खास खबर: रिश्ता तय होने के बाद बीएड डिग्री के कारण बेरोजगार हो गया था शिक्षक फिर भी दुल्हन हुई राजी, टीका विवाह में लिए फेरे,पत्नी ने कहा: दोनों पढ़े लिखे हैं कोई ना कोई जरिया निकाल लेंगे रोजगार का, पढ़िए क्या होता है यह टीका विवाह……

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एक विवाह ऐसा भी: आदिवासी संस्कृति के संरक्षण के लिए बेरोजगार हुए शिक्षक ने किया टीका विवाह, सगाई कर ले जाते हैं ससुराल में वधु को, पूरे रस्म होते हैं वहीं पर

पूरा खर्च वर पक्ष उठाने के कारण ठेका की तरह प्रचलित होने से शादी का नाम पड़ा टीका

विवाह स्थल पर धान की बाली, ताड़ ,छिंद के पत्तों से सजा था मंडप, बूढ़ादेव की झांकी वाला सेल्फी जोन भी रहा आकर्षण का केंद्र

माधुरी यादव,बालोद। डौंडीलोहारा ब्लॉक के ग्राम कुदारी (दल्ली) में देव कुमार (पप्पू) और फगनी( फुग्गी) की शादी आदिवासी रीति रिवाज के साथ “टीका विवाह” पद्धति के तहत हुई। इस टीका विवाह के अंतर्गत शादी का सारा खर्चा उठाने का ठेका या जिम्मेदारी वर पक्ष को होती है। खास बात यह है कि जब वर पक्ष, वधू के घर जाकर उससे सगाई करते हैं तो उसी दिन ही होने वाली दुल्हन को अपने घर ले आते हैं। साथ में कुछ मेहमान भी आते हैं फिर शादी का मंडप वधू पक्ष के घर पर नहीं बल्कि वर के घर ही सजता है और सभी रीति रिवाज तीन दिनों तक चलने वाले विवाह की रस्में वर के घर में ही संपन्न होते हैं। शादी के दूसरे दिन वधू पक्ष से माता-पिता अन्य रिश्तेदारों का चौथिया के रूप में आगमन होता है और अपनी बेटी को नवजीवन का आशीर्वाद देते हैं। देव कुमार और फगनी की टीका शादी शनिवार को चौथिया आगमन और लगन के साथ संपन्न हुआ। तो वही रविवार को धरम टीकावन और प्रीति भोज का कार्यक्रम रखा गया था। रविवार को नवदंपति को आशीर्वाद देने के लिए पहुंचे लोगों के बीच विवाह स्थल की आदिवासी परंपरा के अनुसार की गई सजावट चर्चा का विषय रही। लुप्त हो चुकी टीका विवाह को अपनाने के साथ ही अपने आदिवासी संस्कृति के तहत मंडप सजावट, सेल्फी जोन यह सब अनूठा प्रयास देव कुमार कोरेटी और उनके साथियों द्वारा किया गया था।

बीएड डिग्री के कारण बन गया बेरोजगार शिक्षक, अब नौकरी की है तलाश फिर भी वधू शादी के लिए हो गई राजी

आमतौर पर वधू अपने लिए सरकारी नौकरी वाला दूल्हा ही सोचते हैं। इस रिश्ते की जब शुरुआत हुई तो देव कुमार एक सरकारी शिक्षक था। लेकिन बीएड डिग्री धारकों को शासन द्वारा हटाए जाने के बाद से वह बेरोजगार हो गया। फिर भी उनकी होने वाली दुल्हन ने परिस्थितियों को समझा और नए जीवन की शुरुआत देव कुमार के साथ ही करने का निर्णय लिया। इस शादी की यह बड़ी बात है। हाई कोर्ट के फैसले और शासन के निर्देश के अनुसार बीएड डिग्री धारी होने के कारण उन्हें सहायक शिक्षक पद से हटा दिया गया और वे बेरोजगार हो गए। जब अंतागढ़ क्षेत्र में शिक्षक रूप में सेवा दे रहे थे तो इस दौरान ही उनका ग्राम मरकाकसा (छुरिया) जिला राजनांदगांव के रहने वाले राम सिंह नेताम की बेटी फगनी (फुग्गी) से रिश्ता तय हो चुका था लेकिन सगाई का रस्म बचा हुआ था। पिछले साल दशहरा के समय तय हो चुके रिश्ते के बाद जब अचानक शासन और कोर्ट के आदेश पर उन्हें अपनी नौकरी गंवानी पड़ी तो वह एकाएक बेरोजगार हो गए। कुछ दिनों के लिए तो वधू पक्ष इस बात से चिंतित था कि अगर हम अपनी बेटी को उन्हें देते हैं तो आगे जीवन गुजारा कैसे होगा। क्योंकि वे अब शिक्षक नहीं रहे हैं। पर उनकी होने वाली पत्नी फगनी ने हालातो को समझा और खुद भी पढ़ी लिखी होने के कारण उन्होंने इस शादी के लिए सहमति जताई और बात आगे बढ़ी। लंबे समय से रिश्ता तय होने के बाद भी शादी रुकी हुई थी लेकिन वर वधु दोनों की रजामंदी और समझदारी से शादी की तारीख तय कर टीका विवाह करने का निर्णय लिया गया। बेरोजगार होने के बावजूद देव कुमार ने टीका विवाह की जिम्मेदारी लेते हुए वधु के पक्ष की ओर से भी शादी का पूरा खर्च उठाया और धूमधाम से शादी की।

