुनिया देखते हैं। बेटा उनकी हर जरूरत पूरी करते हैं। कलयुग के बारे में लोग यह कहते हैं कि आज इस समय में कहां बच्चे मां बाप का ख्याल रखते हैं, उनका सहारा कहां बनते हैं लेकिन वीरेंद्र इन बातों को नकारते हैं उनका मानना है कि जिन्होंने हमें इस दुनिया में लाया, जिनकी वजह से हम हैं उनका साथ हमें कभी नहीं छोड़ना चाहिए। माता पिता के ममता और प्यार का कर्ज कभी बच्चे नहीं चुका सकते। उनकी सेवा हमारा पहला धर्म और कर्म होना चाहिए।

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