भगवान की भक्ति बिना स्वार्थ के करना चाहिए : पं. तोरण महाराज
रुकमणी विवाह पर झूमकर नाचे श्रोता,टीकावन भी हुआ
बालोद। परमात्मा सब की आत्मा में निवास करते हैं। इसका साक्षात्कार उसी को होता है। जिसके मन में भक्ति की भावना होती है। भगवान जीवो के कल्याण के लिए समर्पित रहते हैं इसे समझ कर कार्य करने की आवश्यकता है। इसलिए भगवान की भक्ति निस्वार्थ भाव से करना चाहिए। वह साक्षात आपको एक दिन जरूर किसी न किसी रूप में दर्शन देंगे।
उक्त बातें गायत्री मंदिर चौक देवरीबंगला में संगीतमय श्रीमद् भागवत कथा के छठवे दिन कुरना (कांकेर) के संतश्री पंडित तोरण महाराज ने व्यक्त किए। संत श्री ने कहा कि भागवत कथा श्रवण से मनुष्य के कर्तव्य का बोध होता है भगवान श्री कृष्ण ने महाभारत के दौरान यही किया और उन्होंने अर्जुन को मोह माया से अलग रहकर अपने कर्तव्य का पालन करने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने कहा कि जन्म लेने वाले की मृत्यु निश्चित होने के बाद भी लोग इसे स्वीकार नहीं करते। निष्काम भाव से प्रभु का स्मरण करने वाले लोगों का यह भऊ और परलोक दोनों सुधर जाता है। संतश्री ने बाल लीला, दही लूट, व श्री कृष्ण रुक्मणी विवाह की कथा सुनाई। उन्होंने कहा कि भगवान के भजन के लिए उम्र का कोई बंधन नहीं है। हर उम्र के लोग भगवान की आराधना कर अपना जन्म सफल बना संकते हैं। इसलिए जब भी समय मिले ईश्वर की कथा सुनना चाहिए। संतों के सानिध्य में रहना चाहिए। इससे यहां लोक और परलोक दोनों सुधर जाएग। श्रीकृष्ण रुकमणी विवाह के दौरान श्रद्धालुओं ने मंगल गीत गाए तथा टीकावन भेट किए। श्रीमद् भागवत कथा के प्रमुख यजमान जगदीश गर्ग तथा शारदा गर्ग है।