November 22, 2024

गीता जयंती पर बालोद में 200 से ज्यादा लोगों को विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल ने भेंट किया गीता पुस्तिका

बालोद। विश्व हिंदू परिषद बजरंग दल द्वारा गीता जयंती के अवसर पर बालोद शहर के नागरिकों को भेंट स्वरूप श्रीमद् भागवत गीता दिया गया और श्रीमद् भागवत गीता में दिए गए निर्देश को अपने जीवन में उतारने को कहा गया ।बालोद जिला विश्व हिंदू परिषद के धर्माचार्य विनोद गिरी गोस्वामी के मार्गदर्शन में गीता जयंती के दिन विश्व हिंदू परिषद बजरंग दल द्वारा लोगों को श्रीमद्भागवत गीता का वितरण किया गया। ऐसा करते हुए सनातन धर्म के महत्व को बताया गया। सनातन धर्म आदिकाल से है अभी लगभग 5124 वर्ष कलयुग का चल रहा है श्रीमद्भागवत गीता वितरण करने में विशेष सहयोग यूके जेंट्स पार्लर सदर रोड दुबे कांप्लेक्स प्रो उमेश कुमार सेन का रहा। गीता वितरण में जुटे महेंद्र सोनवानी मोनू विश्व हिंदू परिषद जिला बालोद ने कहा मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को गीता जयंती मनाई जाती है। ब्रह्मपुराण के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को दिया था। इसलिए इस दिन को गीता जयंती के रूप में मनाया जाता है। श्रीमद्भगवद् गीता का मानव जीवन के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। गीता के उपदेश मनुष्य को जीवन की वास्तविकताओं से अवगत करवाता है। उन्हें निस्वार्थ रूप से कर्म करने के लिए प्रेरित करता है। इन्हें कर्तव्यपरायण बनाता है। सबसे अहम बात यह भी है कि जब भी आप किसी भी तरह की शंका में घिरे हों, गीता का अध्ययन करें आपका उचित मार्गदर्शन अवश्य होगा।


इसके अध्ययन, श्रवण, मनन-चिंतन से जीवन में श्रेष्ठता का भाव आता है। गीता का संदेश वो मूल मंत्र हैं जिन्हें हर कोई अपने जीवन में आत्मसात कर पूरी मानवता का कल्याण कर सकता है। गीता अज्ञानता के अंधकार को मिटाकर आत्मज्ञान से भीतर को रोशन करती है। गीता अज्ञान, दुख, मोह, क्रोध, काम, लोभ आदि से मुक्ति का मार्ग बताती है। सतीश विश्वकर्मा जिला विश्व हिंदू परिषद बालोद ने कहा गीता के सात सौ श्लोक में पूरे जीवन का सार छिपा है।
श्रीमद्भगवत गीता में 18 अध्याय और सात सौ श्लोक हैं। इसमें 574 श्लोक योगेश्वर श्रीकृष्ण ने कहे हैं, 84 अर्जुन ने कहे हैं, 41 संजय ने और एक धृतराष्ट्र ने कहा है। गीता सनातन धर्म का प्रमुख धार्मिक ग्रंथ माना गया है। इसे महाभारत के अमृत के रूप में भी जानते हैं। योगेश्वर श्रीकृष्ण कहते हैं कि इसका पाठ करने वाला कितना भी पापी क्यों न हो लेकिन उसे ईश्वर की कृपा से मोक्ष की प्राप्ति होती है। उमेश कुमार सेन बजरंग दल जिला संयोजक ने कहा भगवद गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने न केवल ज्ञान की बातें बताई हैं बल्कि जीवन जीने की कलाओं के बारे में भी बताया है। भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को जो गीता का उपदेश दिया है, वह हर मनुष्य के लिए प्रेरणास्रोत साबित हो सकता है। गीता में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को उपदेश देते हैं कि जो भी मनुष्य भगवद गीता की अठारह बातों को अपनाकर अपने जीवन में उतारता है वह सभी दुखों से, वासनाओं से, क्रोध से, ईर्ष्या से, लोभ से, मोह से, लालच आदि के बंधनों से मुक्त हो जाता है।

आप भी जानिए गीता की कुछ खास बातें

1. आनंद मनुष्य के भीतर ही निवास करता है। परंतु मनुष्य उसे स्त्री में, घर में और बाहरी सुखों में खोज रहा है।
2. श्रीकृष्ण कहते हैं कि भगवान उपासना केवल शरीर से ही नहीं बल्कि मन से करनी चाहिए। भगवान का वंदन उन्हें प्रेम-बंधन में बांधता है।
3. मनुष्य की वासना ही उसके पुनर्जन्म का कारण होती है।
4. इंद्रियों के अधीन होने से मनुष्य के जीवन में विकार और परेशानियां आती है।
5. संयम यानि धैर्य, सदाचार, स्नेह और सेवा जैसे गुण सत्संग के बिना नहीं आते हैं।
6. श्रीकृष्ण कहते हैं कि मनुष्य को वस्त्र बदलने की आवश्यकता नहीं है। आवश्यकता हृदय परिवर्तन की है।
7. जवानी में जिसने ज्यादा पाप किए हैं उसे बुढ़ापे में नींद नहीं आती।
8. भगवान ने जिसे संपत्ति दी है उसे गाय अवश्य रखनी चाहिए।
9. जुआ, मदिरापान, परस्त्रीगमन (अनैतिक संबंध), हिंसा, असत्य, मद, आसक्ति और निर्दयता इन सब में कलियुग का वास है।
10. अधिकारी शिष्य को सद्गुरु (अच्छा गुरु) अवश्य मिलता है।
11. श्रीकृष्ण कहते हैं कि मनुष्य को अपने मन को बार-बार समझाना चाहिए कि ईश्वर के सिवाय उसका कोई नहीं है। साथ ही यह विचार करना चाहिए कि उसका कोई नहीं है। साथ ही वह किसी का नहीं है।
12. भोग में क्षणिक (क्षण भर के लिए) सुख है। साथ ही त्याग में स्थायी आनंद है।
13. श्रीकृष्ण कहते हैं कि सत्संग ईश्वर की कृपा से मिलता है। परंतु कुसंगति में पड़ना मनुष्य के अपने ही हाथों में है।
14. लोभ और ममता (किसी से अधिक लगाव) पाप के माता-पिता हैं। साथ ही लोभ पाप का बाप है।
15. श्रीकृष्ण कहते हैं कि स्त्री का धर्म है कि रोज तुलसी और पार्वती का पूजन करें।
16. मनुष्य को अपने मन और बुद्धि पर विश्वास नहीं करना चाहिए। क्योंकि ये बार-बार मनुष्य को दगा देते हैं। खुद को निर्दोष मानना बहुत बड़ा दोष है।
17. यदि पति-पत्नी को पवित्र जीवन बिताएं तो भगवान पुत्र के रूप में उनके घर आने की इच्छा रखते हैं।
18. भगवान इन सभी कसौटियों पर कसकर, जांच-परखकर ही मनुष्य को अपनाते हैं।

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