शिक्षा को लेकर “असर” की रिपोर्ट जारी, पढ़िए कोरोना काल में किस तरह पड़ा प्रभाव, छग सहित देश में आया क्या बदलाव?
बालोद/छत्तीसगढ़।सोलहवीं ऐन्यूअल स्टैटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट (ग्रामीण) 2021 को 17 नवंबर 2021 को ऑनलाइन जारी किया गया
असर 2021 की रिपोर्ट आज एक ऑनलाइन कार्यक्रम में जारी की गई। यह असर की सोलहवीं वार्षिक रिपोर्ट है।
2005 से 2014 तक प्रत्येक वर्ष, और फिर 2018 तक हर वैकल्पिक वर्ष में, असर ने ग्रामीण भारत के 5-16 आयु वर्ग के बच्चों की स्कूली शिक्षा की स्थिति और बुनियादी पढ़ने और गणित की क्षमता पर आंकड़े प्रस्तुत किए है।
पिछले वर्ष, COVID-19 महामारी ने इस फील्ड कार्य को असंभव बना दिया। लेकिन मार्च 2020 से महामारी के चलते विद्यालय बंद होने के कारण विद्यालयों, परिवारों और बच्चों पर हुए प्रभाव को समझना महत्वपूर्ण था। इस प्रभाव पर राष्ट्रीय स्तर के डाटा की आवश्यकता को पूरा करने के लिए, असर ने 2020 में एक बिलकुल नए डिज़ाइन का फोन-आधारित सर्वेक्षण विकसित किया। इस सर्वेक्षण के मध्यम से असर ने यह जानने की कोशिश की कि बच्चे इस समय में कैसे पढ़ रहे हैं?
इस वर्ष भी महामारी के कारण राष्ट्रीय स्तर पर गाँव-गाँव जाकर सर्वेक्षण करना संभव नहीं था। इसलिए, असर 2021 भी एक फ़ोन-आधारित सर्वेक्षण के रूप में किया गया। पहले लॉकडाउन के अठारह महीने बाद, सितंबर-अक्टूबर 2021 में संचालित इस सर्वेक्षण ने यह पता लगाया गया कि महामारी की शुरुआत के बाद से 5-16 आयु वर्ग के बच्चे घर पर कैसे पढ़ रहे हैं, और विभिन्न राज्यों में अब विद्यालय खुलने पर परिवारों और विद्यालयों को किन चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा हैं।
असर 2021 देश के 25 राज्यों और 3 केंद्र शासित प्रदेशों में संचालित किया गया। यह सर्वेक्षण देश में कुल 76,706 घरों के 5-16 आयु वर्ग के 75,234 बच्चों तक पहुंच पाया। साथ ही, असर ने 7,299 प्राथमिक कक्षाओं वाले सरकारी स्कूलों के शिक्षकों या मुख्य अध्यापकों के साथ टेलीफोनिक बातचीत कर जानकारी एकत्रित किया गया| छत्तीसगढ़ में इस सर्वेक्षण 1561 घरों के 5-16 आयुवर्ग के 1630 बच्चें शामिल हुए|
असर 2021 के निष्कर्ष:
विद्यालय नामांकन में बदलाव
असर 2021, 2020 और 2018 के नामांकन के आंकड़ों यह दर्शाते है कि:
राष्ट्रीय स्तर पर बच्चों का नामांकन निजी से सरकारी स्कूलों की ओर बढ़ रहा है: 6-14 आयु वर्ग के बच्चों का निजी स्कूलों में नामांकन 2018 में 32.5% से घटकर, 2021 में 24.4% हो गया है। यह बदलाव सभी कक्षाओं के बच्चों, और लड़कों और लड़कियों दोनों के लिए दिख रहा है। हालांकि, अभी भी लड़कियों की तुलना में ज़्यादा लड़के निजी स्कूलों में नामांकित हैं।
