चंद्रग्रहण खगोलीय घटना,अंधविश्वास में न पड़ें: डॉ. दिनेश मिश्र

चंद्र ग्रहण में लाल रंग भी प्राकृतिक है ,खतरा नहीं,खगोलीय घटना के साक्षी बनें

बालोद/ रायपुर। अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के अध्यक्ष डॉ. दिनेश मिश्र ने कहा चंद्रग्रहण एक खगोलीय घटना है। डॉ. दिनेश मिश्र ने कहा प्रारंभ में यह माना जा रहा था कि चंद्रग्रहण राहू-केतू के चंद्रमा को निगलने से होता है, जिससे धीरे-धीरे विभिन्न अंधविश्वास व मान्यताएँ जुड़ती चली गईं लेकिन बाद में विज्ञान ने यह सिद्ध किया कि चंद्रग्रहण पृथ्वी की छाया के कारण होता है। जब चंद्रमा पृथ्वी की छाया में प्रवेश करता है तब उसका एक किनारा जिस पर छाया पडऩे लगती है काला होना शुरू हो जाता है। जिसे स्पर्श कहते हैं। जब पूरा चंद्रमा छाया में आ जाता है तब पूर्णग्रहण हो जाता है। जब चंद्रमा का पहला किनारा दूसरी ओर छाया से बाहर निकलना शुरू होता है तो ग्रहण छूटना शुरू हो जाता है। जब पूरा चंद्रमा पृथ्वी की छाया से बाहर आ जाता है तो ग्रहण समाप्त हो जाता है जिसे ग्रहण का मोक्ष कहते हैं। कुछ लोगों ने इस चंद्र ग्रहण के रंग को लेकर इसे खूनी चंद्र ग्रहण कहा है और इसके दुष्प्रभाव की आशंका जाहिर की है। पर यह सब आशंकाएं और भविष्यवाणियां सही नहीं हैं. वास्तव में चंद्र ग्रहण में पूर्णता के दौरान चंद्रमा का लाल रंग पृथ्वी के किनारे के चारों ओर वायुमंडल से होकर गुजरने वाले सूर्य के प्रकाश के कारण होता है। हमारा वायुमंडल सूर्य के प्रकाश की नीली किरणों को दूर कर देता है, और प्रकाश की लाल तरंगदैर्ध्य पृथ्वी की छाया में चली जाती है। आप सूर्यास्त से ठीक पहले भी इस प्रभाव को देख सकते हैं। उस समय, सूर्य का प्रकाश बहुत सारी हवा से होकर गुजर रहा होता है, नीली तरंगदैर्ध्य को बिखेर रहा होता है और लाल तरंगदैर्ध्य को छोड़ रहा होता है। चंद्र ग्रहण के बारे में सोचें, जो आपको उसी क्षण पृथ्वी के पूरे किनारे पर होने वाले सामूहिक सूर्योदय और सूर्यास्त का रंग दिखाता है। पूर्ण चंद्रग्रहण के दौरान चंद्रमा का रंग एक चंद्रग्रहण से दूसरे चंद्रग्रहण में भिन्न हो सकता है। यह इस बात पर निर्भर करता है कि सूर्य की रोशनी जिस हवा से गुजर रही है वह धूल भरी, साफ या बादल वाली है। कभी-कभी पूर्ण चंद्रग्रहण के दौरान, चंद्रमा हल्का या गहरा लाल, नारंगी या यहां तक ​​कि गहरा भूरा दिखाई दे सकता है। यह पूर्ण चंद्रग्रहण का अदभुत हिस्सा है . नवंबर 2021 और नवंबर 2022 में चंद्रग्रहण दोनों गहरे, ईंट जैसे लाल रंग के थे। डॉ दिनेश मिश्र ने कहा चंद्रग्रहण का कहीं कोई दुष्प्रभाव नहीं है, इसे लेकर तरह-तरह के भ्रम व अंधविश्वास हैं। लेकिन लोगों को इन अंधविश्वासों में नहीं पडऩा चाहिए तथा ग्रहण को देखा जा सकता है तथा वैज्ञानिक इसका अध्ययन भी करते हैं।भारत के महान खगोलविद् आर्यभट्ट ने आज से करीब 1500 वर्ष पहले 499 ईस्वी में यह सिद्ध कर दिया था कि चन्द्रग्रहण सिर्फ एक खगोलीय घटना है जो कि चन्द्रमा पर पृथ्वी की छाया पडऩे से होती है। उन्होंने अपने ग्रंथ आर्यभट्टीय के गोलाध्याय में इस बात का वर्णन किया है। इसके बाद भी चन्द्रग्रहण की प्रक्रिया को लेकर विभिन्न भ्रम एवं अंधविश्वास कायम है। डॉ. मिश्र ने कहा यह एक खगोलीय घटना है।

सभी नागरिकों को इसे बिना किसी डर या संशय के देखना चाहिए, चंद्रग्रहण देखना पूर्णत: सुरक्षित है

डॉ. मिश्र ने कहा जब चंद्रग्रहण होने वाला होता है तब विभिन्न भविष्यवाणियाँ सामने आने लगती हैं जिससे आम लोग संशय में पड़ जाते हैं जबकि चंद्रग्रहण में खाने-पीने, बाहर निकलने की बंदिशों का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है। ग्रहण से खाद्य वस्तुएँ अशुद्ध नहीं होती तथा उनका सेवन करना उतना ही सुरक्षित है जितना किसी सामान्य दिन या रात में भोजन करना। इस धारणा का भी कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है कि गर्भवती महिला के गर्भ में पल रहे शिशु के लिए चंद्रग्रहण हानिकारक होता है तथा ग्रहण की वजह से स्नान करना कोई जरूरी नहीं है अर्थात् इस प्रकार की आवश्यकता का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है तथा ग्रहण का अलग-अलग व्यक्तियों पर भिन्न प्रभाव पडऩे की मान्यता भी काल्पनिक है। यह सब बातें केन्द्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा जारी पुस्तिका में भी दर्शायी गयी है।

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