लेख: बच्चों में करें सद्गुणों का विकास: बिजेन्द्र सिन्हा, दुर्ग

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मनुष्य विधाता की सर्वश्रेष्ठ रचना है।वह विधाता की सर्वोत्तम अभिव्यक्ति भी है। हमारी संस्कृति में मनुष्य शरीर की काफी महिमा गायी गयी है। स्वस्थ जीवन का महत्व भी बताया गया है।परन्तु मौजूदा परिवेश में स्थिति विपरित प्रतीत होता है। वर्तमान समय में इंसानी जिन्दगी एवं समाजिक परिवेश में कटुता बढ़ रही है। परिवार में संस्कार […]

ईसर-गवरा परब

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(1) ईसर जागे मोर गवारा जागे.. जागे ओ दुनिया लोग।बइगा जागे मोर बइगिन जागे…….।।इस गीत में ईसर – गवरा के साथ-साथ गांव के बईगा सेऊंक और प्रकृति के अद्भुत शक्तियों को जगाने (आह्वान ) के लिए बालाएं गीत का गायन कर रही है। ग्राम की देवी – देवताओं को आमंत्रित कर रहे हैं, देव जोहार […]

राम राज्य से पहले हो प्रेम राज्य

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लेख: बिजेंद्र सिन्हा दुर्ग राम राज्य की चर्चा इन दिनों जोरों पर है परन्तु राम राज्य से पहले प्रेम राज्य होना चाहिए। विद्वानों का मत है कि राम राज्य की स्थापना उसी दिन हो गयी थी जिस दिन श्री राम राजसत्ता वैभव समस्त साधनों सुविधाओं को त्यागकर पथरीली व कंटीली राहों से वन की ओर […]

स्वस्थ भारत का लक्ष्य पूरा हो

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लेख बिजेंद्र सिन्हा दुर्ग समर्थ स्वास्थ्य के आधार पर ही परिवार व समस्त राष्ट्र समर्थ बनता है। हमारी संस्कृति में आरोग्य या उत्तम स्वास्थ्य को धर्म अर्थ काम और मोक्ष का साधन माना गया है ।लेकिन मौजूदा परिवेश में विकृतजीवनशैली व उपभोक्तावाद के कारण नकारात्मक मानसिकता पनपते जा रही है। व्यक्ति में बढ़ते जा रहे […]

।। बरा सोंहारी रांध के पितर मनावत हस।।

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छानी के ओरवाती ल लिप बहार के।पिड़वा के आसन म,लोटा मुखारी डार के।।अब का सुग्घर तोरई फूल चघावत हस।बरा सोंहारी रांध के,पितर मनावत हस।। बासी संग म कभू आमा चानी नइ दे।जियत म एक लोटा,कभू पानी नइ दे।।पांच पसर पानी देके,अब का पुन कमावत हस।बरा सोंहारी रांध के,पितर मनावत हस।। दाई ददा के मया ल,कभू […]

विचार मंथन-7वीं कड़ी

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📚अगर तुम शिक्षित हो तो📚 अगर तुम शिक्षित हो तो ,,भूलकर भाषा की मर्यादाक्यों बड़ों को आंख दिखाते हो।।सीना चौड़ा कर गुस्से में,बिन सोचे,अपनों को ही जाने क्या-क्या कह जाते हो।ये कैसे शिक्षित हो तुम ,कैसे शिक्षित कहलाते हो। अगर तुम शिक्षित हो तो,,भूलकर संस्कृति अपनी, क्यों औरों की चाल अपनाते हों,,ढके हुए तन की […]

आज के कहानी ” माटी के गणेश “

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ए कहानी पांच झन संगवारी के हरे . जे नान नान लइका रीहिस. उकरो इच्छा होय के हमु मन गणेश भगवान मढ़ातेन, फेर गणेश मढ़ाय म बड़ खर्चा आथे. सबों कोई रातकुन गणेश पंडाल ले परसाद झोंके के बाद चंदा अंजोरी म गाड़ा म बईठे सोचत रीहिस अगले बछर हमु मन गणेश मढ़ातेन का??एक झन […]

“हां मैंने सूरज को डूबते देखा है” रचना:कुमारी मौली साहू क्लास दसवी नर्मदा धाम सुरसुली

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हां मैंने सूरज को डुबते देखा हैंतलाब मे खिले उन कमलों को सिकुड़ते देखा है ,चड़िया को अपने घोंसला कि ओर मुड़ते देखा हैहां मैंने सूरज को डुबते देखा है । सुरज को अपनी रोशनी खोते देखा हैचकवा और चकई को रोते देखा हैं,हां मैंने सूरज को डुबते देखा है ॥ इसे देखकर ऐसा प्रतित […]

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