इतिहास में पहली बार आश्रित ग्राम परसवानी से बना सरपंच, विकास की जगी उम्मीद, ग्रामीणों में छलका खुशियों का उत्साह

बालोद। बालोद जिले के अर्जुंदा क्षेत्र के ग्राम परसवानी में इतिहास में पहली बार आश्रित ग्राम से कोई सरपंच बना है। वर्तमान में उक्त परसवानी ग्राम परना पंचायत के अंतर्गत शामिल है। इस पंचायत चुनाव में कुल चार प्रत्याशी अपना भाग्य आजमा रहे थे। इसमें अकेले परना पंचायत क्षेत्र से तीन प्रत्याशी मैदान में थे तो वहीं आश्रित ग्राम परसवानी से एक प्रत्याशी नारेंद्र कुमार देवांगन मैदान में थे। इस चुनाव में ग्राम परसवानी के मतदाताओं ने इस बार किसी भी सूरत में अपने गांव से सरपंच बनाने की ठान कर एक जुटता के साथ एक तरफा वोट देते हुए नारेंद्र कुमार को जीत दिलाई। उन्हें परसवानी से 346 और पंचायत मुख्यालय परना से भी 61 वोट मिले। सिर्फ 17 वोट ऐसे थे जो परसवानी से बाहर दूसरे गांव यानी परना के प्रत्याशियों को मिले। यानी पूरे लगभग 90% परसवानी के ग्रामीणों ने नारेंद्र देवांगन पर भरोसा जताया और इसी भरोसे के बलबूते नारेंद्र इतिहास में पहली बार आश्रित ग्राम परसवानी के सरपंच बनने में कामयाब हुए। पहली बार इस गांव से सरपंच बनने पर ग्रामीणों में खुशी का उत्साह देखने लायक था। डीजे की धुन पर मतदाताओं ने जमकर नृत्य किया।

पहले ग्राम परसवानी में विजय रैली निकाली गई फिर परना पहुंचकर भी इस बात का जश्न मनाया गया तो वहीं परसवानी के ग्रामीणों के साथ-साथ नवनिर्वाचित सरपंच नारेंद्र देवांगन ने कहा कि अब आश्रित ग्राम के विकास को गति मिलेगी । आश्रित ग्राम होने का दंश हम कई सालों से झेलते आ रहे हैं। पंचायत मुख्यालय ना होने के चलते विकास कार्यों में गांव पिछड़ा हुआ है। आज भी हमारे गांव से परसतराई जाने वाली सड़क नहीं बन पाई है। आजादी के बाद भी इस सड़क का निर्माण नहीं हो पाया है। जो दुख की बात है। कीचड़ भरे रास्ते हैं। कुछ गलियों में सीसी रोड की भी समस्या है। सरपंच नारेंद्र देवांगन ने कहा कि उनकी पहली प्राथमिकता होगी कि वर्षों से उपेक्षित आश्रित गांव का विकास प्राथमिकता से हो। साथ ही पंचायत मुख्यालय परना के विकास को भी वह बिना किसी भेदभाव के बढ़ावा देंगे। उन्होंने कहा कि आश्रित ग्राम का दंश हम बचपन से देखते आ रहे हैं।लगभग 15 साल पहले हमारा गांव परसतराई से जुड़ा हुआ था। लेकिन वहां की आबादी बढ़ने के बाद उसे पृथक पंचायत बनाकर हमारे गांव को परना पंचायत में जोड़ दिया गया। जो कि हमारे गांव से लगभग 4 किलोमीटर दूर स्थित है। एक छोटे से दस्तखत के लिए सरपंच, सचिव के पास जाने के लिए लोगों को चार-चार किलोमीटर दूर जाना पड़ता था। तो वहीं सरकारी राशन लेने में भी दिक्कत होती थी। कई तरह की परेशानी लोगों को झेलनी पड़ती थी ।अब परसवानी से ही सरपंच बनने से इन सब मुसीबत से ग्रामीणों को छुटकारा मिलेगा। स्थानीय ग्रामीण उनके घर पर आकर ही उनसे पंचायत संबंधित कार्य करवा सकेंगे। तो वही वह परना वासियों को भी सरपंच की सेवा देने के लिए पंचायत मुख्यालय में भी उपस्थित रहेंगे। इस मौके पर ग्रामीणों सहित निर्वाचित पंचों ने भी अपनी खुशी का इजहार किया। जगह-जगह पर सरपंच और निर्वाचित पंचों का लोगों ने फूल थाल सजाकर आरती उतार कर उनका स्वागत अभिनंदन किया। ग्रामीणों ने पहली बार अपने गांव से सरपंच बनने पर जमकर जश्न मनाया। वही इस गांव से पूर्व में आठ पंचवर्षीय कार्यकाल यानी लगभग 40 साल तक पंच रह चुके लतेल यादव ने कहा कि उनके जीवन काल में पहली बार उनके गांव से सरपंच बना यह बहुत ही अद्भुत क्षण रहा है। उनकी हमेशा कोशिश रही कि गांव से कोई सरपंच बने। अपने आठ पंचवर्षीय कार्यकाल में एक बार वे उपसरपंच रह चुके हैं
तो उनके बाद अन्य पंच भी उपसरपंच बनने में सफल रहे हैं। लेकिन सरपंच आज तक कोई नहीं बन पाया था। इस बार ग्रामीणों ने ठान रखा था कि किसी भी हाल में हम अपने गांव से सरपंच को एक जुटता के साथ जिताएंगे और आखिरकार ग्रामीण अपने इस संकल्प पर सफल हुए। इस तरह अब आश्रित गांव से सरपंच बनने से ग्रामीणों में विकास की एक नई उम्मीद जगी है।