बालोद जिले का अनोखा मंदिर है हरदेलाल, देव दशहरा का होगा मेला, आज चढ़ेंगे मनोकामना मिट्टी के घोड़े,,,

बालोद। जिले के ग्राम घीना और डेंगरापार के बीच स्थित डैम के किनारे आज एक विशेष दशहरा का आयोजन होगा। जिसे ग्रामीण देव दशहरा कहते हैं। इस देवदशहरा में आसपास के 10 से ज्यादा गांव के ग्रामीण इकट्ठा होते हैं और पूजा पाठ के साथ दशहरा मनाते हैं। यहां रावण का पुतला नही जलाते तो वहीं सबसे खास बात यह है कि इस स्थल पर एक हरदे लाल बाबा का मंदिर है। जहां मिट्टी से बने घोड़े की प्रतिमा चढ़ाने का रिवाज है और वर्षों से यह चला आ रहा है। यह प्रतिमा मनोकामना पूरी होने पर चढ़ाई जाती है। हर साल यहां प्रतिमा चढ़ाने वाले की संख्या भी बढ़ती जा रही है। इस साल भी आज 11 अक्टूबर मंगलवार देवदशहरा पर श्रद्धालु मिट्टी के घोड़े चढ़ाने के लिए पहुंचेंगे। आयोजन समिति द्वारा मंदिर स्थल पर मेला भी आयोजित किया जाता है। तो साथ ही विविध कार्यक्रम होते हैं। ज्ञात हो कि ग्रामीणों व शासन प्रशासन के कुछ सहयोग से इस जगह का उत्तरोत्तर विकास हो रहा है तो वहीं ग्रामीणों को आशा है कि इस जगह को शासन द्वारा धार्मिक पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जाए और शासन द्वारा ज्यादा से ज्यादा फंड देकर इस जगह का और ज्यादा विकास किया जाए। स्थानीय विधायक व संसदीय सचिव कुंवर सिंह निषाद भी यहां के विकास को लेकर विशेष ध्यान दे रहे हैं। उनकी पहल से यहां कला मंच व शेड निर्माण का काम हुआ। जिसका लोकार्पण पिछले साल किए हैं। उनके प्रयास से गांव में 2.50 लाख व मन्दिर परिसर में 2 लाख का निर्माण हुआ है। एक मंच भी बना है। वर्तमान में यहां चढ़ाए गए मिट्टी के घोड़ों की प्रतिभाओं को सहेजने के लिए शेड चबूतरा बनाया गया है। रंगरोगन हुआ है व कुछ अन्य मूर्तियां भी स्थापित की गई हैं। पहले से मंदिर का उद्धार तो हुआ है पर अभी भी विकास अपेक्षित है। जिसकी आस ग्रामीणों को है। घीना के आशीष जैन, कैलाश सिन्हा का कहना है कि वर्षों से ग्रामीण दानदाताओं की मदद से इस मंदिर का संरक्षण करते आ रहे हैं। इसकी ख्याति दूर-दूर तक फैली हुई है। देव दशहरा में आस्था की भीड़ जुटती है। बालोद ही नहीं बल्कि आसपास के कई जिले के लोग इस देव दशहरा के साक्षी बनते हैं और अपनी मनोकामना पूरा होने पर यहां प्रतिमा चढ़ाने के लिए आते हैं। यह बालोद जिले का अपनी तरह का एक अलग ही मंदिर है।

नवरात्रि के बाद आने वाले मंगलवार का दिन तय

नवरात्रि के बाद आने वाले मंगलवार को हर साल पांड़े डेंगरापार के हरदेलाल मंदिर में अनोखा दशहरा मनाया जाता है। इस बार का आयोजन 11 अक्टूबर को हो रहा है। जिनकी मनोकामना पूरी हुई है, ऐसे लोग हरदेलाल को मिट्टी के घोड़े भेंट करने पहुंचेंगे। आठ से 10 गांवों के ग्रामीण वर्षों से इस मंदिर परिसर में देव दशहरा मना रहे हैं। हरदेलाल बाबा के प्रति आस्था के कारण डेंगरापार में आज तक अलग से विजयादशमी नहीं मनाई जाती, न ही रावण का पुतला जलाया जाता है। मंदिर समिति के सलाहकार ईश्वर साहू, उपसरपंच गौकरण देवदास ने बताया ग्रामीण हर साल 150 से 200 घोड़े मंदिर में चढ़ाते हैं। हरदेलाल की सवारी घोड़ा होने के कारण ग्रामीण घोड़ा चढ़ाते है। 1876 में घीना डैम का निर्माण हुआ। मंदिर डैम के किनारे है। प्राकृतिक वादियों के बीच 60 एकड़ से ज्यादा क्षेत्रफल में खुला मैदान भी है। बुजुर्गों के अनुसार तीन पीढ़ियों के पहले से आयोजन हो रहा है। डेंगरापार, हड़गहन, घीना, अहिबरन नवागांव, कसहीकला, लासाटोला, गड़इनडीह, परसवानी के 5 से 7 हजार से अधिक ग्रामीण हर साल इस दशहरा में एकत्रित होते हैं। जिन लोगों की मन्नत पूरी हुई है। वे उपहार स्वरूप हरदेलाल को घोड़ा प्रतिमा चढ़ाते है। बालोद सहित दुर्ग, भिलाई, धमतरी, राजनांदगांव जिले से भी लोग घोड़ा चढ़ाने आते हैं।

कौन थे हरदेलाल?

हरदेलाल असल में कौन थे। इसका ग्रामीणों के पास आज तक कोई पुख्ता प्रमाण नहीं है। मंदिर के बैगा कृष्णा नेताम, अध्यक्ष अवतार सिंह कंवर ने बताया कि बुजुर्गों से सुनी कहानी के अनुसार करीब तीन सौ साल पहले एक व्यक्ति घोड़े में सवार होकर आए थे। जिसे ग्रामीण चमत्कारी मानते थे। उसका नाम हरदे लाल था। विक्षिप्त व अन्य परेशानी से पीड़ित लोगो की वे इलाज करते थे। अचानक वे गायब हुए, उनके जाने के बाद उनकी याद में ग्रामीणों ने यहां मन्दिर बनवाया।

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