छत्तीसगढ़ में बच्चों का नामांकन आयुवर्ग 6-14 वर्ष में 2020 के तुलना में 2021 में सरकारी स्कूलों में नामांकन बढ़ा है| वर्ष 2020 में जहाँ 67% बच्चें सरकारी स्कूलों में नामांकित थे, वही 2021 में यह बढ़कर 72.9% हो गया है|
6-14 आयु वर्ग के अनामांकित बच्चों के अनुपात में कोई बदलाव नहीं: 2018 में अनामांकित बच्चों का अनुपात 1.4% था, जो कि 2020 में बढ़कर 4.6% हो गया था। यह अनुपात 2021 में अपरिवर्तित रहा।
स्कूल में बड़ी उम्र के बच्चों की संख्या में बढ़ोतरी: 15-16 आयु वर्ग के बच्चों का सरकारी स्कूल में नामांकन का आंकड़ा 2018 में 57.4% से बढ़कर 2021 में 67.4% हो गया है। इस बदलाव के दो मुख्या कारण है – पहला कि इस आयु वर्ग के अनामांकित बच्चों का अनुपात 2018 में 12.1% से घटकर 2021 में 6.6% हो गया है, और दूसरा कि निजी स्कूलों के नामांकन में भी गिरावट दर्ज हुई है।
राज्य स्तर पर नामांकन के आंकड़ों में काफी भिन्नताएं हैं। सरकारी स्कूलों में नामांकन में राष्ट्रीय वृद्धि उत्तर प्रदेश, राजस्थान, पंजाब और हरियाणा जैसे उत्तर भारत के बड़े राज्यों और महाराष्ट्र, तमिल नाडु, केरल और आंध्र प्रदेश जैसे दक्षिण भारत के राज्यों के कारण हुई है। इसके विपरीत, कई उत्तर-पूर्वी राज्यों में, सरकारी स्कूलों के नामांकन में गिरावट आई है, और अनामांकित बच्चों के अनुपात में वृद्धि हुई है।
समय ही बताएगा कि यह आंकड़े ग्रामीण भारत में स्कूलों का एक स्थायी पहलू बनेंगे या विभिन्न राज्यों में स्कूलों के खुलने के साथ पुनः पहले जैसे हो जाएंगे।
ट्यूशन
असर सर्वेक्षण नियमित रूप से बच्चों द्वारा शुल्क देकर ली जाने वाली निजी ट्यूशन क्लास पर डाटा एकत्रित करता है।
ट्यूशन लेने वाले बच्चों में वृद्धि: राष्ट्रीय स्तर पर, 2018 में, 30% से कम बच्चे निजी ट्यूशन कक्षाएं लेते थे। 2021 में यह अनुपात बढ़कर लगभग 40% हो गया है। यह अनुपात दोनों लड़के और लड़कियों, सभी कक्षाओं और दोनों सरकारी और निजी स्कूलों में जाने वाले बच्चों के लिए बढ़ा है।
ट्यूशन में सबसे अधिक वृद्धि आर्थिक रूप से वंचित वर्ग में: आर्थिक स्थिति के लिए माता-पिता की शिक्षा के स्तर को प्रॉक्सी मानते हुए, कम पढ़े-लिखे (प्राथमिक शिक्षा या कम) माता-पिता के बच्चों में ट्यूशन लेने के अनुपात में 12.6 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जबकि अधिक पढ़े-लिखे (कक्षा 9 या अधिक) माता-पिता के बच्चों में यह वृद्धि 7.2 प्रतिशत की है।
जिन बच्चों के स्कूल खुल गए हैं, वे कम ट्यूशन ले रहे हैं: स्कूल फिर से खुलने की स्थिति के अनुसार ट्यूशन लेने वाले बच्चों के अनुपात में कुछ अंतर दिखता है। ट्यूशन क्लास उन बच्चों में अधिक प्रचलित पाए गए जिनके स्कूल सर्वेक्षण के दौरान बंद थे।
देश भर में ट्यूशन में बढ़ोतरी: केरल को छोड़कर सभी राज्यों में ट्यूशन में वृद्धि हुई है।
