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चर्चा का विषय: शहीद दुर्वशा निषाद शासकीय महाविद्यालय अर्जुंदा में छात्र उत्पीड़न: प्रशासनिक तानाशाही के खिलाफ न्याय की गुहार

अर्जुंदा। शहीद दुर्वशा निषाद शासकीय महाविद्यालय, अर्जुंदा में प्रशासनिक तानाशाही और छात्र उत्पीड़न का गंभीर मामला सामने आया है। महाविद्यालय के दो छात्रों, श्री दानेश्वर सिन्हा और श्री दुष्यंत देशमुख ने प्रभारी प्राचार्य डॉ. रश्मि सिंह और अन्य कर्मचारियों पर गंभीर आरोप लगाए हैं। उनका कहना है कि जब उन्होंने महाविद्यालय में हो रही प्रशासनिक अव्यवस्थाओं और अन्याय के खिलाफ आवाज उठाई, तो उनके खिलाफ प्रतिशोधी कदम उठाए गए।
आरोप और उत्पीड़न की साजिश
मामला तब सामने आया जब छात्रों ने कॉलेज प्रशासन की गड़बड़ियों और डॉ. रश्मि सिंह की तानाशाही के खिलाफ विरोध जताया। इसके तुरंत बाद, अतिथि व्याख्याता मनोज साहू और क्रीड़ा सहायक श्रीमती मोनिका वर्मा ने छात्रों पर अनुचित आरोप लगाए, जिससे उनकी छवि धूमिल हुई। छात्रों का आरोप है कि उन्हें मानसिक रूप से कमजोर करने और दबाने की यह सोची-समझी साजिश थी। इन छात्रों को बिना किसी ठोस आधार के थाने बुलाकर प्रताड़ित किया गया, जो प्रशासन के प्रतिशोधात्मक रवैये की स्पष्ट झलक देता है।

प्रशासन की जांच और प्रतिशोध

तहसीलदार और एसडीएम द्वारा मामले की जांच की गई, लेकिन छात्रों का मानना है कि यह जांच निष्पक्ष नहीं थी और प्रशासन की ओर से बदले की भावना से प्रेरित थी। इसी कड़ी में, डॉ. रश्मि सिंह द्वारा इन दोनों छात्रों को अचानक स्थानांतरण प्रमाण पत्र (टीसी) जारी कर दिया गया, जिसे छात्रों ने अपने भविष्य को नष्ट करने की साजिश करार दिया है। यह कदम छात्रों की शिक्षा और करियर को गहरा आघात पहुंचाने वाला है।

भ्रष्टाचार के आरोप

यह पहली बार नहीं है जब महाविद्यालय में प्रशासनिक अनियमितताओं का आरोप लगा हो। पूर्व में भी टीसी जारी करने के बदले रिश्वत लेने का मामला उठा था, जिसमें महेश पाटिल और सेमत साहू का नाम सामने आया था। आरोप है कि यह सब डॉ. रश्मि सिंह के संरक्षण में हुआ, लेकिन अब तक दोषियों के खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई है।

न्याय की मांग और भविष्य पर सवाल

छात्रों का कहना है कि कॉलेज प्रशासन अपनी ताकत का दुरुपयोग कर रहा है और उनकी आवाज को दबाने की कोशिश कर रहा है। यह स्थिति न केवल शिक्षा के पवित्र माहौल को दूषित कर रही है, बल्कि छात्रों के भविष्य को भी अंधकारमय बना रही है। डॉ रश्मि सिंह का कहना है, कि इन छात्रों ने पेपरबाजी करके मेरा नाम खराब किया है, इसीलिए मैं इनका भविष्य खराब करूंगी ।

क्या छात्रों की आवाज़ को दबाकर प्रशासनिक ताकत का दुरुपयोग होगा, या उन्हें न्याय मिलेगा?

यह सवाल अब पूरे शिक्षा जगत और समाज के सामने है। छात्रों ने प्रशासनिक अन्याय और प्रतिशोध की भावना से प्रेरित इस कृत्य के खिलाफ उच्च स्तर की जांच और कड़ी कार्रवाई की मांग की है। क्या डॉ. रश्मि सिंह को कॉलेज के छात्रों के भविष्य के साथ खिलवाड़ करने का अधिकार है?

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