भोला दशहरा के नवाखाई महोत्सव में जुटे प्रदेशभर से अतिथि, संस्कृति को बचाने का दिया संदेश
बालोद। कोरोना काल 2019 के बाद 2021 में बालोद जिले में प्रसिद्ध पर्रेगुड़ा भोला पठार में भोला दशहरा नवाखाई महोत्सव का आयोजन हुआ। जिसमें प्रदेशभर से अतिथि व ग्रामीण शामिल हुए। विभिन्न कोने से आए हुए शख्सियतों के जरिए उत्कृष्ट कार्य करने वालों को सम्मानित भी किया गया। इस आयोजन के मुख्य अतिथि पद्मभूषण डॉ तीजन बाई, अंतरराष्ट्रीय पंडवानी गायिका थी।
तो अध्यक्षता छत्तीसगढ़ी फिल्म निर्माता व निर्देशक मोहन सुंदरानी ने की। विशेष अतिथि के रुप में छत्तीसगढ़ी फिल्म अभिनेता रायपुर डॉ अजय मोहन सहाय, वरिष्ठ भरथरी गायिका सुश्री अमृता बारले, लोक कलाकार जामुल मनहरण सार्वा, जिला सतनामी समाज बालोद के अध्यक्ष संजय बारले, प्रदेश सतनामी समाज के संयोजक विजय बघेल, वरिष्ठ लोक गायक दल्ली राजहरा परमानंद करियारे, मानस एवं लोक कला मर्मज्ञ पुरुषोत्तम राजपूत, उत्कृष्ट शिक्षक समाजसेवी डौंडीलोहारा जेआर बिरहा, अंतरराष्ट्रीय वैद्यराज कोरबा जानकी प्रसाद पुलस्त, समाजसेवी रिसाली छन्नूलाल भुआर्य, महासचिव रिसाली परिक्षेत्र राजेश ठाकुर मौजूद रहे।
अतिथियों के द्वारा विभिन्न क्षेत्रों में उत्कृष्ट कार्य करने वालों को सम्मानित किया गया तो साथ ही अपने छत्तीसगढ़ राज्य की संस्कृति, नवाखाई को जीवित रखने का संदेश भी दिया गया। नवा पानी की तरह नवाखाई परंपरा को जीवंत रखने की बात इस आयोजन के प्रमुख व भोला दशहरा उत्सव समिति के अध्यक्ष राम जी ठाकुर ने कही।
वहीं अन्य अतिथियों ने भी इस आयोजन की सराहना की व छत्तीसगढ़ के कैलाश कहे जाने वाले भोला पठार में साल दर साल के आयोजन में बढ़ने वाली भीड़ को इसका प्रमाण बताया गया कि इस जगह का कितना महत्व है। आयोजन स्थल पर विशेष नागरिक अभिनंदन के रूप में हाल ही में पद्मश्री से विभूषित डॉ आर एस बारले का स्वागत सम्मान किया गया। साथ ही उनका जन्मदिन भी सभी अतिथियों के बीच केक काटकर मनाया गया। पहले उक्त आयोजन में कैबिनेट मंत्री अमरजीत भगत का मुख्य अतिथि के रूप में आगमन होना था लेकिन स्वास्थ्य गत कारणों से वे नहीं आ पाए।
भोला पठार विकास समिति के अध्यक्ष राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित राम जी ठाकुर ने बताया कि इस स्थल की महत्ता छत्तीसगढ़ में बढ़ती जा रही है। यह भोलेनाथ का ही प्रताप है कि लोग यहां खींचे चले आते हैं। कोरोना की वजह से विगत वर्ष आयोजन नहीं हो पाया था। लेकिन जब लगभग 2 साल पहले आयोजन हुआ तो गृह व पीडब्ल्यूडी मंत्री ताम्रध्वज साहू यहां स्वयं हेलीकॉप्टर के जरिए इस पठार में पहली बार उतरे थे और उन्होंने इस क्षेत्र को कई सौगातें दी। शासन प्रशासन द्वारा इसे पर्यटन स्थल बनाया जा रहा।
आने वाले दिनों में यहां का और उत्तरोत्तर विकास होगा और भोला पठार का छत्तीसगढ़ के पर्यटन नक्शे में एक नया स्वरूप देखने को मिलेगा। इलाका जंगलों से घिरा हुआ है। कुछ दूरी के बाद बस्तर शुरू हो जाता है यहां भालू तेंदुआ सहित कई जंगली जानवर आते हैं। इस आयोजन के दौरान प्रमुख आकर्षण का केंद्र धमतरी जिले से ग्राम सरईटोला दुगली से आई गेंड़ी व मांदरी नृत्य की प्रस्तुति थी। जिसमें जय गड़िया बाबा आदिवासी मांदरी नृत्य के कलाकारों ने मोहक प्रस्तुति दी। भोला पठार के भोलेनाथ के दर्शन के लिए भक्तों की भीड़ लगी रही।
