November 21, 2024

पोरा एक संक्षिप्त बिसलेसन:पोरा के तीन दिन -मूलभाव

रचना: मदन मंडावी
ढारा, डोंगरगढ़ ,राजनांदगांव

मो _7693917210

पोरा छत्तीसगढ़ मा मूल संस्कृति के परब आय। पोरा हर साल भादो महीना के अमावस्या तिथि के मनाय जाथे। ये तिहार ल जायदातर महाराष्ट्र अउ छत्तीसगढ़ मा धूमधाम ले मनाय जाथे। पोरा ला – पोला-पिठौरा, कुशोत्पटिनी नाव ले तको जाने जाथे।
तिहार गाँव के बेवस्था ला बनाय रखे के काम करथे। गांव के तिहार किसानी ले जुड़े हे, जेनहा “अक्ति”बीज उपचारण ले शुरू होके गांव बनई, छेर- छेरा पुन्नी तक ले चलत रहिथे। जइसे -जइसे फसल बाढ़त जाथे वइसने -वइसने तिहार संघरत जाथे। पोरा ला खास करके तीन दिन ले मनाय जाथे, जइसे देवारी ला पांच दिन ले। आवव पोरा के तीन दिन ला जानन _
(१) गरभ बनई – गर्भही (गर्भधारण) पोरा के एक दिन पहिली रात के माता देवाला मा किसान बिधी -बिधान पूर्वक गर्भही पूजा करथे जेला गरभ बनई केहे जाथे। गर्भधारण नानपन अउ बुजुर्ग अवस्था मा नइ करे जा सके युवा अवस्था मा ही मादा,पेड़- पऊधा, जीव जंतु, मन करथे। प्रकृति अपन ढंग ले काम करथे अउ रसायन अपन काम करथे। वो बात अलग हे आज रसायन के जमाना मा बारो महीना गोभी भाटा, बंगाला, तुमा, कुम्हड़ा खाय बर मिल जथे। प्राकृतिक रूप ले तइयार होय पऊधा एक निश्चित अवधि मा गरभ धरथे अउ फलथे फूलथे ।
“पोरापोर माने फूटना, पोटारना, पूर्ण रूप ले मजबूत (परिपक्व)होना। इही पोटरई के खुशी मा जेन तिहार ला मनाथे तेला पोरा कहे जाथे। (२) पोरा तिहार हरेली ले ठीक एक महीना बाद भादो के अमावस्या तिथि के दिन मनाय जाथे।
ये दिन माटी के खेलौना के माध्यम ले परम्परागत घरेलू काम काज के सिक्सा देय जाथे। येमा बेटा -बेटी के काम – धाम के अन्तर ला समझाय के उदिम करे गेहे । बेटी घर के काम सीखथे अउ बेटा बाहिर के। तेकरे सेती बेटी मन बर माटी के पोरा जांता, गंजी, कढ़ही, बाल्टी जीनिस ला अउ बेटा मन बर माटी के बइला ला बिसाथे। बेटा माने नंगरिहा, जेनहर नांगर बइला धरके खेत मा काम करथे।
ये परम्परागत जुम्मेदारी निभाय के संदेशा पोरा तिहार हर अवइया अपन पीढ़ी ल पोठ करे बर देथे। ये तिहार के खुशी मा गांव के माई लोगन मन छतीसगढ़ी ब्यंजन ठेठरी, खुरमी, मुठिया, सोहारी गुजिया भजिया बनाथे। जेन ला घर के पुरुष जात मन बिधी-बिधान पूर्वक माटी के खेलौना, देबि – देवता ला सुमर के हुम धूप संग भोग लगाथे। बाद मा घर भरके बाँट बिराज के खाथे।
(३) नारबोद _ नार+बोद । नार= गांव, बोद= रोग, बोझ, बहिराना। ये दिन गांव के जम्मो जादू – टोना,टोटका, रोग -राई, खस्सी -खोखली, मरही -खुरही, ला गांव के सियार (सीमा, सरहद) ले बाहिर कर देय के संदेशा देय जाथे।
हरेली ले पोरा तक लइका मन के खेले गेड़ी ला बरोय बर हुमदेवा हर हाँक पारथे। सब्बो लइका मन गेड़ी धरके गांव म एक जगा सकलाथे, गांव भर ला घुमके रोग भगाए के नारा लगाथे। गांव के सियार मा जाथे, खटिया के डोरी ला घर के सदस्य संख्यानुसार गाँठ बाँधथे, अउ ऊही मेरन गेड़ी ला सरो देथे।
ये दिन गांव के किसान भेलवा डारा ला टोरके खेत मा गड़ियाथे, जेमा छोटे- छोटे कीरा मन चीपक जाथे। उही डारा मा चिरई – चिरगुन आके बईठके खेत के फाँफा, मेकरा, कीरा -मकोरा मन ला ख़ाके नास करथे।
ये ढंग ले प्रकृति, संस्कृति, विज्ञान, संस्कार, परम्परा, मनरंजन अउ ब्यंजन के तिहार आय -पोरा ।

ये जम्मो मोर लिखा ठगुल -मगुल के नोहे जेन ला देखे- सुने हों उही ला लिखे हों। आन – आन क्षेत्र के आन- आन रिवाज परम्परा हो सकत हे।

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