नवरात्रि विशेष- एक सरस्वती के उपासक शिक्षक ऐसे भी, कोरोना के खतरे में भी आस्था बरकरार रखने खुद बनाई सरस्वती की प्रतिमा, की स्थापना
बालोद। ग्राम नागाडबरी (निपानी) के रहने वाले व गुरूर ब्लॉक के कपरमेटा प्राइमरी स्कूल में पदस्थ शिक्षक किरण कटेन्द्र अपनी विभिन्न कलाओं को लेकर जिले में प्रसिद्ध है। अब अपनी कला को वे सरस्वती के उपासक के रूप में मूर्त रूप दे रहे हैं। दरअसल में नवरात्रि में पंचमी के दिन सरस्वती की स्थापना की जाती है। इस कोरोना काल में इस बार नवरात्रि भी प्रभावित है। लेकिन उन्होंने आस्था को बरकरार रखने व परंपरा को टूटने ना देने के लिए अपने गांव में अपने घर पर खुद से ही सरस्वती की प्रतिमा बनाकर इसकी स्थापना की है। खास बात यह है कि शिक्षक किरण कटेन्द्र गांव में बाल समाज महिला मंडल का संचालन भी 25 साल से करते आ रहे हैं तो उनके द्वारा डंडा नृत्य टीम का नेतृत्व किया जाता है जो कि पूरे छत्तीसगढ़ में विख्यात है।
पिता से विरासत में मिली है यह कलाएं, उन्हीं को आगे बढ़ा रहे
ज्ञात हो कि शिक्षक किरण कटेन्द्र के पिता स्वर्गीय कृष्णा लाल कटेन्द्र एक बड़े कलाकार, चित्रकला और मूर्तिकला में माहिर थे। अपने पिता से उन्हें यह कलाएं विरासत में मिली है।उनकी कलाओं को और ज्यादा निखारकर लोगों के बीच बांट रहे हैं और अन्य बच्चों व लोगों को भी अपनी कला सिखा रहे हैं पिताजी से ही उन्हें विरासत में पेंटिंग, चित्रकला और मूर्तिकला की दक्षता मिली है। जिसको वे शिक्षकीय कार्य से समय निकालकर इसे आगे बढ़ा रहे हैं और नए नए कलाकारों को भी मौका देकर उन्हें इस दिशा में पारंगत कर रहे हैं।
बाल समाज लीला मंडली से निखार रहे बच्चों की प्रतिभा
ज्ञात हो कि बच्चों में छिपी प्रतिभा को निखारने और विभिन्न पर्व पर लीलाओं की परंपरा को बरकरार रखने के लिए ही शिक्षक किरण कटेन्द्र ने गांव में बाल समाज लीला मंडली भी 25 साल से चला रहे हैं। गांव के स्कूली बच्चों को इसमें जोड़ कर उन्हें सांस्कृतिक गतिविधियों में जोड़े रखते हैं। जहां वे रामलीला के अलावा भक्त प्रहलाद की कथा व अन्य लीलाओं व सांस्कृतिक कार्यक्रमों में पारंगत करके उनकी सांस्कृतिक कला को निखार रहे हैं। इतना ही नहीं गांव के बड़े और बुजुर्गों को जोड़ने के लिए उन्होंने डंडा नृत्य टीम का गठन किया और इसका नेतृत्व कर रहे हैं। जो पिछले कुछ सालों से छत्तीसगढ़ में भी चर्चा का विषय बनी हुई है और इस टीम को कला महोत्सव में भी राज्य स्तर पर प्रदर्शन करने का मौका मिला है। तीज त्योहारों और अलग-अलग उत्सव पर अलग-अलग नृत्यों का अपना अलग महत्व होता है इसके अलावा और भी कलाएं होती हैं, जिन्हें आज के इस आधुनिक युग में जानने की जरूरत है, इस बात को समझते हुए शिक्षक किरण कटेन्द्र अपनी कला को निखार ही रहे हैं और दूसरे बच्चों को, नए कलाकारों को मौका देकर उन्हें भी सिखा रहे हैं। ताकि कलाकार की कलाकारी हमेशा जीवंत बनी रहे।
बस्ता मुक्त स्कूल की उन्होंने की थी शुरुआत
ज्ञात हो कि लगभग 4 साल पहले जब बालोद जिले में तत्कालीन कलेक्टर राजेश सिंह राणा पदस्थ थे तो उन्होंने स्कूलों को बस्ता बोझ मुक्त करने की नई पहल शुरू की थी। कलेक्टर की पहल से प्रभावित होकर शिक्षक किरण कटेन्द्र ने भी अपने स्कूल को स्वयं के खर्चे से बस्ता मुक्त किया था। जहां उन्होंने स्वयं रैक, कॉपी ,पेन की व्यवस्था कर बच्चों को बस्ते के बोझ से मुक्त कर एक नई मिसाल पेश की थी। वहीं क्लास को स्मार्ट बनाने के लिए भी स्वयं के खर्चे पर प्रोजेक्टर लगाया था। जहां शैक्षिक फिल्म के जरिए बच्चों को अन्य गतिविधियां सिखाई जाती है। इतना ही नहीं स्कूल में भी वहां के बच्चों को शिक्षक किरण कटेन्द्र पेंटिंग, मूर्तिकला, चित्रकला सिखाते हैं। वर्तमान में स्कूल बंद है फिर भी वह ऑनलाइन तरीकों से बच्चों को जोड़कर यह कलाएं सिखाते आ रहे हैं। स्कूल को सजाने संवारने में भी उनका अहम योगदान रहा है। जिससे कारण कपरमेटा प्राइमरी स्कूल भी एक मॉडल स्कूल के रूप में जाना जाता है। अन्य स्कूल के शिक्षक इस स्कूल का निरीक्षण कर यहां से प्रेरणा लेकर जाते हैं।