छत्तीसगढ़ में देश के अन्य राज्यों में तुलना में बच्चों को ट्यूशन भेजने का चलन कम है| वर्ष 2018 में जहाँ मात्र 3.6% नामांकित बच्चें ट्यूशन प्राप्त करते थे, वह 2021 में बढ़कर 12.5% हो गया है| इस प्रकार छत्तीसगढ़ में भी अब बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने बढ़ रहा है|
स्मार्टफ़ोन की उपलब्धि
पिछले वर्ष स्कूल बंद होने के बाद जब सभी शैक्षिक प्रक्रियाएं ऑनलाइन होने लगी, तब स्मार्टफ़ोन शिक्षण का प्रमुख स्त्रोत बन गया। इससे सबसे वंचित वर्ग के बच्चों के पीछे छूट जाने की संभावना दिखने लगी।
2018 की तुलना में लगभग दुगने घरों में स्मार्टफ़ोन उपलब्ध: स्मार्टफ़ोन की उपलब्धि 2018 में 36.5% से बढ़कर 2021 में 67.6% हो गई है। लेकिन सरकारी विद्यालय जाने वाले बच्चों की अपेक्षा (63.7%) निजी विद्यालय के ज़्यादा बच्चों के पास स्मार्टफ़ोन उबलब्ध हैं (79%)।
अन्य राज्यों की तुलना में छत्तीसगढ़ में स्मार्टफोन की उपलब्धता काफी अच्छी है| वर्ष 2018 में 72.7% घरों में स्मार्टफोन था, वह 2021 में बढ़कर 81.6% हो गया है| जिसमें से लगभग 67% बच्चें पढ़ाई हेतु स्मार्टफोन का उपयोग करते है|
घर की आर्थिक स्थिति से स्मार्टफ़ोन की उपलब्धि पर असर होता है: जैसे ही माता-पिता के शिक्षा ला स्तर (जो घर की आर्थिक स्थिति का प्रॉक्सी है) बढ़ता है, वैसे ही घर पर स्मार्टफ़ोन उपलब्ध होने की संभावना बढ़ जाती है। 2021 में ऐसे 80% बच्चों के पास स्मार्टफ़ोन उपलब्ध है जिनके माता-पिता कक्षा 9 से अधिक पढ़े-लिखे हैं। इसकी तुलना में केवल 50% ऐसे बच्चों के पास स्मार्टफ़ोन उपलब्ध है जिनके माता-पिता कक्षा 5 से कम पढ़े-लिखे हैं। लेकिन, जिन बच्चों के माता-पिता कम पढ़े-लिखे हैं, उनमें भी लगभग एक चौथाई से अधिक बच्चों की पढ़ाई के लिए मार्च 2020 के बाद एक नया स्मार्टफोन खरीदा गया।
स्मार्टफ़ोन होने के बाद भी बच्चों के उपयोग के लिए उपलब्ध नहीं है: हाँलाकि नामांकित सभी बच्चों में से दो तिहाई से अधिक बच्चों के पास घर पर स्मार्टफ़ोन (67.6%) हैं, इनमें से लगभग एक चौथाई (26.1%) ऐसे बच्चे हैं जिनके लिए यह स्मार्टफ़ोन उपयोग के लिए उपलब्ध नहीं है। इसमें कक्षावार देखने पर यह स्पष्ट होता है कि छोटी कक्षा में पढ़ने वाले बच्चों की अपेक्षा उच्च कक्षा में पढ़ने वाले ज़्यादा बच्चों के पास स्मार्टफ़ोन उपयोग के लिए उपलब्ध हैं।
छत्तीसगढ़ में भी एक तिहाई(33.1%) बच्चें ऐसे है जिनके घरों में तो स्मार्टफोन है, किन्तु बच्चों के उपयोग हेतु उपलब्ध नहीं है|
घर में बच्चों को पढ़ाई में सहयोग
असर 2021 में, असर 2020 में पूछे गए कुछ प्रश्न दोबारा पूछे गए – कि क्या बच्चे को घर पर पढ़ने में सहयोग मिलता है और यदि मिलता है तो यह सहयोग कौन देता है।