हम दोनों शिक्षित हैं, आज नहीं तो कल दूसरी नौकरी मिल जाएगी

इस शादी पर वधु फगनी ने कहा कि मैं भी पढ़ी लिखी हूं और पति भी पढ़े लिखे हैं। समय बदलता है परिस्थितियां बदल जाती है। आज भले ही मेरे पति बेरोजगार हो गए हैं। पर आने वाले समय में कुछ न कुछ रोजगार या नौकरी चाहे सरकारी हो या निजी जरूर मिल जाएगी। पढ़ाई व्यर्थ नहीं जाएगी। इसलिए उन्होंने देव कुमार से रिश्ता कायम रखने के लिए अपने परिवारजनों को मनाया और फिर सभी शादी के लिए तैयार हो गए। जब होने वाले पति बेरोजगार हुए तो कुछ दिनों के लिए उनके परिवार में एक दुख और दुविधा भरा क्षण आया था और फिर दिन बीतते गए। पर जोड़ियां कहते हैं ऊपर वाले पहले से तय करके रखे हैं। फगनी को देव कुमार की ही दुल्हन बननी थी, सो टीका शादी के तहत दोनों ने फेरे लेकर नए जीवन की शुरुआत कर ली है।

सेल्फी जोन बना आकर्षण का केंद्र

शादी में आशीर्वाद समारोह के दौरान दूल्हा-दुल्हन को जहां बैठाया गया था वहां पर आधुनिकता की चकाचौंध से दूर स्टेज या कृत्रिम मंच सजाने के बजाय प्राकृतिक चीजों छिंद के पत्तों, ताड़ आदि और अन्य चीजों से बूढ़ादेव की झांकीनुमा सेल्फी जोन तैयार किया गया था। जिसमें आने वाले रिश्तेदारों ने वर वधु के साथ सेल्फी ली और इस पल को यादगार बनाया। साथ ही स्वागत द्वार भी इसी तरह अनूठे तरीके से तैयार किया गया था। धान की बालियों से भी विशेष सजावट की गई थी।

वर के पिता हैं शिक्षक, संस्कृति संरक्षण का अनूठा प्रयास

क्षेत्र के संकुल समन्वयक ओंकार प्रसाद सोनसारवा ने बताया कि वर के पिता जगन्नाथ कोरेटी मेरे ही संकुल के अंतर्गत कर्रेगांव मिडिल स्कूल में शिक्षक हैं।

उनके बेटे की शादी में गया तो यह सब दृश्य मुझे अद्भुत लगा। हमारे वनांचल के क्षेत्र में यह पहली शादी थी। जहां पूरे आदिवासी संस्कृति की झलक देखने को मिली। पहली बार मैंने इस तरह की टीका शादी देखी।
जगन्नाथ कोरेटी शिक्षित परिवार होने के बावजूद में आधुनिकता की ओर नहीं लौटे हैं बल्कि अपनी आदिवासी संस्कृति को अपनाते हुए पूरे रीति रिवाज के साथ शादी संपन्न कराई। यह गांव ग्राम पंचायत दल्ली का आश्रित गांव कुदारी है। जो जंगल और पहाड़ियों से घिरा हुआ है। बालोद जिले में ऐसी शादियां बहुत कम ही नजर आती है।

कैसे मिला आइडिया

वर देव कुमार ने बताया कि वे जब कांकेर जिले के अंतागढ़ क्षेत्र में ग्राम चिचगांव के प्राइमरी स्कूल में सहायक शिक्षक के रूप पदस्थ थे। तो उन्होंने उस क्षेत्र में आदिवासी संस्कृति को करीब से समझा था और वहां इस तरह की शादी देखी थी। बालोद जिले में भी ग्राम लिमऊडीह में एक बार इस तरह की शादी हुई थी । उनके मन में भी यह विचार था कि वह भी अपनी शादी को कुछ अलग ढंग से करेंगे और उन्होंने खुद ही इसकी योजना बनाई और टीका विवाह सहित आदिवासी संस्कृति से मंडप और पूरे विवाह स्थल की सजावट कर एक नवाचार किया। सजावट में उन्होंने स्वयं अपने दोस्तों के साथ हाथ बटाया।

लड़की पक्ष को नहीं करना पड़ता घर पर कोई आयोजन

टीका विवाह पद्धति की खास बात ये है कि इसमें लड़की को सगाई के दिन ही वर द्वारा अपने घर ले जाते हैं और फिर उन्हीं के घर में रहते हुए ही दोनों की शादी एक ही मंडप में पूरे तीन दिनों के रीति रिवाज के साथ होती है। एक साथ ही दोनों को मंडप के नीचे तेल, हल्दी मायन सहित अन्य रिवाजों से उनकी शादी कराई जाती है। लगन से लेकर कन्यादान तक और लड़की को जो भी भेंट उपहार देना होता है वह सब लड़के के घर में ही की जाती है। लड़की पक्ष के लोग शादी के दूसरे दिन लड़के के घर जाते हैं। पूरी शादी का जिम्मा लड़का पक्ष ही उठाते हैं।

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