ईसर-गवरा परब
कोई भी लोकपर्व हमारे जनजीवन को सुसंगठित और सुरभित करने की कार्य करती है ।ऐसा ही भारतीय ,प्राचीन देशज सभ्यता और संस्कृति का सुमेल करने वाली महान धार्मिक पर्व है गवरा महोत्सव । संस्कृतियां और पर्व उस परिवेश में रहने वालों की होती है, जो सार्वभौमिक होती है। विशेष रूप से ईसर - गवरा पर्व देश में बसने वाले गोंड जन समुदाय की महान धार्मिक "आदि परब " है ।इस पर्व में वैवाहिक संस्कार सन्निहित है। जो अपने इंद्रधनुषी विलक्षण छटा को "लोकगाथा" के माध्यम से धरती - आकाश में रौशन करता है। जहाँ सृजन की देवी प्रकृति स्वरूपा गवरा है, तो वहीं इस सृष्टि के स्वयंभू (शंभु ) ईसर राजा जनजातियों की आस्था का प्रतीक है । इस पर्व में जीवन दर्शन, प्रकृति वर्णन अभिनंदन विश्व की श्रेष्ठतम जन सांस्कृतिक लोक परंपरा की अनमोल झाँकी की धरोहर समाहित है।
शीत ऋतु का आगमन हो चुका है,खेतों में धान की बालियां झूमने लगें हैं ग्रामीण परिवेश में उगने वाले समस्त प्रकार के मौसमी पुष्प पुष्पित हो चुके हैं जिनकी महक गलियों तक है । प्रकृति के पाँच तत्व - धरती ,आकाश ,अग्नि, वायु, जल को अपनी आस्था का समर्पण किया जाना है दसों दिशाओं को धन्यवाद है । इस सृष्टि की प्राकृतिक शक्तियों का संगम होने जा रहा है राग - रागनियां भाव विभोर होकर प्रकृति की समस्त शक्तियों को जोहार करने के लिए तैयार हो चुकी हैं ,शुरू होता है- गवरा जगार स्वैच्छिक सादगी ढोल, दफड़ा , गुदुम ,झांझ, मंजीरा, मांदरी , टिमकी , बांसुरी मोहरी के साथ आनंद उल्लास से माताएं व बालाएं जगार गीत गाती हैं। गवरा गुड़ी में चले आते हैं ग्रामीण देवी - देवता और होता है भक्ति के साथ शक्तियों का जागरण। आइए इस अलिखित (मौखिक) ईसर- गवरा परब को इन निम्न गीतों के भावों से बाँचते हैं -
(1) ईसर जागे मोर गवारा जागे.. जागे ओ दुनिया लोग।
बइगा जागे मोर बइगिन जागे…….।।
इस गीत में ईसर – गवरा के साथ-साथ गांव के बईगा सेऊंक और प्रकृति के अद्भुत शक्तियों को जगाने (आह्वान ) के लिए बालाएं गीत का गायन कर रही है। ग्राम की देवी – देवताओं को आमंत्रित कर रहे हैं, देव जोहार सेवा सत्कार की भावनाएं प्रलक्षित हो रही है।
(2) जोहर जोहर मोर ठाकुर देवता, सेवारी लागौं मैं तोर -2
हँसा चरथे मोर मूंगा मोती….।
मातृ शक्तियाँ और बालाएं गांव के प्रमुख देवता “ठाकुर देव” को जोहार कर रहे हैं साथ ही हंस पक्षी का उल्लेख गीत में विशेषता के साथ किया गया है। गांव की माता शीतला ,कंकालिन, भूमिहार , साड़हा देव भैंसासुर जैसे विभिन्न देवी- देवताओं को आमंत्रण प्रस्तुत किया गया है।
(3) एक पतरी रइनी-झैइनी, राय रतन ओ गवरा देवी.. तोरे शीतल छाय ..।
गवरा गुड़ी में श्रद्धा के साथ सामूहिक गीत गाकर बालाएं गवरा देवी और उनके सखियों का गुणगान कर रही है। इस गीत में शब्दों का अर्थ और महत्व प्रतिपादित हुआ है ।सात बार चावल चढ़ाकर गवरा माता को कुशल सुख – समृद्धि की मंगल कामनाएं कर रही हैं । पतरी (पात्र )जो समाज का प्रमुख अंग है जिससे अन्न (भोजन)ग्रहण किया जाता है अन्न , धन,तन, हवा, पानी, सर्दी ,गर्मी और शीतल छाया का वर्णन इस गीत में मिलता है ।इस प्रकार से इस गीत में प्रकृति का अभिवादन किया गया है।
(4) देतो दाई -2 दही मोला बासी वो..। अखरा धवन महूं जाहूँ ओ दाई..।
जीवन मूल्यों में कला का अपना अलग ही स्थान है। कला संगीत के शिल्पियों ने भविष्य को ताजमहल के पत्थरों की तरह तराशा है। पूर्व में दही और बासी ग्रामीणों का विशेष भोज रहा है जो शरीर के अंगों को बलिष्ठ, ऊर्जा प्रदान करता है अखरा खेल के गुरु देव बैताल रहे हैं, जो नवजवानों को प्रशिक्षण प्रदान करते थे। इस गीत में युवा अखाड़ा में भाग लेने की अपनी इच्छा जाहिर कर रहा है।
(5) ओबरी -2 नव से ओबरी वो..। जहां डड़ईया ला बाँधे..।
