बिलासपुर। उच्च न्यायालय में स्थित मिडियेशन कमेटी के द्वारा अपनी गतिविधियों से संबंधित प्रथम न्यूज लेटर का प्रकाशन किया गया है, जिसका विमोचन उच्च न्यायालय के कान्फ्रेंस हॉल में माननीय श्री न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा, कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश, छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय, बोदरी, बिलासपुर एवं कार्यपालक अध्यक्ष, छत्तीसगढ़ राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण, बिलासपुर एवं माननीय श्री न्यायमूर्ति मनीन्द्र मोहन श्रीवास्तव, न्यायाधीश, उच्च न्यायालय एवं अध्यक्ष, उच्च न्यायालय किशोर न्याय समिति, माननीय श्री न्यायमूर्ति पी.सैम कोशी, न्यायाधीश, उच्च न्यायालय एवं अध्यक्ष, छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय मेडियेशन सेंटर एवं मध्यस्थता केन्द्रों की निगरानी समिति तथा माननीय श्री न्यायमूर्ति आर.सी.एस. सामंत, न्यायाधीश, उच्च न्यायालय, माननीय श्रीमती न्यायमूर्ति विमला सिंह कपूर, न्यायाधीश, छ.ग. उच्च न्यायालय एवं सदस्य मध्यस्थता केन्द्रों की निगरानी समिति के गरिमामयी उपस्थिति में सम्पन्न हुआ। विमोचन कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए माननीय श्री न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा, कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश, ने कहा कि पुरातन समय से ही मध्यस्थता विभिन्न समूहों और पक्षकारों के बीच विवादों को सुलझाने का एक सशक्त माध्यम रहा है। मध्यस्थता का सर्वोपरि लाभ यह है कि यह किसी निर्णय पर समाप्त नहीं होता जिसमें कि एक पक्ष विजयी होता है और दूसरा पराजीत होता है। सफल मध्यस्थता समाधान पर समाप्त होता है जिसमें दोनों पक्ष विजयी होते हैं। इस प्रकार कानूनी प्रक्रिया सहित सभी के लिये यह एक जीत की स्थिति होती है। यह किसी विशिष्ट प्रकरण को न केवल प्रकरणों की सूची से हटाता है अपितु विवाद को सुलझाने हेतु मध्यस्थत का अनुसरण करने के लिए अन्य लोगों को प्रोत्साहित भी करता है।
कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए न्यायमूर्ति श्री पी.सैम कोशी ने कहा कि छत्तीसगढ़ में पक्षकारों के बीच विवाद को मध्यस्थता के माध्यम से सुलझाने की प्रक्रिया भी अपने शैशव अवस्था में है यह एक ऐसा राज्य है जो कि मुख्य रूप से ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों में है और जहां अशिक्षित और ग्रामीण लोग निवास करते हैं ऐसी स्थिति में विवाद सुलह की ऐसी विधि के बारे में नागरिकों को जागरूक करने में मुख्य भूमिका विधिक समुदाय विशिष्ट रूप से छत्तीसगढ़ राज्य के न्यायाधीशों और अधिवक्ताओं की होती है। विवाद सुलह की प्रक्रिया का संदेश राज्य में चारो ओर प्रकाशित किया जाना होगा और इसमें न्यायालयों में विधि व्यवसाय करने वाले अधिवक्ताओं की मुख्य भूमिका कर्तव्य और जिम्मेदारी है कि मध्यस्थता के क्षेत्र में जागरूकता का प्रकाश फैलायें। कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए माननीय श्री न्यायमूर्ति आरसीएस सामंत ने कहा कि संवैधानिक प्रावधानों में इस बात पर बल दिया गया है कि प्रत्येक क्षेत्राधिकार वाले न्यायालय का कर्तव्य है कि शमनीय प्रकृति के प्रकरणों में पक्षकारों के बीच समझौते को प्रोत्साहित किया जाये और मध्यस्थता वैकल्पिक विवाद समाधान प्रणाली का एक सशक्त माध्यम है।
प्रकाशित न्यूज लेटर में मध्यस्थता प्रक्रिया के संबंध में जानकारी तथा उच्च न्यायालय मध्यस्थता केन्द्र के द्वारा किये गये उल्लेखनीय कार्यो का विवरण सम्मिलित करते हुए प्रकाशन किया गया है तथा प्रदेश के 23 जिला न्यायालयों में मध्यस्थता केन्द्र की जानकारी दी गयी है। मध्यस्थता प्रशिक्षण एवं मध्यस्थता हेतु आवेदन देने की प्रक्रिया के संबंध में भी इसमें जानकारी देते हुए मध्यस्थता के लिए जारी रेफरल जजों के लिए जारी किये गये आवश्यक दिशा निर्देश को भी समाहित किया गया है। उच्च न्यायालय मध्यस्थता केन्द्र के प्रभारी एवं सचिव, मध्यस्थता केन्द्र निगरानी समिति श्री संजय कुमार जायसवाल ने बताया है कि दिनांक 01.01.2019 से 31.10.2020 तक की अवधि में उच्च न्यायालय मध्यस्थता केन्द्र तथा जिला न्यायालयों में स्थित मध्यस्थता केन्द्र द्वारा कुल 1179 प्रकरणों का निराकरण मध्यस्थता के माध्यम से किया गया है। इसके लिये प्रदेश भर में कुल 214 न्यायिक अधिकारियों एवं अधिवक्ताओं को मध्यस्थता का 40 घंटे का प्रशिक्षण दिया गया है। उच्च न्यायालय में 24 अधिवक्ता मीडियेटर के रूप में कार्य कर रहे है।