आजादी के लिए 195 साल पहले फांसी पर चढ़े थे छत्तीसगढ के पहले शहीद परलकोट के जमींदार गैंदसिंह, उनकी शहादत को याद कर 20 जनवरी को श्रद्धांजलि देंगे हल्बा आदिवासी समाज के लोग

अंग्रेजों के विरुद्ध स्वतंत्रता संग्राम का प्रथम शंखनाद करने वाले परलकोट के जमींदार का बलिदान अनूठा और अविस्मरणीय है: दयालु राम पिकेश्वर

बालोद। अखिल भारतीय हल्बा हल्बी आदिवासी समाज छत्तीसगढ महासभा बालोद के प्रचार मंत्री दयालूराम पिकेश्वर ने परलकोट के जमींदार गैंदसिंह नायक के बारे में बताया कि उन्हें शहीद शिरोमणि की उपाधि हासिल है। ठाकुर गैंदसिंह नायक छत्तीसगढ के पहले शहीद हैं। अंग्रेजों और तत्कालीन मराठा शासकों के अत्याचार के विरुद्ध उन्होंने आदिवासियों को एकजुट कर विद्रोह का बिगुल फूंक दिया था। 195 साल पहले 1825 को परलकोट स्थित उनके महल के सामने ही उन्हें फांसी पर लटका दिया गया था। उनके बलिदान और शहादत को याद करते हुए हर साल की तरह इस साल भी 20 जनवरी को अखिल भारतीय हल्बा हल्बी आदिवासी समाज द्वारा उन्हें श्रद्धांजलि दी जाएगी। अगर आचार संहिता लग जाती है तो चुनाव आचार संहिता हटने के बाद राजधानी रायपुर में राष्ट्रीय स्तर पर कार्यक्रम हो होगा। साथ ही 20 जनवरी को समाज के द्वारा अपील की गई है कि गांव-गांव में उनके श्रद्धांजलि को नमन करते हुए शहादत दिवस मनाया जाए और आने वाली पीढ़ी को भी उनके योगदान के बारे में अवगत कराया जाए।

गैंदसिंह का बलिदान बस्तर की मुक्ति के लिए किए गए संघर्ष की मिसाल है

इस संदर्भ में समाज के प्रचार मंत्री ने बताया कि गैंदसिंह का बलिदान शोषण, अत्याचार के साथ बस्तर की मुक्ति के लिए किए गए संघर्ष की मिसाल है। विडंबना यह है कि आजादी के लिए छत्तीसगढ से सबसे पहले वीरगति को प्राप्त करने वाले गैंदसिंह को वह सम्मान अब तक नहीं मिल पाया जिसके वे हकदार है। परलकोट जमींदार परिवार के सदस्य इस बात से आहत है और गुमनामी में जीवन व्यतीत कर रहें हैं। बस्तर संभाग का वह इलाका जो महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश की सीमा से सटा है उसे परलकोट कहा जाता है। परलकोट के इलाके में ही अब पंखाजूर शहर और बंग्लादेश से विस्थापित होकर आए बंगालियों के गांव हैं।

बंगालियों को दंडकारण्य प्रोजेक्ट के तहत बसाया गया

बंगालियों को यहां दंडकारण्य प्रोजेक्ट के तहत बसाया गया हैं। भानुप्रतापपुर-अंतागढ़ मार्ग पर स्थित केवटी से करीब 76 किमी दूर है परलकोट वनांचल परलकोट जमींदारी बस्तर रियासत के अधीन थी। अंग्रेज अफसर डी ब्रेट के अनुसार परलकोट के जमींदार को भूमिया राजा कहा जाता था।जनश्रुति है कि इसके पितृ पुरुष चट्टान से निकले थे। जमींदार मीनारायणपाटणा किले में रहते थे जिसके अवशेष आज भी वहां मौजूद हैं।

