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मिसाल जिंदगी की: एक आंख से दिव्यांग, गरीबी में जीना पर दूसरों के जीवन में भरते हैं खुशियां,

लोग कहते हैं इन्हें पर्यावरण प्रेमी और फाइल वाले भैया

गजब का जुनून: लोगों के जन्मदिन और शादी सहित खास मौकों पर पहुंचते हैं पौधे और फाइल का गिफ्ट देने

स्कूल में करते हैं स्वीपर का काम पर प्रकृति को बचाने, पौधे लगाने का जज्बा 24 साल से बरकरार

लोगों को करते हैं पर्यावरण संरक्षण के लिए प्रोत्साहित, इनके लगाए पौधे आज पेड़ भी बन चुके

बालोद। विश्व पर्यावरण दिवस हर साल 5 जून को मनाया जाता है। अब धीरे-धीरे गर्मी इतनी बढ़ चुकी है कि लोगों का जीना बेहाल हो रहा है। इस साल तापमान और बढ़ते कम पर है। ऐसे में लोगों को पर्यावरण की चिंता करनी जरूरी है।

पर लोग अपने स्वार्थ में ही जी रहे हैं। इस बीच हम बालोद नगर के जवाहर पारा के एक ऐसे 34 वर्षीय युवक की कहानी बता रहे हैं।

जो दूसरों के लिए प्रेरणास्रोत हैं। यह है रुपेश कुमार सोनकर। जो बुनियादी उच्चतर माध्यमिक शाला पाररास बालोद में अल्प मानदेय पर अंशकालीन स्वीपर का काम करते हैं। बाएं आंख से दिव्यांग है, गरीबी में जीते हैं फिर भी लोगों की वे चिंता करते हैं। लोगों को स्वच्छ हवा मिले, पर्यावरण साफ शुद्ध हो इस बात की चिंता करते हुए 2001 से पर्यावरण बचाने, पौधे लगाने का काम कर रहें है। वे खुद ही लोगों के जन्मदिन , शादियों सहित विशेष अवसरों पर लोगों को पौधे और रिकॉर्ड फाइल गिफ्ट करने के लिए पहुंच जाते हैं। उन्हें लोग अक्सर साइकिल पर बाल्टी या प्लास्टिक के टूटे-फूटे कबाड़ में गमला तैयार कर और थैला में फाइल लिए हुए घूमते देख सकते हैं। शादी एवं जन्मदिन , विभिन्न अवसर पर उपहार के रूप में लोगों को पौधा भेंट करते हैं। उन्हें संरक्षण करने की प्रेरणा देते हैं। लोग उन्हें इस काम के चलते पर्यावरण प्रेमी के साथ फाइल वाले भैया भी कहते हैं। रूपेश कहते हैं कि आज पौधा लगाना बहुत आवश्यक हो गया है। आज गर्मी के मौसम में सूर्य की तपिश से इंसान का सेहत खराब हो रहा है। पारा 44 से अब 50 पार हो चुका है। आने वाले समय में 60 से 80 डिग्री तक भी पहुंच सकता है। इसका प्रभाव आने वाले भविष्य में पड़ेगा। इसलिए सभी से प्रार्थना करते हैं कि अधिक से अधिक पौधे लगाए, उनका संरक्षण करें। जिससे जीवन हरा भरा और सुखमय हो। अधिक से अधिक पौधे लगाए और देश की हरियाली में अपनी सहभागी बने।
दिव्यांग होने के साथ गरीबी में जीवन गुजार रहे रूपेश सोनकर का दूसरों के प्रति इस तरह की सोच सराहनीय है। वह प्रकृति के साथ दूसरों के सेहत की भी चिंता करते हैं और इसी सोच के साथ में 2001 से यह पहल करते आ रहे हैं। स्कूलों में अध्यनरत बच्चों को जन्मदिन पर शिक्षकों के हाथों को फाइल और पौधा भेंट कर बच्चों का मान सम्मान बढ़ाते हैं। विद्यालय परिसर में भी वे कई जगह पौधारोपण कर पर्यावरण संरक्षण हेतु प्रेरित करते हैं। उनके प्रयास से बालोद नगर के 20 वार्डों में कई जगह पौधे लगाए जा चुके हैं जो आज पेड़ का रूप ले चुके हैं। लोग उनकी मुक्त कंठ से प्रशंसा करते हैं।

