दूध गंगा प्रबंधन का ये कैसा फरमान? पशुपालक दूसरों को बेचे दूध तो हम नहीं खरीदेंगे!
नाराज पशुपालक पहुंचे कलेक्टर जनदर्शन में, हुई शिकायत,अधिकारियों ने कहा ऐसा करना गलत, पशुपालक है स्वतंत्र
बालोद। बालोद जिला मुख्यालय में संचालित दूध गंगा में संचालक मंडल समिति के द्वारा अंग्रेजी हुकूमत की तर्ज पर एकाधिकार जताने का फरमान जारी किया गया है। मामला पशुपालकों द्वारा यहां दूध बेचे जाने को लेकर है। जिसमें समिति द्वारा यह आदेश जारी किया गया है कि जो भी पशुपालक उनके समिति में पंजीकृत है और यहां दूध बेचते हैं वह अपना दूध, दूध गंगा में ही बेचेंगे। अगर वह दूध को कहीं और किसी संस्थान या होटल में बिक्री करते हुए पाए जाते हैं तो उनका दूध खरीदा नहीं जाएगा। साथ ही दूध कलेक्शन करके लाने वाले पशुपालकों का भी दूध नहीं खरीदा जाएगा। इस आदेश से इस दूध गंगा समिति से जुड़े हुए पशुपालक नाराज हो गए और सभी एकजुट होकर कलेक्टर कार्यालय पहुंचे ।जहां कलेक्टर के नाम से ज्ञापन सौंपा गया। इस ज्ञापन में पीड़ित पशुपालकों ने बताया कि 27 फरवरी को हमें उक्त फरमान से अवगत कराया गया है। जिसमें यह नियम बताया जा रहा है कि दूध गंगा में दूध बिक्री करने वाले पशुपालक सदस्यों द्वारा किसी अन्य संस्था में या होटल में दूध बिक्री करते पाए जाने पर उक्त पशुपालक से दूध खरीदी नहीं किया जाएगा। पशुपालकों का कहना है कि दूध गंगा वास्तव में पशुपालक किसानों के हित के लिए बनाया गया है ना कि दूध गंगा के हित में। सभी पशुपालक किसानों द्वारा आम जनता, होटल आदि में दूध देने के पश्चात बचत दूध को दूध गंगा में दिया जा रहा है। जिसे दूध गंगा के अध्यक्ष द्वारा बाहर दूध दिए जाने पर दूध गंगा में दूध खरीदी नहीं करने का आदेश जारी किया गया है।
कलेक्टर को शिकायत करने पर दे रहे धमकी
वही मामले में यह बात भी सामने आई है कि संचालक मंडल द्वारा पीड़ित पशुपालकों को कलेक्टर तक जाने से भी रोका जा रहा है। पशुपालकों को कहा गया है कि अगर कोई कलेक्टर में इस मामले में शिकायत करते हैं तो उनका दूध खरीदा नहीं जाएगा ।तो वही जब कुछ पशुपालकों ने हिम्मत दिखाकर कलेक्टर जनदर्शन में शिकायत कर दी है तो ऐसे लोगों को भी चिन्हित कर उनका दूध नहीं खरीदे जाने का दबाव बनाया जा रहा है। इस तरह के फरमान से सभी पशुपालक व्यथित है । पशुपालकों को डराने और भय का माहौल बनाया जा रहा है। न्याय की आस में जिला जनदर्शन में अपनी फरियाद लेकर पशुपालक पहुंचे थे। जिस पर अधिकारियों ने इसे संज्ञान में लिया है और इसे किसानों के साथ ज्यादती करार दिया है। इस संबंध में भी जब हमने पताशाजी की तो दूध गंगा संचालक मंडल का तानाशाह रवैया सामने आया। अपने फायदे के लिए किसानों को अपने पास ही दूध बेचने के लिए मजबूर कर अंग्रेजी हुकूमत जैसा बर्ताव संचालक मंडल द्वारा किया जा रहा है। इस तरफ फरमान के पीछे संचालक मंडल यह तर्क दे रही है कि ऐसी व्यवस्था बनाना उनके समिति के बायलॉज में शामिल है लेकिन पशुपालकों का सवाल यही है कि यह दूध गंगा भवन और मशीनरी पूरी सरकारी पैसे से बना है । किसानों के हित के लिए बचत दूध को यहां खरीदे जाने के लिए उद्देश्य से बनाया गया है। तो ऐसे में पशुपालक में स्वतंत्र है कि वह अपना दूध कब कहां कैसे बेचे। वहीं किसानों ने यह भी