विश्व पर्यटन दिवस विशेष: बालोद जिले के कोने में बसा है छोटा सा गांव है “ओनाकोना” पर प्रसिद्ध है पूरे छत्तीसगढ़ में
नासिक के त्र्यंबकेश्वर धाम के तर्ज पर बना है यहां मंदिर, गंगरेल के डुबान होने के कारण बढ़ी खूबसूरती, राज्य घर से पहुंचते हैं पर्यटक
दीपक यादव,बालोद । आज 27 सितंबर विश्व पर्यटन दिवस पर हम बालोद जिले के एक कोने में बसे हुए छोटे से गांव ओनाकोना के बारे में बता रहे हैं। जो अब किसी परिचय का मोहताज नहीं है। किसी ने सोचा भी नहीं था कि आज से लगभग 8-10 साल पहले जब यहां पर एक मंदिर का निर्माण कार्य शुरू होगा तो इसकी चर्चा किस तरह से फैलेगी की इस मंदिर के कारण इस गांव को पर्यटन केंद्र के रूप में स्थान मिल जाएगा । बालोद जिले में गुरुर ब्लाक का यह मंदिर अपनी तरह का एक अनूठा मंदिर है। जिसे महाराष्ट्र के नासिक के त्र्यंबकेश्वर धाम की तर्ज पर बनाया जा रहा है। अभी भी मंदिर के भीतर का कुछ कार्य शेष है। क्योंकि यहां मंदिर के बाहरी निर्माण के बाद लगभग 5 से 6 साल हो चुके हैं गर्भ गृह में मूर्ति की स्थापना नहीं हो पाई है। फिर भी इसके बेजोड़ निर्माण से लोग इसे देखने के लिए खींचे चले आते हैं। इस मंदिर का निर्माण ऐसी जगह पर किया गया है जो प्राकृतिक वादियों से भरा पड़ा है। दरअसल में गंगरेल डैम के डुबान के किनारे यह मंदिर है। जहां पर बालोद जिला ही नहीं धमतरी, कांकेर, रायपुर सहित पूरे छत्तीसगढ़ के कई कोने से लोग इस ओना-कोना में घूमने के लिए आते हैं। हर रविवार तो मानो यहां पर्यटकों का मेला जैसा माहौल रहता है। गर्मी की छुट्टी हो या बरसात का मौसम ,12 महीने यहां घूमने आने वाले लोग पहुंचते रहते हैं। लोग यहां पिकनिक मनाते हैं। यही आसपास खाना बनाते हैं तो वही नौका का भी आनंद लेते हैं। गंगरेल डैम के कारण लगभग साल भर इस क्षेत्र में पानी भरा होता है। जिससे लोगों के लिए यह पर्यटन स्थल और भी विशेष हो जाता है।
सर्वधर्म समभाव का संदेश भी देता है मंदिर
मंदिर के दीवारों पर की गई आकर्षक नक्काशी सहित सर्वधर्म समभाव का संदेश देते हुए इसे बनाया गया है। काफी बारीकी से इसका निर्माण किया गया है और जब इस मंदिर का पेंटिंग किया जाएगा तो और इस भव्य रूप मिल सकता है। बिना पेंटिंग के ही इसकी भव्यता देखते ही बनती है। लोग छुट्टी मनाने के लिए यहां परिवार सहित पहुंचते हैं और मंदिर के साथ सेल्फी लेते हैं। यहां तक की छालीवुड के कलाकारों को भी यह मंदिर और आसपास के इलाका आकर्षित कर चुका है। यहां कई फिल्म की शूटिंग और एल्बम भी फिलमाए जा चुके हैं। जिला प्रशासन द्वारा भी समय पर क्षेत्र को बढ़ावा दिया जाता रहा है। समय-समय पर इस गांव के विकास सड़क निर्माण को लेकर भी प्रयास हुए हैं। गांव में बिजली और पानी की पहले काफी समस्या थी। यहां सोलर पैनल से पानी और बिजली की आपूर्ति भी की जा रही है।
नाम के अनुरूप ही कोने में बसा है गांव, पर अब हर कोई जानता है
जैसा कि इस गांव का नाम ओनाकोना है। लेकिन नाम के अनुरूप भले ही ये बालोद जिले के ऐसे कोने में बसा है कि यह मुख्य मार्ग से काफी दूर है। मूल रूप से धमतरी और कांकेर मुख्य मार्ग (नेशनल हाइवे) से राजा राव पठार कर्रेझर के मैदान के बगल से कच्ची रास्ते से होकर यहां पहुंच जाता है। आमतौर पर जो पहली बार यहां पहुंचते हैं रास्ता भटक जाते हैं। लोग पूछते पूछते यहां तक पहुंचते हैं। लेकिन पहली बार आने के बाद वे दोबारा जरूर आते हैं। एक बार यहां घूम कर आने के बाद लोगों का मन नहीं भरता और यहां दोबारा परिवार या दोस्तों के साथ लोग पहुंचते ही हैं।
फूटान परिवार द्वारा किया गया है निर्माण
बता दे कि लगभग 10 साल पहले इस मंदिर का निर्माण किया गया है। हालांकि अभी तक गर्भगृह में शिवलिंग की मूर्ति स्थापित नहीं हो पाई है। धमतरी के एक बिजनेसमैन तीरथ राम फूटान और उनके भाई सूरज फूटान के द्वारा इसे बनाया जा रहा है। प्रकृति प्रेमियों और धार्मिक प्रवृत्ति के लोगों के लिए तो यह भव्य मंदिर एक नायब मंदिर है। जो बालोद जिले में अपनी तरह का अनोखा मंदिर है।
लोगों को त्र्यंबकेश्वर धाम ना जाना पड़े इसलिए किया गया निर्माण
इसे बनाने वाले फूटान परिवार का मकसद भी यही है कि लोग लोगों को नासिक के त्र्यंबकेश्वर धाम में जाने की जरूरत ना पड़े और उसी की तर्ज पर भगवान महादेव के दर्शन इस ओनाकोना गांव में हो सके। उक्त परिवार त्र्यंबकेश्वर धाम से काफी प्रभावित है और भक्तों की श्रद्धा को अपने जिले में ही पूरा करने की कोशिश के साथ उन्होंने यहां मंदिर बनवाया है। लोगों को उस पल का भी बेसब्री से इंतजार है कि जब यहां गर्भगृह में मूर्ति स्थापना हो और यहां पूजा पाठ शुरू हो सके। फिलहाल यह पर्यटन और सेल्फी प्वाइंट बना हुआ है। यह मंदिर स्थापत्य कला का बेजोड़ उदाहरण है।