पंचमी विशेष- क्या आपको पता है बालोद जिले का ये मंदिर अष्टमी के दिन ही खुलता है महिलाओं के लिए, पढ़िए अनसुनी कहानी
हरिवंश देशमुख,मालीघोरी/ जगन्नाथपुर। आज पंचमी पर हम क्षेत्र के कुछ खास देवी मंदिरों के बारे में बता रहे हैं। जहां पर इस नवरात्रि भी मनोकामना जोत जल रहे हैं। भले भक्त अपने घर पर हैं उन्हें मंदिर जाने की इजाजत नहीं है लेकिन घरों से आराधना हो रही है तो मंदिर में पुजारी भक्तों के नाम से जोत जला रहे हैं। उन मंदिरों की खासियत से यहां भक्तों की भीड़ लगी रहती है हालांकि अभी कोरोना लॉकडाउन के चलते मंदिरों में भक्तों के आने पर पाबंदी है। पर आस्था कम नहीं हुई है। पहले बात कर रहे हैं दुधली के मां दंतेश्वरी मंदिर की। जो हर साल दोनों नवरात्रि के अष्टमी पर महिलाओं के दर्शन के लिए खोला जाता है। बाकी समय सिर्फ साल में एक बार मेले के दिन इसे महिलाओं के लिए खोला जाता है। जो कि प्रति वर्ष छेरछेरा पुन्नी के पहले आने वाले शनिवार को होता है। यानी यूं कहें कि महिलाओं के लिए साल में तीन अवसर पर ही यह मंदिर खोले जाते हैं। इसी खास मान्यताओं के चलते इसकी ख्याति आसपास के कई गांव में फैली हुई है।
12 गांव के बरगहिन के नाम से जाने जाने वाली मां दंतेश्वरी मंदिर दुधली (मालीघोरी) में जोत जवांरा स्थापना की गई है। बताया जाता है कि पहले पूर्वजों के द्वारा जुड़वारो के दिन 12 गांव की लोगों द्वारा हल्दी चावल तेल लेकर दंतेश्वरी प्रांगण में आते थे। 12 गांव के लोग दंतेश्वरी माता से बिना अनुमति के कुछ भी गांव के देवी देवता का काम नहीं करते थे। मंडई के समय पहले 12 गांव के डांग डोरी भी आते थे एवं सिर्फ मंडई एवं दोनों नवरात्रि के अष्टमी के ही दिन महिलाओं के लिए मां दंतेश्वरी मंदिर द्वार खोला जाता है। बाकी समय महिलाओं के लिए प्रवेश वर्जित रहता है एवं प्रत्येक सोमवार एवं गुरुवार को भी मंदिर का द्वार खुलता है लेकिन महिलाओं के लिए प्रवेश वर्जित रहता है।
वफादारी के लिए प्रसिद्ध है कुकुर देव मंदिर , जल रहे जोत
इसी तरह दुधली के ही कुकुर देव मंदिर की वैसे तो देवी मंदिरों में गिनती नहीं आती है लेकिन यहां दोनों नवरात्रि में जोत जलाए जाते हैं तो विशेष अनुष्ठान भी होते हैं । इस मंदिर की खासियत पूरे छत्तीसगढ़ में है। वह इसलिए कि यह कुत्तों की वफादारी के लिए जाना जाता है।
यह अपने आप में एक अनूठा मंदिर है। श्री कुकुर देव शिव मंदिर खपरी (मालीघोरी) में 42 ज्योत स्थापना की गई है। ईस वर्ष करोना काल के दौरान श्रद्धालुओं के लिए मंदिर का द्वार बंद कर दिया गया है। मंदिर दर्शन बाहर से ही कर रहे हैं।
बंजारों की वजह से नाम पड़ा बंजारी, देवी मंदिर में दूर दूर तक के लोग जलाते हैं जोत
इस क्षेत्र के ग्राम जुंगेरा के बंजारी धाम देवी मंदिर की कहानी भी रोचक है। यहां वर्षों पहले बंजारो का ठिकाना होता था। जो रात गुजारने के लिए यहां स्थित बरगद के नीचे ठहरते थे। तो वही बंजारे अपनी बंजारी माता इष्ट देवी की पूजा करते थे। उन्हीं के द्वारा इस जगह पर एक मूर्ति स्थापित की गई थी। जो सदियों से रही और जैसे जैसे लोग उस मूर्ति के बारे में जानने लगे आस्था बढ़ती गई और धीरे-धीरे यहां मंदिर का निर्माण हुआ और आज स्थिति यह है कि इस मंदिर की ख्याति इतनी फैल गई है कि बालोद जिला ही नहीं बल्कि दूसरे जिले के लोग तक भी यहां मनोकामना जोत जलाते हैं और राहगीर तक दर्शन के लिए एक बार जरूर रुकते हैं। बालोद से राजनांदगांव रोड पर सड़क किनारे ही यह मंदिर है। लगातार मंदिर समिति इसके विकास को लेकर भी तत्पर है। वर्तमान में यहां जोत जल रहे हैं। दर्शन पर यहां भी अभी पाबंदी है। क्योंकि लॉकडाउन व कोरोना गाइडलाइंस का यहां भी पालन किया जा रहा है। मंदिर समिति द्वारा नए मंदिर का निर्माण भी किया गया है तो वही हवन कुंड भी बनाया गया है।