“जनजाति समाज के गौरवशाली अतीत पर संगोष्ठी: दल्लीराजहरा में आयोजित किया गया एक दिवसीय कार्यक्रम”
दल्लीराजहरा। शासकीय औद्योगिक प्रशिक्षण संस्था दल्लीराजहरा में बुधवार को जनजाति समाज का गौरवशाली अतीत विषय पर एक दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी की शुरुआत जनजाति समाज के शहीद वीर नारायण सिंह, रानी दुर्गावती, कंगला मांझी, बिरसा मुंडा एवं छत्तीसगढ़ महतारी के छायाचित्र पर पूजा अर्चन , दीप प्रज्वलन तथा राजकीय गीत के साथ कार्यक्रम की शुरुआत की गई। मुख्य अतिथि के रूप में पानाबरस राजपरिवार से लक्ष्मणेंद्र शाह तथा मुख्य वक्ता के रूप में राजिम शाह मरकाम व्याख्याता शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय पानाबरस थे।
कार्यक्रम की अध्यक्षता संस्था के प्राचार्य कुसुम साहू ने की।विशेष अतिथि गोविंद वाधवानी व्यवसायी एवं अध्यक्ष व्यापारी संघ दल्ली राजहरा, तोरण लाल साहू पूर्व तहसील अध्यक्ष साहू संघ एवं उपाध्यक्ष जिला बालोद, निर्मल दास साहू दल्ली राजहरा उपस्थित रहे।
मुख्य अतिथि ने अपने उद्बोधन में जनजाति समाज का इतिहास, संस्कृति और जीवन शैली परंपरा के बारे में विस्तार से व्याख्यान दिए। साथ ही महाराज लाल श्याम शाह जी के जीवन में आदिवासियों के लिए उनके योगदान को भी विस्तार से जानकारी दी। कहा कि हमारे गौरवशाली व्यक्तित्व के धनी महापुरुष जिन्होंने अपने समाज के कल्याण के लिए, संस्कृति के संरक्षण के लिए ,सामाजिक उत्थान के लिए अपने प्राण की आहुति दी है। उन्हें हमें नहीं भूलना चाहिए तथा उनके प्रेरणा को जीवन में उतारकर उनके अनुरूप जीवन जीना चाहिए ताकि उनके द्वारा लगाए गए संस्कृति संस्कार के पौधे फलित पुष्पित होता रहे।
मुख्य वक्ता राजिम शाह मरकाम जी ने कहा कि जनजाति समाज भारत के इतिहास और संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है जो न केवल उनके रीति रिवाज और परंपराओं को दर्शाता है बल्कि उनके ऐतिहासिक सामाजिक और आध्यात्मिक योगदान की भी गवाही देता है। जनजाति समुदायों के भारतीय समाज की समृद्धि और विविधता में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। जिसका संरक्षण,अनुसरण करना और सम्मान देना हमारा कर्तव्य है।
संस्था के प्राचार्य कुसुम साहू ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में आदिवासी वीर योद्धाओं के नामों से अवगत कराकर कार्यक्रम के उद्देश्य और महत्व पर प्रकाश डाला तथा मोबाइल फोन, सोशल मीडिया के गलत इस्तेमाल, नशा, अंधविश्वास, सामाजिक कुरीति जैसी बुराइयों को त्यागने, अपनी संस्कृति के प्रति सम्मान, संरक्षण तथा पर्यावरण संरक्षण हेतु युवाओं को प्रेरित किया।
विशेष अतिथि गोविंद वाधवानी जी ने अपनी वक्तव्य में कहा कि भारत के स्वतंत्रता संग्राम में जनजाति समाज के असंख्य महापुरुषों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। शहीद नारायण सिंह, भगवान बिरसा मुंडा ,रानी दुर्गावती जैसे अनगिनत जनजाति नेताओं ने अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष किया। उनके बलिदानों का इतिहास के पन्नों में स्वर्ण अक्षरों में लिखा गया ।जनजाति विद्रोह में स्वतंत्रता आंदोलन को नई दिशा दी और समाज को संगठित कर अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चा खोला। वह आज भी उनके पारंपरिक ज्ञान और सामूहिक निर्णय लेने की प्रक्रियाएं आधुनिक समाज के लिए प्रेरणा का स्रोत है।
विशेष अतिथि तोरण लाल साहू ने कहा कि जनजाति समाज की धार्मिक और आध्यात्मिक परंपराएं प्रकृति के साथ गहरा संबंध रखती है। उनके मान्यताएं पर्यावरण संरक्षण और सतत विकास के सिद्धांतों को साथ मेल खाती है। उनके द्वारा की जाने वाली पूजा त्यौहार और अनुष्ठान प्राकृतिक तत्व जैसे पर्वत, नदियां, वृक्ष की पूजा पर आधारित है और जो हमें प्रकृति के साथ प्रेम और सम्मान का संदेश देते हैं। जनजाति समाज का गौरवशाली अतीत उनके समृद्ध सांस्कृतिक, सामाजिक, आध्यात्मिक योगदान को दर्शाता है। अनमोल धरोहर को सुरक्षित करना और उनके योगदान को पहचान दिलाना न केवल उनके प्रति सम्मान व्यक्त करना है बल्कि हमारी आने वाली पीढ़ी के लिए एक प्रेरणा भी है।
कार्यक्रम का संचालन प्रशिक्षण अधिकारी विरेंद्र कुमार बघेल ने किया। कार्यक्रम में प्रशिक्षणार्थियों के द्वारा विविध प्रतियोगिताएं एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम संपन्न हुए तथा प्रतिभागी प्रशिक्षणार्थियों को प्रमाण पत्र देकर सम्मान किया गया। अंत में प्रशिक्षण अधीक्षक के के दुबे ने सभी अतिथियों, अधिकारी कर्मचारियों एवं प्रशिक्षणार्थियों का आभार प्रदर्शन किये ।इस कार्यक्रम को सफल बनाने में प्रशिक्षण अधिकारी शिवेंद्र कुमार यादव, फनिल कुमार, प्रवीण कुमार, ताकेश कुमार, शिल्पी वर्मा, संतोष चौधरी, गीतू गौतम ,अरुण कुमार, सहायक ग्रेड एक मंतोष चतुर्वेदी तथा भूपेंद्र कुमार का विशेष सहयोग रहा।