बालोद /डौंडी लोहारा । हिन्दी दिवस के अवसर पर मधुर साहित्य परिषद की विचार गोष्ठी दंतेश्वरी मंदिर परिसर डौंडी लोहारा में संपन्न हुई। चर्चा का विषय” हिन्दी भाषा का वर्तमान स्वरूप” पर साहित्यकारों ने अपने विचार रखे। गोष्ठी की शुरुआत माता दंतेश्वरी की पूजन वंदन से हुई। विचार रखने से पहले बालोद जिले के वरिष्ठ साहित्यकार विश्राम सिंह चंद्राकर एवं तुलसी राम महमल्ला को भावभीनी श्रद्धांजलि दी गई, उनके साहित्यिक कृतित्व एवं व्यक्तित्व पर पर प्रकाश डाला गया।
विचार की कड़ी में मधुर साहित्य परिषद जिला बालोद के अध्यक्ष एवं छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग के जिला समन्वयक डॉ.अशोक आकाश ने कहा ” हिंदी के अंक प्रणाली को बदलकर आंग्ल के अंक को अपनाया जाना खेद पूर्ण बदलाव है। हिन्दी के वर्तमान स्वरूप में बदलाव पर बात रखते कहा – वर्तमान पीढ़ी वैदिक अंक से अनभिज्ञ हैं सरकार ने हिन्दी के अंकों को पाठ्यक्रम से विलुप्त कर दिया गया है, इससे हिन्दी भाषा लंगड़ी होती दिख रही है। सरकारी कामकाज एवं पाठ्यक्रम का अंग्रेजीकरण के परिणामस्वरूप आज की पीढ़ी की हिंदी लेखन में वर्तनी विकृतियां मिल रही है। आजकल लोग मोबाइल में अंग्रेजी के वर्णों का उपयोग कर हिंदी के उच्चारण वाले शब्द लिख रहे हैं। यह हिंदी भाषा का अपमान है। यह हम सब के लिए विचारणीय विषय है। हमें हिंदी भाषा के संवर्धन के लिए उत्कृष्ट कार्य करने की आवश्यकता है।”
मधुर साहित्य परिषद इकाई डौंडी लोहारा के अध्यक्ष कन्हैया लाल बारले ने हिन्दी भाषा की उत्कृष्टता व विशेषताओं का बखान करते हुए कहा ” दिवस श्रेष्ठ का ही मनाया जाता है कमजोर का नहीं । हमारी हिंदी भाषा विश्व में बोली जाने वाली अग्रणी भाषाओं में से एक है। हिंदी ही वह भाषा है जिनके बदौलत हमारा महान राष्ट्र एकता के सूत्र में बंधे हुए हैं। इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें अपने अंदर अन्य भाषाओं को समाहित करने की शक्ति है। हिंदी इतना विशाल है कि अन्य बोली भाषा नदिया हैं तो हिन्दी महानदी है । आज हिंदी का जो स्वरूप देख रहे हैं वह इन्हीं विशेषताओं का नतीजा है जिसे हमें खुशी-खुशी अपनाना चाहिए ।”
कोबा के लालेश्वर अरुणाभ ने कहा ,”हिंदी पर अन्य भाषाओं का दखल उन्हें घुन की तरह खोखला बना रहा है ।
कवियत्री हर्षा देवांगन ने कहा कि हमारे भारत देश को स्वतंत्र हुए 77 वर्ष हो चुके हैं । हिंदी को राष्ट्रभाषा की दर्जा मिला है परंतु कार्यालयीन कार्यों में हिंदी का उपयोग नाम मात्र होता है। बैंक, बीमा के दस्तावेज अंग्रेजी में प्रचलित है । यह चिंता का विषय है । उन्होंने विचार के अंत में हिंदी को मान देती कविता पढ़ी।
हम हिंदू है हिंद की पहचान है हिन्दी ।
हर भारत वासियों की शान है हिन्दी।
देवरी बंगला के अजय कुमार चौहान ने अपनी कविता में हिंदी को संस्कृत की बेटी कहा।
मां भारती के माथे की बिंदी,
संस्कृत की बेटी है हिंदी।
संबलपुर से आए वीरेंद्र कुमार अजनबी ने हमारे हिंदी भाषी राष्ट्र में जो व्यक्ति हिंदी नहीं बोलता व नहीं समझता उसे गूंगा की संज्ञा दे डाला, उन्होंने अपने दक्षिण भारत यात्रा के दौरान मिले अनुभव के आधार पर हिंदी का उपयोग वहां नाम मात्र का होना बताया। वे हिंदी को सभी भाषाओं से ऊपर बताती कविता पढ़ी।
बहुत मीठी है बहुत प्यारी है।
सारी भाषाओं की दुलारी है।
जैसे मां की माथे में बिंदी सजती है।
वैसे सबसे ऊपर हमारी हिंदी रहती है।
रायपुर निवासी जन कवि देवनारायण नगरिहा ने अपनी हिंदी कविता के माध्यम से हिंदी भाषा का गुणगान किया।
कार्यक्रम का संचालन विरेंद्र अजनबी ने किया।
कन्हैया लाल बारले द्वारा आभार प्रदर्शन पश्चात गोष्ठी समापन की घोषणा हुई।