देख अइसन हरेली मनाएंव- हमर पहली तिहार
हमर छत्तीसगढ़ ह तिहार ले भरे पुरे राज्य हरय। ननपन ले ही तिहार के उछाह तो तिहार के आए के आघू ले होवत रहिथे अउ उछाह काबर नइ रही भई किसम-किसम के तिहार तो हमरेच इंहा हे अउ हमर पूरा बछर ह नहाक जाथे तिहार मनावत।
अक्ती के दिन हमन छत्तीसगढ़ी नवा बछर मानथन।सिरतोन म ए ह किसानी के नवा बछर आए किसनहा मन इही दिन ले खेत खार के जम्मो बूता ल सुरु करथें।इही नवा बछर के हमर पहली तिहार हरय ‘हरेली’। हरेली के तिहार सिरिफ मनखे नइ मनाये एला मनाथे धरती,अगास,नदिया-नरवा,डोंगरी-पहाड़ी पूरा प्रकृति ह हरियर भुइंया संग उछाह मनाथे।
‘हरेली तिहार’
सावन म भुइंया चारो डाहर हरियर सिंगार करे रहिथे।छत्तीसगढ़ अंचल म सावन महीना के अमावस्या के दिन हरेली के तिहार मनाये जाथे। ए दिन किसान मन अपन रोपा,बियासी के जम्मों बुता ला पूरा करके, अपन किसानी के अउजार नांगर,कुदारी आदि मन ल बने धो के पूजा ठउर म रखथें अउ फेर आभार स्वरुप इंकर पूजा करके चीला रोटी के भोग चढ़ाथे।सियान मन कहिथें कि ए बेरा म बुरा शक्ति मन के बड़ प्रभाव रहिथें अउ इही प्रभाव ले गाँव ल बचाए बर ए दिन गाँव ल बइगा मन चारो मुड़ा ले तंत्र-मंत्र ले बांधथे।
आवव ए दिन बिसेस रूप ले करे जाने वाला आने कारज मन ल घलो जान लेथन।
‘गाय-बइला ल लोंदी खवाना’
पानी बरसात के दिन म किसम किसम के रोग राइ होए के डर लागे रहिथे। मनखे ह तो अपन बर बारा उदिम कर डरथे फेर अमुक जीव ह कइसे करही।गाँव देहात मन म डॉक्टर बड़ मुश्किल ले मिलथे त हमर सियान मन ह जरी-बूटी खवा के गाय गरू मन ल रोग ले दूर राखय। परसा या खमार पत्ता म उसने दसमूल कांदा, नुन संग पिसान के लोंदी बना के गाय बइला मन ल खवाये।
‘गेड़ी चघना’
हरेली के तिहार अउ गेड़ी नइ चघेस त काए हरेली मनाएस। शहर म रहीके गेड़ी चलाए बर तो अड़बड़ दिन बाद सिखे हँव फेर मोला लागथे की गेड़ी चघे के बिसेस कारण घलो होही काबर की आघु के जमाना म पक्की सड़क नइ रिहिस। सबो डाहर माटी के सड़क होए के कारण पानी बरसात चिखला हो जावय इही सब ले बाचे बर गेड़ी चघ के आना जाना करत रिहिन होही।
त का माइलोगिन मन घलो गेड़ी चघय?हाँ गाँव के सियनहिन मन ल मैं गेड़ी चघत देखें हँव पाछु सरकार म पारंपरिक खेल ल बचाए बर जेन छत्तीसगढ़ ओलम्पिक करे रिहिन ओमा ता बोरई गाँव के मंटोरा दाई अउ सुंदरकेरा के सेवती दाई ह कछोरा ल बिंध के सरपट गेड़ी दउडे रिहिन। बड़ गजब उदिम करे हमर सियान मन।
‘लीम डारा अउ खीला ठोकना‘
लीम झाड़ के सबो जिनिस ह चाहे फर हो, पत्ता हो जरी हो सबो ह बड़ औषधिय गुण ले भरपुर रहिथे। हरेली के दिन म राउत भाई मन ह घरो घर लीम के डारा ल दूआरी म खोंचथे अउ लोहरा मन ह घर के दूआरी म खीला ल ठोंकथे। हरेली के दिन बुरा शक्ति मन के प्रभाव ज्यादा रहिथे अइसे हमर सियान मन कहिथे अउ इही बुरा शक्ति घर भितरी झन आवय कहिके राउत भाई मन दुआरी लीम डारा ल खोंचथे फेर लीम के डारा ल खोंचे के मुख्य कारण कोनो रोग राइ घर म झन आए एकर बर एला करे जाथे।
ये महिना ह पानी बादर के बेरा रहिथे अउ बादल गरजे के संग गाज गिरे के डर घलो रहिथे। लोहा ह एक तड़ित चालक के रूप म बुता करथे ए वजह ले लोहा के खीला ल दुआरी म ठोंकत होही।
हरेली के दिन गाँव-गाँव म किसम-किसम के खेलकूद जेमा हमर पारंपरिक खेल गेड़ी दउड़, फुगड़ी,नरियर फेकउल के आयोजन करथें।पाछु सरकार ह हमर पारंपरिक खेल ल बचाए बर अउ अपन परंपरा ले जोड़े बर सुग्घर उदिम करें रिहिन।
नांगर बईला,रापा कुदारी
बईगा धर पुरा गाँव बंधाएंव।
चीला रोटी के भोग लगा
देख अइसन हरेली मनाएंव।।
आलेख:- नागेश कुमार वर्मा
टिकरापारा रायपुर