पिछले एक वर्ष में घर पर बच्चों को पढ़ाई में मिलने वाला सहयोग कम हुआ है: घर पर पढ़ने में सहयोग मिलने वाले नामांकित बच्चों का अनुपात 2020 में तीन चौथाई से घटकर 2021 में दो तिहाई हो गया है। सहयोग में सबसे ज़्यादा गिरावट उच्च कक्षा (कक्षा 9 या अधिक) के बच्चों के लिए आई है।
छत्तीसगढ़ में 83.1% बच्चों को पालको का पढ़ाई हेतु काफी अच्छा सहयोग मिल रहा है, जो कि राष्ट्रीय औसत(66.6%) से अधिक है| निजी स्कूलों में नामांकित बच्चों (90.8%) की तुलना में सरकारी स्कूलों में नामांकित बच्चों (80.7%) को घर में कम सहयोग मिल रहा है|
विद्यालय खुलने के साथ घर पर सहयोग कम हो रहा है: दोनों सरकारी और निजी विद्यालय जाने वाले बच्चों में, जिन बच्चों के विद्यालय खुल गए है, उनको घर से कम सहयोग मिल रहा है। उदाहरण के लिए, जो निजी विद्यालय नहीं खुले है, उनमें जाने वाले 75.6% बच्चों को पढ़ने में सहयोग मिलता है। इसकी तुलना में खुले हुए निजी विद्यालयों में जाने वाले 70.4% बच्चों को यह मदद मिलती है।
शैक्षिक सामग्री की उपलब्धि
असर 2021 में, असर 2020 में पूछे गए कुछ प्रश्न दोबारा पूछे गए – कि क्या बच्चों के पास उनकी वर्तमान में नामांकित कक्षा की पाठ्यपुस्तकें हैं और क्या उन्हें सर्वेक्षण से पहले वाले सप्ताह में अपने विद्यालय के शिक्षकों से कोई अतिरिक्त सामग्री प्राप्त हुई हैं। इसमें प्रिन्ट या वर्चुअल रूप में वर्कशीट जैसी सामग्री, ऑनलाइन या रिकॉर्ड की गई कक्षाएँ, और विडिओ या फ़ोन से भेजी गई अन्य गतिविधियों शामिल हैं। जिन बच्चों के स्कूल खुल गए हैं, उनके लिए इसमें विद्यालय द्वारा दिया गया गृहकार्य भी शामिल है।
लगभग सभी बच्चों के पास पाठ्यपुस्तकें है: लगभग सभी नामांकित बच्चों के पास अपनी वर्तमान कक्षा की पाठ्यपुस्तकें हैं (91.9%)। दोनों सरकारी और निजी विद्यालयों के बच्चों के लिए यह अनुपात पिछले वर्ष की तुलना में बढ़ गया है।
छत्तीसगढ़ में कोरोना काल के विपरीत परिस्थियों के बावजूद भी 96.1% बच्चों के पास उनके कक्षा की पाठ्यपुस्तकें उपलब्ध मिले| जो कि कोरोना काल में बच्चों के घर में पढ़ाई में उपयोगी साबित हो सकता है| जिसमें सरकारी स्कूल में नामांकित 97% बच्चों तथा निजी स्कूल में नामांकित 93.4% बच्चों के पास उनकी कक्षा की पाठ्यपुस्तक थी| जो यह दर्शाता है, कि निजी स्कूल की तुलना में सरकारी स्कूलों के बच्चों के पास पाठ्यपुस्तक की उपलब्धता अधिक थी|
अतिरिक्त शैक्षिक सामग्री की प्राप्ति में थोड़ी बढ़ोतरी: जिन नामांकित बच्चों के विद्यालय नहीं खुले हैं, उनमें से 39.8% बच्चों को सर्वेक्षण के पिछले सप्ताह में अपने शिक्षक द्वारा किसी प्रकार की शैक्षिक सामग्री या गतिविधियाँ (पाठ्यपुस्तकों के अलावा) प्राप्त हुई। इसमें पिछले वर्ष की तुलना में थोड़ी बढ़ोतरी हुई है, जब यह अनुपात 35.6% था।
