*** पोरा या पोला? ***
रचना: चंद्रभान साहू
आजकाल ए देखे म जादा आवत हे, के हमर इहाँ के लोगन अपन परंपरा-संस्कृति के मूल स्वरूप ल जाने-समझे ल छोड़ के पर के पाछू भेड़िया धसान बरोबर किंजरई ल जादा गरब के मान डरथें.
अभी बीते दिन कमरछठ परब ल देखे रेहेन, लोगन उत्तर भारत ले आए लोगन मन के देखासिखी एला हलषष्ठी बतावत बलराम जयंती काहत रिहिन हें. एदे अब अवइया 'पोरा' परब के संबंध म घलो अइसने देखे जावत हे. पोरा ल हिंदीकरण करत 'पोला' कहे जावत हे, सोशलमीडिया के ठीहा तो अंखमूंदा मन के बसेरा बनगे हवय.
असल म हमर छत्तीसगढ़ म मनाए जाने वाला परब ह 'पोरा' आय. छत्तीसगढ़ी भाखा म पोला शब्द छेदा, भोंगरा या पोलपोला खातिर उपयोग करे जाथे. जबकि हमर इहाँ पोरा के परब मनाए जाथे, वो ह धान म पोर फूटना, पोटरी या पोठरी पान धरे के अवस्था, जेला गर्भधारण के अवस्था कहे जाथे, तेकर सेती मनाए जाथे. एकरे सेती ए दिन किसान मन अपन अपन खेत म पोरा म रोटी पीठा चढ़ाथें, जे ह धान के फसल ल गर्भधारण करे के सेती सधौरी खवाए के प्रतीक स्वरूप होथे. जइसे हम अपन बेटी-माई मनला पहिली बेर गर्भधारण करे म सधौरी खवाथन.
पोरा के दिन माटी के बने नंदिया बइला के पूजा घलो करथन, अउ फेर पूजा के पाछू लइका मन नंदिया बइला म डोरी बॉंध के नंगत किंजारत खेलत रहिथें. ए दिन नंदिया बइला ल जेन ठेठरी अउ खुरमी चढ़ाए जाथे, वोला पहिली विशेष रूप ले बनाए जावय. ठेठरी ल जलहरी के रूप म अउ खुरमी ल शिवलिंग के रूप म नंदिया बइला के पूजा के बेरा जब दूनों ल समर्पित करे जावय त ठेठरी के ऊपर म खुरमी ल मढ़ाए जावय, एकर ले दूनों मिल के एक पूर्ण शिवलिंग बन जावय.
पोरा के दिन पहिली गोल्लर ढीले के परंपरा घलो रिहिसे. जेन कोनो मनखे ह मनौती माने राहय या शिव सवारी नंदी खातिर कोनो किसम के श्रद्धा राखय, वो ह पोरा के दिन गोल्लर के पीठ म या वोकर जाॅंघ म भोलेनाथ के त्रिशूल के चिनहा अॉंक के गोल्लर के पूजा पाठ कर के ढील देवय. ए ढीले गे गोल्लर ल पूरा गाँव वाले मन देवता बरोबर मानंय.
असल म पोरा परब के दिन ही नंदीश्वर जयंती होथे, तेकरे सेती ए सब करे जावय. आज हम अपन संस्कृति के आध्यात्मिक स्वरूप ल चुकता भुलागे हावन, तेकर सेती एला सिरिफ कृषि संस्कृति के रूप भर म सुरता करथन, जबकि हमर हर परब संस्कृति के संबंध कोनो न कोनो रूप ले अध्यात्म संग घलो हे.
अब बतावौ संगी हो ए परब ह असल म ‘पोरा’ आय या पोला?