मांघी पुन्नी विशेष – चौरेल के त्रिवेणी संगम में तांदुला नदी पर आज लगेगा मेला, पढ़िये कहानी कैसे नाम पड़ा “गौरेय्या”

जगन्नाथपुर/बालोद | ग्राम चौरेल (कुरदी) के पास स्थित गौरैया धाम में आज मांघी पुन्नी मेला का आयोजन किया जाएगा। सुबह 5 बजे यहां तांदुला नदी में शाही स्नान हुआ । उसके बाद दिनभर मेला लगेगा। इस स्थान की पहचान जिला सहित प्रदेशभर में है, क्योंकि यह स्थल भगवान शिव, गौरी, राम से जुड़ा है। यहां का नाम कैसे और क्यों पड़ा, यह आज भी राज बना हुआ है। जब हम यहां पहुंचकर क्षेत्र के साहित्यकारों, लोगों से चर्चा कर इतिहास जाना। तब कई पौराणिक कथा सामने आई। जिसके कारण यहां का नाम गौरैया धाम पड़ा।

कहानी, गीत में भी गौरैया का जिक्र:

तस्वीर सौजन्य – शीतल साहू मोंगरी

आज से 50 साल पहले प्रदेश के जाने माने कवि मुकुंद कौशल ने अपने गीत में गौरैया का जिक्र किया है। छत्तीसगढ़ व्याकरण के निर्माता स्व. चंद्रकुमार चंद्राकर ने भी गाैरेया को लेकर सर्वे किया था। वह टेलीफिल्म बनाना चाह रहे थे लेकिन उनका निधन हो गया। वे गौरेया धाम स्थल को लेकर कई जानकारी जुटा लिए थे। जिसका वर्णन वे अपने साथियों से करते थे।

तीन नदियों का संगम

तस्वीर सौजन्य शीतल साहू मोंगरी(चौरेल) की ओर से सुबह 5 बजे की

गौरेया धाम में तीन गांव के बीच विविध आयोजन होते हैं। मुख्य आयोजन चौरेल में होता है। तांदुला नदी मोहलाई व पैरी घाट से भी जुड़ा है। तीनों इलाके के बीच तांदुला नदी संगम के रूप में हैं। यहां कोंगनी की ओर से लोहारा नाला व भोथली से जुझारा नदी भी मिलती है। 3 गांवों के बीच 3 नदियों का संगम होता है।

इस धाम का नाम व कहानी, विशेषताओं के पीछे यह है चार किंवदंती

किंवदंती 1. यहां गौरिया जाति के एक बाबा आए थे, जो सांप पकड़ने के लिए यहीं निवास करने लगे। वह हमेशा भगवान शंकर की भक्ति में डूबे रहते थे। उनकी मौत के बाद यहां मूर्ति बना दी गई। जो आज भी पीपल पेड़ के नीचे स्थापित है। उनके नाम के अनुरुप मूर्ति को गौरैया बाबा समझकर लोग पूजा करने लगे। नागपुर, महाराष्ट्र के लोग यहां माघी पूर्णिमा में आते हैं। भजन कीर्तन करते हैं।

किंवदंती 2. त्रेतायुग में भगवान शंकर व गौरी यहां पहुंचे थे। समाधि में जाने के पहले शंकर ने गौरी से भोजन बनवाया। चावल को सूपा में रखकर गौरी पानी के लिए गई। वापस आकर देखा तो गौरैया चिड़िया चावल खा रही थी। जिससे जूठा हो गया। तब शिव ने दिव्य दृष्टि से चिड़िया को बुलाया। दंड न देकर एक नारी आधिष्ठाकरी देवी के रुप में यही रहने की बात कहकर प्राण प्रतिष्ठा कराया गया।

गौरैया धाम, माघी पूर्णिमा पर मेला लगता है, हजारों लोग आते हैं।

किंवदंती 3.पूरे छत्तीसगढ़ को पहले दंडकारणीय बोला जाता था, क्यांेकि यहां वनवास के दौरान भगवान राम पहुंचे थे। उस समय आदिवासी समाज के लोगों की बहुलता रही। समाज के लोग देवी- देवता के रूप में गौरा-गौरी को मानते हैं। पूजा अर्चना करते हैं। आज भी दीपावली के दिन गौरा-गौरी की पूजा की जाती है। गौरा-गौरी शब्द से ही इस जगह का नाम गौरैया पड़ा।

किंवदंती 4. यहां सभी देवी-देवता तीर्थ भ्रमण करते हुए शिवरात्रि में आए और समाधि में लीन हो गए। भगवान शिव ने समाधि खुलने के बाद यह देखा कि माता गौरी व गौरैया पक्षी अपने हाथों में चंवर (चावल) लिए भक्ति में लीन हैं। शिव दोनों के सेवाभाव से प्रसन्न होकर उन्हें वरदान दिया। माता गौरी व गौरैया पक्षी दोनों आशीर्वाद मांगा कि हम सदैव आपकी सेवा में लीन रहें। (किंवदंती- स्त्रोत- सीताराम साहू, मिथलेश शर्मा कवि व साहित्यकार)

खुदाई में 132 पाषाण मूर्तियां निकली

इस धाम में स्थित एक प्राचीन बावली में खुदाई से 8वीं से 12वीं सदी की लगभग 132 पाषाण मूर्तियां निकली है। जिन्हें मंदिर प्रांगण में रखा गया है। छत्तीसगढ़ के ऐतिहासिक परिदृष्टि से यह क्षेत्र फणी नागवंशी शासकों के अधीन था। यहां से प्राप्त मूर्तियों एवं भोरमदेव मंदिर में स्थित मूर्तियों में साम्यता है। इस धाम में प्राचीन मंदिरों का विशिष्ट समुह है। यहां राम-जानकी मंदिर, भगवान जगन्नाथ मंदिर, ज्योतिर्लिंग दर्शन, दुर्गा मंदिर, राधा कृष्ण मंदिर, पंचमुखी हनुमान मंदिर, बूढ़ादेव मंदिर, संत गुरु घासीदास मंदिर, संत कबीर मंदिर, वैदिक आश्रम हैं। बालोद जिले से अन्य स्थानों व दीगर राज्यों से भी लोग आते हैं।

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