लगभग 400 फीट की ऊंचाई पर स्थित भोला पठार में इस भोला दशहरा उत्सव में बालोद सहित आसपास के जिले के लोग भी पहुंचे हुए थे। आसपास के ग्रामीणों को यह प्रमुख धार्मिक आस्था का केंद्र बिंदु है। यहां कई गुफाएं हैं, जिन्हें ग्रामीणों ने हिंसक जंगली जानवरों को देखते हुए सुरक्षा के कारण गुफा के द्वार को बंद कर रखा है।
गुफाओं के बीच शिवलिंग सहित एक पत्थर को भीम का पद चिन्ह की मान्यता से यहां का ऐतिहासिक महत्व भी बढ़ जाता है। तो वही पठार से चारों दिशाओं में जंगलों की खूबसूरती भी देखने को मिलती है। डांग डोरी के साथ लोगों ने अपनी आस्था व्यक्त की। जय गोपाल रावत नाचा पार्टी ग्राम लिमोरा करही भदर की आकर्षक प्रस्तुति भी हुई। मंदिर परिसर में मेला भी लगा हुआ था।
इसलिए मनाते हैं महोत्सव
मान्यता है कि कलयुग में इस स्थान को जानने के लिए भगवान ने एक लीला रची जिसमें एक भगत जिसे बोजा भगत के नाम से जाना जाता है का प्राकट्य हुआ। बोजा भगत व परिवार का मठ आज भी यहां विद्यमान है। इस भगत के समय से यहां ग्रामीण मेले का आयोजन करते आ रहे हैं, जिसे भोला दशहरा कहते हैं। भगत जो कि आदिवासी गोंड था व उक्त ग्राम भी आदिवासी बाहुल्यता ग्राम है, इसलिए सभी आदिवासी इसी दिन भोलापठार में नवाखाई महोत्सव मनाते हैं।
इसे कहते हैं छग का कैलाश-
400 फीट ऊपर पहाड़ पर शिव का मंदिर है। मान्यता है कि यहां के कुंड का जल कभी सूखता नहीं, बारिश होने में यदि देरी हो तो किसान यहां पूजा करने पहुंचते हैं। बालोद जिला मुख्यालय से 18 किमी दूर ग्राम पर्रेगुड़ा स्थित 400 फीट ऊंची पहाड़ी पर भोलेनाथ का मंदिर है। स्थानीय लोग इसे छत्तीसगढ़ का कैलाश भी कहते हैं। क्योंकि यहां प्राकृतिक रूप से पत्थरों का ढ़ेर लगा हुआ है।
184 सीढ़ी ऊपर चढ़ने के बाद कई किमी दूर का नजारा यहां से देखा जा सकता है। मंदिर समिति के लोगों ने बताया मंदिर में एक छोटा सा कुंड है। जिसे कई पीढ़ियों से देखते और पूजा करते आ रहे हैं, यह कुंड पहाड़ के इतनी ऊंचाइयों में होने के बाद भी कभी नहीं सूखता। पहले जब गांव में नल या बोर नहीं हुआ करते थे, तब लोग गर्मी के दिनों में यहीं का पानी पी कर गुजारा करते थे। आस-पास के गांव में जब नवा खाई (भोला दशहरा) का आयोजन होता है, तब यहां के जल का उपयोग किया जाता है।
शंकर भगवान विराजित इसलिए नाम भोला पठार
जिले में सिर्फ एक ऐसा मंदिर है जहां शंकर भगवान विराजमान हैं। इसलिए इसे भोला पठार के नाम से जाना जाता है। जिसके कई साक्ष्य मंदिर में आज भी मौजूद हैं, जैसे चट्टान में एक पैर के निशान की आकृति है, इसे भगवान भीम का पदचिन्ह कहा जाता है। बारिश में देरी होने पर यहां यज्ञ व पूजा होता है। आस-पास के गांव वाले उपवास रहकर आराधना करते हैं। मंदिर के नीचे गुफा है। पूर्वज बताते थे कि वहां पहले शेर रहा करते थे। अब कभी-कभी मंदिर में भालू देखने को मिलता है। जो यहां के नारियल खाकर लौट जाते हैं। परिसर में मां काली, दुर्गा, राम-लक्षमण और हनुमान भगवान के साथ-साथ बहुत से देवी-देवता की मूर्तियां विराजमान हैं।
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