अबूझमाड़ियों को शोषण से बचाने के लिए उठाया था हथियार

बस्तर में मराठों और ब्रिटिश अधिकारियों का वजह से अबूझमाड़िया आदिवासियों की पहचान संकट में थी।उनकी शोषण नीति से माड़िया तंग आ चूके थे।वह गैंदसिंह के नेतृत्व में अबूझमाड़ मे ऐसे संसार की रचना करना चाहते थे जहां लूट खसोट और शोषण न हो। ठाकुर गैंदसिंह के आह्वान पर अबूझमाड़िया आदिवासी 24 दिसंबर 1824 को परलकोट में एकत्र होने लगे। क्रांतिकारी चार जनवरी 1825 ईस्वी तक अबूझमाड़ से चांदा तक छा गए। गैंदसिंह के नेतृत्व में विद्रोहियों ने सबसे पहले मराठों को रसद की पूर्ति करने वाले बंजारों को लूटा फिर मराठा तथा अंग्रेज अधिकारियों पर घात लगाना प्रांरभ कर दिया वह आंदोलन परलकोट विद्रोह के नाम से इतिहास में दर्ज हैं।

गैंदसिंह के नेतृत्व में विद्रोही आदिवासी मराठा या अंग्रेज को पकड़कर काट डालते थे

अबूझमाड़िया धंवड़ा वृक्ष की टहनियों को विद्रोह के संकेत के रूप में एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजते थे। जिनके लिए संदेश भेजा जाता उन्हें पत्तों के सुखने के पहले विद्रोह में शामिल होना पड़ता था। गैंदसिंह के नेतृत्व में विद्रोही आदिवासी किसी मराठा या अंग्रेज को पकड़ते थे तो उसकी बोटी- बोटी काट डालते थे। विद्रोह का संचालन अलग अलग टुकडड़ियों में क्षेत्र के मांझी करते थे।रात्रि में विद्रोही घोटुल में इकट्ठे होते और अगले दिन की योजना बनाते थे।

विद्रोहियों का लक्ष्य विदेशी सत्ता को धूल चटाना व बस्तर को गुलामी से मुक्त कराना था

विद्रोहियों का प्रमुख लक्ष्य विदेशी सत्ता को धूल चटाना व बस्तर को गुलामी से मुक्त कराना था।अंग्रेज अफसर मिस्टर एगेन्यु के निर्देश पर चांदा पुलिस अधीक्षक कैप्टन पेब ने मराठा और अंग्रेज सेना के बल पर 12 जनवरी 1825 तक विद्रोह का बुरी तरह दमन कर दिया था। गैंदसिंह को गिरफ्तार कर 20 जनवरी 1825 को उनके परलकोट स्थित महल के सामने फांसी दे दी गई।

अंग्रेजों के विरुद्ध स्वतंत्रता संग्राम का प्रथम शंखनाद करने वाले गैंदसिंह नायक का बलिदान अविस्मरणीय है

अंग्रेजों के विरुद्ध स्वतंत्रता संग्राम का प्रथम शंखनाद करने वाले परलकोट के जमींदार का बलिदान अनूठा और अविस्मरणीय है। जल जंगल और जमीन का हक मांगने वाले बस्तर वासी एवं अखिल भारतीय हल्बा हल्बी आदिवासी समाज आज भी उनका स्मरण कर गौरवान्वित महसूस करते है।इस जमींदारी परिवार के सदस्य आज भी परलकोट एवं जगदलपुर में अनुपमा टाकिज के पास निवासरत हैं। जगदलपुर शहर में जहां विशाल जिला पुरातत्व संग्रहालय है,उस स्थान पर ही पहले जमींदारी का बाड़ा था। इस बाड़ा में मृत्युपर्यत बस्तर महाराजा प्रवीरचंद भंजदेव की पत्नी महारानी वेदवती निवास करती रहीं।

200वीं पुण्यतिथि एवं शहीद गैंदसिंह नायक 200वां शताब्दी पर होगी शहीद श्रद्धांजली सभा

अखिल भारतीय हल्बा आदिवासी समाज महासभा बालोद प्रचार मंत्री दयालूराम पिकेश्वर ने बताया शहीद गैंदसिंह नायक नायक जी के 200वां शताब्दी शहीद श्रद्धांजली सभा अखिल भारतीय हल्बा हल्बी आदिवासी समाज के जन प्रिय जन नायक शहीद गैंदसिंह नायक के सम्मान एवं सच्ची श्रद्धांजली देने के 20 जनवरी 2025 प्रदेश के राजधानी रायपुर में आयोजन किया जायेगा । इसके अलावा उन्होंने समाज के ग्रामीणों को भी अपने गांव में 20 जनवरी को शहादत दिवस मनाने की अपील की है।

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