पुनः खुल चुके विद्यालयों में ज़्यादा बच्चों को शैक्षिक सामग्री मिली: सर्वेक्षण के पिछले एक सप्ताह में, जिन बच्चों के विद्यालय खुल गए है, उनमें से 46.4% को शैक्षिक सामग्री मिली थी। जिन बच्चों के विद्यालय नहीं खुले थे, उनमें यह अनुपात 39.8% है। यह मुख्य रूप से खुले हुए विद्यालयों में गृहकार्य मिलने के कारण है।
नीतिगत निष्कर्ष
जब 18 महीने बंद रहने के बाद स्कूल फिर से खुल रहे हैं, तो इनके बंद होने के प्रभाव को समझना आवश्यक है ताकि इनसे उभरने वाले मुद्दों के समाधान के लिए नीतियां बनाई जा सकें। असर 2021 से कुछ व्यापक नीतिगत निष्कर्ष इस प्रकार हैं:
नामांकन: सरकारी विद्यालयों के नामांकन में पिछले दो वर्षों में बढ़ोतरी हुई है। इसके लिए सरकारी विद्यालयों और शिक्षकों को तैयार करने की आवश्यकता हैं।
परिवार द्वारा बच्चों की पढ़ाई में सहयोग पर काम करना: विद्यालय खुलने के साथ बच्चों को मिलने वाला पारिवारिक सहयोग 2020 से कम हो गया है, लेकिन यह विशेष रूप से प्राथमिक कक्षाओं के लिए अभी भी महत्वपूर्ण है। शिक्षा की योजनाएँ बनाते समय बच्चों की शिक्षा में माता-पिता की भागीदारी को ध्यान में रखना चाहिए, जैसा की राष्ट्रीय शिक्षा नीति में उल्लेखित है। माता-पिता के साथ विचार-विमश यह समझने के लिए आवश्यक है कि वे अपने बच्चों की कैसे मदद कर सकते हैं।
“हाइब्रिड” लर्निंग: बच्चे घर पर तरह-तरह की गतिविधियाँ कर रहे हैं; इनमें से कई गतिविधियाँ विद्यालयों के साथ-साथ परिवार के सदस्य और निजी ट्यूशन शिक्षकों द्वारा भी कराई जा रही हैं। “हाइब्रिड” लर्निंग के प्रभावी तरीकों को विकसित करने की आवश्यकता है, ताकि बच्चों को पढ़ाने के आम और नए तरीकों को साथ में लागू किया जा सकें।
ट्यूशन: निजी ट्यूशन जाने वाले बच्चों का अनुपात 2018 से स्कूल बंद होने की अनिश्चित्ता के दौरान बढ़ गया है। यह ट्यूशन का खर्च उठा पाने वाले और न उठा पाने वाले बच्चों के बीच अंतराल बढ़ा सकता है।
“डिजिटल डिवाइड” को हटाना: अपेक्षित रूप से ऐसे बच्चों की शिक्षा पर ज़्यादा प्रभाव पड़ा है जिनके परिवारों का शैक्षिक स्तर कम था और जिनके पास स्मार्टफ़ोन जैसे संसाधन भी नहीं थे। इन घरों में भी प्रयास किया हुआ नज़र आता हैं: जैसे कि माता-पिता विशेष रूप से अपने बच्चों की शिक्षा के लिए स्मार्टफ़ोन खरीद रहे हैं। इन बच्चों को फिर भी विद्यालय खुलने पर दूसरे बच्चों की अपेक्षा अधिक सहयोग की आवश्यकता होगी।
स्मार्टफ़ोन की उपलब्धि: असर 2021 इस बात को दर्शाता है कि परिवार में स्मार्टफ़ोन होने पर भी वह अक्सर बच्चों के उपयोग के लिए उपलब्ध नहीं होता। भविष्य में बनाई जाने वाली डिजिटल सामग्री और रिमोट लर्निंग की योजनाओं में इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए।