दिन सुबह 9 बजे पूजन कार्य शुभारंभ
भिलाई. श्रीसंत ज्ञानेश्वर महाराज माऊली संजीवन समाधि सोलवा तीन दिवसीय कार्यक्रम का गाजे बाजे के साथ भव्य शुभारंभ हुआ। इस अवसर पर संत श्री ज्ञानेश्वर महाराज की आकर्षक झांकी के साथ भव्य शोभायात्रा निकाली गई।
शोभायात्रा सेक्टर-1 क्षेत्र का भ्रमण करते हुए आयोजन स्थल पहुंची जहां कार्यक्रम का विधिवत् शुभारंभ हुआ। विजय माहूरकर के सेक्टर-1 निवास पर प्रतिवर्ष की भाति श्रीसंत ज्ञानेश्वर महाराज पुण्यतिथी महोत्सव का आयोजन श्रीगुरुवर सहजानंद महाराज सेवा समिति मंडली द्वारा किया गया। प्रथम
अभिषेक माल्यार्पण किया गया। पंचपदी भजन हरिपाठ
शाम को पंचपदी भजन हरिपाठ का
भिलाई/दुर्ग,।कार्यक्रम का श्री तुकाराम महाराज निकुम मुंबई कीर्तनकार तुकाराम गावडे मुंबई नत्थू महाराज, कोर्ड नंदू महाराज, वरलीकर जयंत महाराज, उपग डे श्रीकांत महाराज, भू ताड़ गुणवंत महाराज, हमदापूरे नागपुर समस्त हरिपाठ मंडली श्री संत ज्ञानेश्वर महाराज समाधी 16 के अपने जीवन में किए गए भक्ति कार्य एवं उनके भजन कीर्तन के बारे में भक्तों को भक्ति मार्ग चलने का संदेश दिया गया। तुकाराम महाराज निकम मुंबई कीर्तनकार नत्थू महाराज कोडे जयंत महाराज उपग डे श्रीकांत महाराज भूतड़ा नागपुर गुणवंत महाराज हमदा पूरे कीर्तनकार मुंबई नागपुर मंडली विजय माहुरकर, प्रशांत कुमार क्षीरसागर, राजेश माहुरकर, एमके. पाटिल, कैलाश धाढसे,
ह भ प श्री नथूजी कोरडे,श्री गुणवंत हमदापुरे, श्री श्रीकांत भुताड, श्री नंदू महाराज वरलीकर, श्री प्रकाशराव शेळके, श्री गुरुदेव, श्री श्रीधर कोरडे, श्री जयंताजी उपगडे, श्री गोपाल श्रीखंडे. मनोज ठाकरे किशोर कुमार
लीलाबाई वानखेड़े, ज्योति मातुरकर, उषा क्षीरसागर का सहयोग रहा। गोपाल काला प्रसाद का बताया महत्व
संत ज्ञानेश्वर ने, सामान्य जनों को भक्ति मार्ग में प्रेरित करने के लिए हरिपाठ और अभंग की रचना की, जिसमें श्री विठ्ठल (श्री कृष्ण के अवतार ) का वर्णन और उपासना का महत्व बताया। विद्वानों के लिए गुढ़ काव्य और अमृतानुभव की रचना की। अमृतानुभव में आत्मा और परमात्मा के एकत्व का वर्णन किया है। इसतरह श्री ज्ञानेश्वर ने, शांकर मत और वैष्णव मत, द्वैत अद्वैत को एक सुत्र मे बांधा। संत तुकाराम ने अपने अंभग रचना मे कहाँ है, ज्ञानियांचा राजा गुरु महाराव। म्हणती ज्ञानदेव तुम्हा ऐसे।।
संत ज्ञानेश्वर, १२९६ इ. में मात्र सोलह साल की उम्र में एक गुफा मे ध्यान लगाकर बैठ गए, जिस को उनके बडे भाई और गुरू निवृत्तिनाथ ने बड़े पत्थर से बंद कर दिया। यही उनकी संजीवन समाधि हैं। यह स्थान महाराष्ट्र के पुणे शहर के पास आलंदी गाँव में है। संत ज्ञानेश्वर ने केवल उपदेश नही दिया, किंतु भगवद्गीता मे वर्णित स्थितप्रज्ञता को अपने जीवन में उतारकर दिखाया।संत ज्ञानेश्वर की महानता का वर्णन करना, “सागर को गागर” में समेटने के जैसा है. महाराष्ट्र में ज्ञानेश्वर प्रेरित वारकरी संप्रदाय सबसे बड़ा संप्रदाय हैं। ज्ञानेश्वर रचित हरिपाठ और ज्ञानेश्वरी का पारायण उनकी दिनचर्या होती है। हर साल आषाढ और कार्तिक मास की एकादशी के लिए, हर गांव से वारकरी पैदल दिंडी (पायी वारी) निकालकर, “श्री ज्ञानेश्वर माउली” का उदघोष करते हुए, श्री विठ्ठल के दर्शन के लिए, पंढरपुर में आते है।संत ज्ञानेश्वर ने सोलह वर्ष की आयु में ही अनेक चमत्कार किये। भैंसे के मुख से वेदमंत्रों का उच्चारण, अपनी पीठ पर रोटियां सेकना, निर्जीव दिवार को चलाना, मृतक को जिवित करना। लेकिन केवल इन चमत्कारों से ही उनकी महानता साबित नहीं होती है। क्योंकि चमत्कारों का सबूत मांगने वाले बुद्धिजीवियों की कमी नहीं है। संत ज्ञानेश्वर का सबसे बड़ा चमत्कार है, भगवद्गीता का विवेचन करने वाले ज्ञानेश्वरी ग्रंथ की रचना, वो भी १४ से १५ साल की उम्र में।
इस अवसर पर आर्यन अजय माहूरकर बाल गोपाल द्वारा दहीहंडी फोड़ी गई। गोपाल काला प्रसाद का विशेष महत्व है, उसमें पोहा लाही दही शक्कर नारियल के टुकड़े फल उसमें जाम अनार सेब फल्ली दाना अचार आम का और नींबू का डाला जाता है। ऐसे मिला के काला बनाया जाता है इसका मतलब यह है कि अपने जीवन में भी अपन सब घुल मिलकर रहें। गरीब हो या अमीर सब मिलकर प्रसाद खाएं। श्री कृष्णा अपने वृंदावन में अपने मित्रों के साथ काला बनाकर खाते थे। उसमें उनका मित्र सुदामा भी था। दही हांडी मटकी बाल गोपाल के द्वारा फोड़ी जाती है, इसका मतलब यह है कि कृष्णा बचपन में सबकी मटकी फोड़ते थे।