बताया कि यहां पर पैसा तुरंत भी नहीं दिया जाता देर से मिलता है। कई जगह इससे ज्यादा दाम पर भी दूध किसान बेचते हैं। ऐसे में पहली प्राथमिकता वे नगद और अधिक भुगतान को देते हैं। और जो दूध बच जाता है वही दूध गंगा में लेकर जाते हैं। पर संचालक मंडल द्वारा किसानों को दबाव पूर्वक अपने पास ही दूध बेचने के लिए कहा जा रहा। जिससे किसान खफा हो गए हैं। जबकि ऐसा किया नहीं जा सकता। एकाधिकार जताने का प्रयास दूध गंगा के समिति द्वारा किया जा रहा है ।जो कि न्याय संगत नहीं है। पशुपालकों में इससे आक्रोश पनपने लगा है और वह न्याय की मांग कर रहे हैं ।अपने फायदे के लिए किसानों पर अपनी मर्जी लादने का काम संचालक समिति द्वारा किया जा रहा है। जबकि किसान स्वतंत्र है कि वह किसे अपना दूध कितने रुपए लीटर में बेच रहे हैं।
बिना किसी प्रस्ताव के जारी कर दिया फरमान
इसमें संचालक मंडल की एक और मनमानी यह भी सामने आई कि जो आदेश जारी किया गया है उस पर किसी तरह का कोई प्रस्ताव नहीं हुआ है। जबकि उक्त संस्था कहीं ना कहीं शासन के अधीन भी है। सहकारिता के जरिए इसका संचालन होता है। तो बिना कोई लिखित आदेश प्रस्ताव के इस तरह के निर्णय नहीं दिया जा सकता है। हैरत करने वाली बात यह है कि जनदर्शन में जो पशुपालक शिकायत करने के लिए पहुंचे थे उनके साथ दो से तीन ऐसे सदस्य भी थे जो संचालक मंडल से जुड़े हुए हैं। वह भी इस निर्णय को लेकर आपत्ति और सहमति जाहिर करते हुए बता रहे हैं कि हमें इस बारे में कोई जानकारी ही नहीं दी गई है। कोई लिखित प्रस्ताव इस संबंध में नहीं दिया गया है। अध्यक्ष द्वारा मनमानी की गई है । वहीं यह भी पता चला कि डायरेक्टर मंडल की बैठक में ही मौखिक तय करके यह आदेश सूचना बोर्ड पर चस्पा कर दिया गया है। जिससे किसान दिगभ्रमित हो रहे हैं और परेशानी महसूस कर रहे हैं।
अधिकारी ने भी माना: समिति नहीं बना सकता इस तरह दबाव, किसान हैं स्वतंत्र
इस मामले में पशु चिकित्सा विभाग के अधिकारी डॉक्टर देवेंद्र सिहरे का कहना है कि मामले की शिकायत जिला जनदर्शन के जरिए हमारे तक आई है
इसमें प्रारंभिक रूप से यही कह सकते हैं कि दूध गंगा संचालक मंडल समिति ऐसा कोई नियम तय नहीं कर सकती। उक्त समिति सहकारिता विभाग के जरिए संचालित हो रही है। हालांकि पशु चिकित्सा विभाग वहां लगे मशीनरी से संबंधित एजेंसी है। किसानों को इस तरह दबाव नहीं बनाया जा सकता। किसानों को जहां रेट अच्छा मिलेगा वहां पर बेच सकते हैं। वे स्वतंत्र हैं। ऐसा बिल्कुल नहीं है कि अगर वहां से पंजीकृत सदस्य हैं तो उन्हें दूध वही देना है। इस संबंध में संचालक मंडल ने क्यों गलत तरीके से आदेश जारी किया है इसकी जांच की जाएगी। शनिवार को संचालक मंडल और पशुपालकों की बैठक भी बुलाई गई है ।ताकि मामले को सुलझाया जा सके। बाकी पशुपालक स्वतंत्र है इस तरह आदेश निकालना गलत है।
कैसे हुई थी शुरुआत
बालोद में तत्कालीन मुख्यमंत्री डा.रमन सिंह ने 5 जून 2018 को उद्घाटन किया था। यहां दूध से बने कई तरह के उत्पादों की बिक्री होती हैं। इस दूध गंगा को डेवलप करने के लिए शासन ने 65 लाख की मशीनें लगाई है। 30 लाख का प्लांट निर्माण किया गया। यह अब तक का सबसे बड़ा प्रोजेक्ट है। जिसे दूध के व्यवसाय उत्पादन को बढावा देने के लिए लगाया गया है। लेकिन अक्सर यहां गठित समिति अपनी मनमानी को लेकर चर्चा में रही है। जिससे दूध गंगा जो पहले पशुपालकों की हितैषी संस्था थी अब किसानों का शोषणकारी संस्था बनता नजर आ रहा है।
क्या कहते हैं संचालक मंडल के अध्यक्ष
संचालक मंडल के अध्यक्ष कमलेश गौतम का कहना है कि कुछ किसान गांव में अन्य किसान जो हमारी समिति में पंजीकृत नहीं है, उनसे ₹25 की दर से दूध का कलेक्शन करते हैं और हमारे पास लाकर ₹40 लीटर में बेचते हैं। इससे कई बार सीजन में अचानक हमारे संस्थान में दूध की आवक बढ़ जाती है। जबकि इतनी खपत होती नहीं है। लिमिट खपत के साथ दूध उत्पादन यहां तैयार किए जाते हैं। पर आवक बढ़ने से जो हमारे साल भर किसान जो नियमित दूध दे रहे हैं उनका दूध खरीदने में हमें दिक्कत हो जाती है। अतिरिक्त आवक होने पर हमें फिर दूध को कम दाम पर बेचना पड़ जाता है। उक्त आदेश जारी करने का हमारा मकसद यही है कि जो नियमित पशु पालक दूध दे रहे हैं उनका नुकसान ना हो। किसान जहां भी बेच उसके लिए स्वतंत्र है ।लेकिन जो व्यवस्था दूध गंगा समिति द्वारा बनाई गई है जिसके जरिए नियमित आवक हो रही है वह बनी रहनी चाहिए। कुछ पशुपालकों को होटल संचालकों ने गुमराह करके शिकायत करवाई है। ऐसे होटल संचालकों का भी मेरा कहना है कि उन्हें दूध की जरूरत है तो हम उन्हें दूध उपलब्ध करवा सकते हैं। या किसान ही तय कर ले कि वे कहां देना चाहते हैं या तो वह निजी में ही दे या अगर हमसे पंजीकृत है तो हमारे पास दे। इस संबंध में किसानों में कुछ भ्रांतियां हो गई है। जिसको लेकर शनिवार को कबीर मंदिर बालोद में बैठक बुलाई गई है ।जहां मामले में दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा ।उन्होंने इस आदेश के प्रस्ताव को लेकर कहा कि ऐसा कोई लिखित प्रस्ताव नहीं हुआ है। संचालक मंडल की बैठक में यह तय किया गया है। यह आदेश भविष्य में होने वाली दिक्कतों को दूर करने को लेकर किया गया है। इसके बारे में विस्तृत समझाइश पशुपालकों को बैठक में दी जाएगी।
किसानों के साथ नहीं होने देंगे अन्याय
भाजपा किसान मोर्चा के जिला मंत्री धर्मेंद्र साहू ने कहा कि मामले की जानकारी आपके माध्यम से मिली है। किसानों के साथ किसी तरह का अन्याय नहीं होने दिया जाएगा। किसान अपना दूध बेचने के लिए स्वतंत्र है। कोई समिति उन पर कोई दबाव नहीं बना सकती। मामले की पड़ताल करते हैं और किसानों के हित में निर्णय हो इसके लिए पूरा प्रयास किया जाएगा।
नगद भुगतान के चलते निजी खरीदारों तक पहले पहुंचाते हैं दूध
पशुपालकों ने बताया कि जहां वे दूध देते हैं अधिकतर निजी ग्राहक या होटल वालों को देते हैं। जो बच जाता है वह दूध गंगा में देते हैं ।ऐसे में निजी लोगों और होटल संचालकों द्वारा दूध विक्रेताओं को नगद भुगतान कर दिया जाता है। और रेट भी उन्हें ज्यादा मिलता है। ऐसा में किसान अपनी सुविधा को देखते हुए पहली प्राथमिकता दूध गंगा को छोड़कर अन्य लोगों को दे रहे हैं। वही दूध गंगा में भुगतान 10 दिन के अंतराल में होता है। महीने के1, 11 और 21 तारीख को भुगतान की व्यवस्था है। किसानों से ₹40 प्रति लीटर में दूध खरीद जाता है। जबकि निजी होटल व ग्राहकों तक वे शुद्ध दूध इससे ज्यादा रेट में बेचते हैं। ऐसे में किसान पहले अपना फायदा देखते हैं। जो कि स्वाभाविक बात भी है।