कबाड़ से तैयार करते हैं गमला

लोगों को प्लास्टिक के बर्तनों बाल्टी आदि को ना फेंकने की अपील करने के साथ उनका गमला तैयार कर पौधा सुरक्षित करने की भी सीख देते हैं ।कबाड़ के जुगाड़ से बने गमले में वे कली के माध्यम से पौधे तैयार करते हैं। फिर उन पौधों को विभिन्न अवसरों पर निशुल्क भेंट कर रोपण के लिए ले जाते हैं और संरक्षण की प्रेरणा देते हैं। स्कूल में अंशकालीन सफाई कर्मचारी के रूप ने 2 घंटे काम करते हैं और बाकी समय में अन्य काम में भी लगे रहते हैं। साथ ही पर्यावरण बचाने का प्रयास खुद के पैसे से अल्प मानदेय में करते आ रहे हैं। लोगों को भी पौधों के साथ-साथ गिफ्ट के रूप में रिकॉर्ड फाइल, मार्कशीट फाइल आदि भेंट करते हैं। शासन प्रशासन से उन्हें किसी तरह से मदद नहीं मिलती फिर भी हिम्मत नहीं हारे हैं और अनवरत पर्यावरण बचाने की दिशा में अपना कदम बढ़ा रहे हैं।

गिनीज बुक में दर्ज हो रिकार्ड

उनके इस प्रयास को देखकर उनसे प्रेरणा लेने वाले और उनसे गिफ्ट पाने वाले लोग उनका नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज करवाने की मांग करने लगे है। लोग उनकी प्रशंसा करते हैं। क्योंकि इतने लंबे समय से इस तरह का प्रयास शायद ही कोई कर रहा होगा, ऐसा लोगों का मानना है। पर्यावरण दिवस के दिन भी से अपने इस जागरूकता के काम में लग रहे और रेलवे फाटक के पास चित्रसेन साहू के यहां दिवस मनाने ,पौधा भेंट करने के लिए पहुंचे थे।

उनके कुछ खास प्रयास जो आज भी हैं यादगार

रूपेश सोनकर ने बताया कि मेरे पर्यावरण की दिशा में कार्य करने से लोगों को यह प्रेरणा मिली है कि रायपुर की एक शादी समारोह में 350 पौधे दिए गए थे और जन्मदिन आज प्रायः भारत में अधिकतर मनाया जाता है। मैं हर जन्मदिन में पौधे लगवाता हूं और पौधे देता हूं। दूसरा प्रेरणा कबाड़ से लोग घरों में गमले बनाए हैं। तीसरा प्रेरणा व्हाट्सएप फेसबुक में सभी अपने जन्मदिन की स्टेटस लगाते हैं जिसकी शुरुआत मैंने की थी और रिप्लाई भी मुझे हमेशा मिलता है। इस तरह लोग रिप्लाई का भी स्क्रीनशॉट लेकर पोस्ट करते हैं और वे पौधे गिफ्ट करने बढ़ावा देते हैं। हर घर जन्मदिन में जाता हूं और पौधे निशुल्क बांटता हूं और हर घर हरियाली का भी संदेश देता हूं ।

2001 से हुई शुरुआत

रूपेश बताते हैं कि जन्मदिन में उपहार देने की शुरुआत मैंने सन 2001 से की थी। जो आज तक जारी है। सन 2011 में मैंने निशुल्क का पौधा देना शुरू किया था जो आज तक चले आ रही है।उनके सहयोगी रविंद्र कुमार नेताम, छगन यादव, शुभम साहू, पूर्वी जैन, नरेंद्र सोनवानी, मोनीषा बनो आदि हैं जो उनका इस मुहिम में साथ देते हैं।

ऐसे चलता है घर

रूपेश जवाहर पारा वार्ड नंबर 7 रिठिया तालाब पार बालोद में मां के साथ रहते हैं। उनके पिता ने दूसरी मां लाकर उनका साथ छोड़ दिया है। बचपन से उन्हें मां ने पाल-पोसकर बड़ा किया है। रूपेश ने बताया मैं भी दिव्याग हूं और मां भी दिव्यांग है। एक बड़ा भाई है जिनकी ऑटो पार्ट्स गेराज की दुकान है। उनसे ही घर का खर्चा चलता है।

आगे की ये है रुपेश की योजना

खेतों में जाकर किसानों से अनुमति लेकर पौधे लगाना चाहते हैं। अगर कहीं सरकारी नौकरी लग जाए और वेतन अच्छी हो तो तो पौधे की संरक्षण हेतु लोहे की रिंग बनाकर रोड किनारे पौधे लगाकर कुछ रिंग को घेराबंदी करना चाहते हैं। एक समिति बनाकर अगर शासन प्रशासन से कुछ और मदद मिले तो पाररास उमरादाह, बायपास रोड के दोनों किनारे 10000 पौधे लगाने का लक्ष्य है। कुछ गरीब बच्चों को अपने पैसे से पढ़ाना और कुछ गरीबों की मदद करना है। वेतन अगर अच्छा होता तो जो मैं फाइल कम रेट वाला देता हूं वह फाइल में महंगे और अच्छी क्वालिटी का देने की योजना है। आने वाले समय में बालोद ही नहीं आसपास के स्कूलों में भी सभी बच्चों के हाथों स्कूल में पौधा लगाना और उनके जन्मदिन में पौधा उपहार और फाइल उपहार के रूप में देकर उन्हें सम्मान पूर्वक प्रोत्साहित करने की योजना है। आज भी कोई किसी मदद के लिए बोलते हैं तो मैं हमेशा मदद करते आया हूं और आगे भी करता रहूंगा।

कैसे प्रेरणा मिली ये सब करने की

बालोद के एक बुक में जो कॉपी खरीदते थे उसमें कवर लगाने के लिए जेल दिया जाता था। जिसमें दो-चार टिप्स लिखी रहती थी। उसमें से एक टिप्स यह भी था कि अपने जन्मदिन पर पौधे अवश्य लगाए। वीडियो और अखबारों में पौधों के बारे में देखते थे। यहीं से उन्हें प्रेरणा मिली और काम शुरू किया।

पर्यावरण के लिए प्रयास किस तरह करते हैं

घरों में जो बाल्टी टब जो उपयोग होता है जो फूट जाते हैं उन्हें कबाड़ में न बेचकर उनका गमला बनाकर पौधे की कली तैयार करते हैं और जब वह कली में पत्ती आ जाता है तब पौधे को निशुल्क उपहार के साथ व कार्यालय परिसर में या खुले जगह में लगवा देता हूं। पौधों की संरक्षण के लिए लकड़ी के घेरे या कांटों का घेरा किया जाता है।
विद्यालय परिसर में घेरा करने की आवश्यकता नहीं पड़ती क्योंकि वहां बाउंड्री पहले से रहते हैं

शहर से लेकर गांव के स्कूल में संदेश

पूरे बालोद शहर में 20 वार्ड है उसमें से कहीं नहीं छूटता कोई भी वार्ड नहीं छूटता और आसपास गांव भी जाते हैं। अमलीडीह स्कूल,सरस्वती शिशु मंदिर बालोद, हायर सेकेंडरी स्कूल पाररास, आदर्श कन्या स्कूल, पूर्व माध्यमिक शाला एवं हायर सेकेंडरी स्कूल बालोद, प्रोन्नत कन्या पुत्री शाला जवाहरपारा बालोद में वे पहल कर चुके हैं। 12 दिसंबर 2012 को जब वे पुत्री शाला में स्वीपर थे तो उस दौरान 200 बच्चों और स्टाफ को स्वयं के खर्चे पर फाइल गिफ्ट कर एक रिकॉर्ड बनाया था। आज भी उस बैच के बच्चों ने उनके फाइल संभाल कर रखे हैं।

फोन करके लोग बुलाते हैं पौधा उपहार में लेने, दूसरे भी अपना रहे उनकी मुहिम

रूपेश ने बताया लोग प्रेरित होकर आज भी मुझे फोन के माध्यम से अपने और बच्चों के जन्मदिन पर बुलाते हैं। 10 दिन पहले आमंत्रण दे चुके होते हैं और पौधे की मांग तो मनचाहा करते हैं। जैसे गुलाब कटहल बरगद आम नीम बेल किचन गार्डन भी मांगते हैं जैसे मिर्ची भाटा । कुंदरू पारा बालोद निवासी रविंद्र कुमार नेताम की जब मैं 2023 में शादी थी तो उन्होंने अपनी शादी पर उपहार के रूप में बरगद का पेड़ लाने का अवसर दिया था। उनके कार्य से प्रेरित होकर कुंदरु पारा बालोद निवासी दीपक यादव ने भी शादी के अवसर पर उपहार स्वरूप पौधे दिए हैं और वह पौधा मुझसे ही निशुल्क ले गए हैं। ऐसे ही संजय यादव एलआईसी एजेंट ने भी उनसे से निशुल्क पौधा ले जाकर शादी में गिफ्ट किए हैं और पर्यावरण की संरक्षण हेतु प्रेरित किए। ऐसे और भी कई उदाहरण हैं।

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