पूरा वातावरण मदहोश हो चुका है ।यहां “डड़इया “एक देवी – देवता है जो उपस्थित किसी न किसी के अंग में प्रवेश कर जाता है और जिसके ऊपर प्रवेश होता है वह उछल उछलकर नृत्य करने लगता है साथ ही उपद्रवी करने लग जाता है। तभी बैगा लोग उसे दंड स्वरूप पैरा रस्सी से साँट मारते हैं हाथ पैर में जलते हुए बाती रखते हैं ।वाद्य यंत्र व वादक भी क्रोधित होकर तीव्र गति से वादन करने लग जाते हैं गायिकाओं का स्वर दंडात्मक होने लगता है।
(6) लाले लाले बरछा लाले हे खंडहार -2..। लाले हे ईसर राजा घोड़वा सवार..।
यह राजा ईसर का वीरता पूर्ण (वीर रस) से श्रृंगारित गीत है, जहां समस्त वेशभूषा लालिमा लिए हुए हैं ।उनका शरीर प्रतीकात्मक रूप से अग्नि की तरह दहक और दमक रहा है, उनका फरसा, तलवार अनियंत्रित होकर चमक रहा है ईसर देव दांतों में लगाम थाम कर घोड़े को तीव्र गति से दौड़ा रहे हैं।
(7) काकर करसा मोर रिगबिग- सिगबिग.. काकर करसा सिंगासन गा भईया..।
गवरा और ईसर की कलशा श्रृंगार पर प्रतिस्पर्धात्मक गीत प्रस्तुत हुआ है। यहां प्रश्नोत्तरी के भाव के साथ राजा रानी की महत्ता को प्रतिपादित किया गया है ,गीत में ईसर- गवरा के दांपत्य जीवन की झांकी स्पष्ट झलक रही है । यहां सारा वातावरण ईसर – गवरामय में हो गया है ।जहां हर कोई ईसर – गवरा के समान जोड़ी बनने की कामना करते हैं।
(8) ढेला ढेलवानी मोर जऊंहर के खेती.. ढेला ल मारे तुषार.। ईसर राजा मोर कार्तिक नहाये धोंती ला मारे तुषार.।
यह एक चुलमाटी, देव माटी गीत है । ईसर – गवरा की प्रतिमा कुंवारी मिट्टी से बनाने का विधान है। जहाँ हल (नागर )नहीं चला हो जो कि अब वह स्थान मजबूत हो चुका है , जहां कुदाली चलाया जाना।इसमें कृषि कार्य को असहज व्यक्त किया गया है। प्रतिमा बनाने के दिन मिट्टी नयी टोकरी, नए कपड़े से ढक कर लाते हैं। बालाएं आते-जाते इस तरह से गीत को लयबद्ध गाती है।
(9) नदिया भीतर के जलहरी टेंगना..। जाही धरे जसमोतिन के अछरा..।
यह जल में रहने वाले मछली को माध्यम बनाकर एक विशिष्ट संस्कारित गीत को ग्रहण योग्य पेश किया गया है। गोंडियन परंपरा में बहते पानी से स्नान करने का विधान है । कार्तिक माह में स्नान को सुखद फलदाई माना गया है ,जो शरीर को निरोग ,स्वस्थ ,समृद्धि प्रदान करने वाली है। इस गीत में पारिवारिक संवेदनाएं अभिव्यक्त की गई हैं ।अपने रिश्तेदारों का मदद सुख और दुख के समय कैसे लिया जा सकता है स्नेह और व्यवहारिकता के शाब्दिक भाव मुखरित किया गया है।
(10) एक पतरी चघायेन गवरी खड़े र अमौसी..। आमच आमा पूजेन गवरी मान जा चौरासी..।
ईसर राजा को पूरी तरह सजा लिए गए हैं ग्रामीण महिलाएं ,पुरुष स्वागत के लिए आतुर है। सखी सहेलियां भी स्वागत गान के लिए तैयार हैं ।फलों का राजा आम जो गुत्थों में फलता है ,काफी रसीला और स्वादिष्ट होता है। इस तरह से बनने की लालसा सभी रखते हैं ईसर राजा मीठे और सुजान है 84 आमों का भाव है ,वही 84 गढ़ 84 जन्म धारण करने की भाव है । गीत का भाव उपमा लिए हुए हैं।
पश्चात अन्य गीतें हैं जो विसर्जन (सगरी नहाए) से संबंधित है। जैसे _ (11) दिमिक दिमिक मोर बाजा बाजत हे.. कंहवा के बाजा तो आय..।।
(12) खोखमा के फूल दाई बड़ निक लगे वो..। टोरी लेतेंव बइंहा लमाये हो लाल..।
इस प्रकार से विज्ञान, भूगोल ,खगोल पराशक्ति, सामाजिक व्यवस्था में “ईसर – गवरा परब “जनजीवन को समृद्ध करने वाली है, जो गृहस्थ जीवन को शिक्षित और प्रशिक्षण प्रदान करती है अपने जीवन के समस्त भूमिकाओं पहलुओं में सृष्टि के जीव जगत के साथ उत्साह से रहने का संदेश देती है।
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मदन मंडावी
ढारा, डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़
मो _7693917210