अपनी भाषा और संस्कृति को बचाने के लिए एकजुट हुए आदिवासी, गुरुर में मनाया गया विश्व आदिवासी दिवस

गुरुर।गुरुर में सोमवार 9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस मनाया गया। इस अवसर पर बड़ा देव मंदिर प्रांगण व अंबेडकर चौक गुरुर में सुबह 10 बजे से ही विभिन्न आयोजन शुरू हुए। सर्व आदिवासी समाज द्वारा रैली निकालकर आम सभा आयोजित की गई। जो गोंडी रेला पाटा के साथ निकाली गई। इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि तिरुमाल विनोद नागवंशी, प्रदेश सचिव सर्व आदिवासी समाज छत्तीसगढ़ थे। विशिष्ट अतिथि तिरुमाल प्रेमलाल कुंजाम प्रवक्ता जिला सर्व आदिवासी समाज बालोद थे। अध्यक्षता प्रीतम नागवंशी अध्यक्ष सर्व आदिवासी समाज तहसील गुरुर ने की। विशेष अतिथि के रुप में समस्त तहसील अध्यक्ष गोंडवाना समाज, हल्बा समाज कण्डरा समाज, समस्त परिक्षेत्र अध्यक्ष गोंडवाना समाज, हलबा समाज, कण्डरा समाज मौजूद रहे। इस आयोजन में विश्व आदिवासी दिवस पर समाज के लोगों ने अपनी भाषा व संस्कृति के संरक्षण व संवर्धन को लेकर चिंतन किया व एकजुट रहने का आह्वान किया गया। साथ ही अपने हक की लड़ाई लड़ने के लिए भी प्रोत्साहित किया गया।


दुनियाभर में आज आदिवासियों की संख्या में गिरावट आती जा रही है. आदिवासी ही वे लोग है जिनसे हमें प्रकृति को बचाने की सिख मिलती है की किस प्रकार हमें अपनी प्रकृति माता को प्रेम करना चाहिए। आदिवासियों की घटती जनजाति को बढ़ाने के लिए और आदिवासी के अस्तित्व को बचाने के लिए हर साल 9 अगस्त को दुनियाभर में अंतरराष्ट्रीय आदिवासी दिवस मनाया जाता है। बता दें कि विभिन्न सरकारों और संगठनों द्वारा आदिवासियों के उत्थान के प्रयास लगातार किए जा रहे हैं. बता दें कि इस बार World Tribal Day 2021 पर संयुक्त राष्ट् के आदिवासी दशक की थीम है “बचेगी भाषा तभी जीवित रहेगी संस्कृति”. इस आदिवासी दशक की घोषणा का मूल उद्देश्य सिर्फ भाषा के संरक्षण व संवर्धन पर केंद्रित है.एक रिपोर्ट के मुताबिक़ आज पूरी दुनिया में आदिवासियों की संख्या घटकर 37 करोड़ के आस पास हो गयी है. यह कहना गलत नहीं होगा की कहीं न कहीं मॉर्डन लोग ही आदिवासियों के अस्तित्व के दुश्मन है. क्योंकि हर साल न जाने कितने पेड़ और जंगल का सफाया किया जाता है सिर्फ अपने फायदे के लिए। लोग इस फायदे में यह भूल जाते हैं की हम आदिवासियों के घर यानी उनके जंगल को नष्ट कर रहे हैं.

तेजी से घट रही आदिवासियों की आबादी

यह हमारे लिए भी काफी भयावह है की जिस जनजाति से हमारी शुरुआत हुई, हम शुरूआत में कैसे अपना जीवन व्यापन करते थे, इन्सानो का क्या रहन सहन था. आज उनकी आबादी तेजी से घट कर सिर्फ 37 करोड़ रह गयी है. इसी के लिए दुनिया भर में रहने वाले आदिवासी समुदाय के लोगों की संस्कृति, भाषा और अस्तित्व को बचाने के लिए हर साल 9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस को मनाया जाता है ताकि लोगो को आदिवासी समुदायों के अस्तित्व के बारे में जागरूक किया जा सके.
बता दें कि आज भी आदिवासी समुदाय के लोग समाज की मुख्यधारा में शामिल नहीं हुए हैं, जिसके चलते ये आज भी काफी पिछड़े हुए हैं. बात करे अगर मध्य प्रदेश में आदिवासी समुदायों की तो मध्यप्रदेश की संस्कृति में इसकी आदिवासी संस्कृति भी बेहद अहम है. यहाँ करीब 46 आदिवासी जनजातियां इस वक्त मौजूद हैं और अपना जीवन यापन कर रही है. मध्यप्रदेश में पूर्ण जनसंख्या के 21 फीसदी लोग आदिवासी समुदाय से हैं.

भारत में मध्यप्रदेश में सबसे ज्यादा आदिवासी लोगों की जनसंख्या पाई जाती है. जिसमे गोंड, भील और ओरोन, कोरकू, सहरिया और बैगा जनजाति के लोग बड़ी संख्या में निवास करते हैं. ये जनजाति छग में भी हैं।गोंड जनजाति के बारे में कहा जाता है की यह एशिया का सबसे बड़ा आदिवासी ग्रुप है, जिनकी संख्या 30 लाख से अधिक है. सरकारों द्वारा आदिवासियों के सरंक्षण के लिए हमेशा से ही प्रयास किये जाते रहे है. कुछ आदिवासी समुदायों के लोगो ने मॉडर्न रहन सहन को अपना लिया है लेकिन वहीँ अभी कुछ लोग हैं जो अभी भी अपनी संस्कृति को नहीं छोड़ना चाहते। इस साल के विश्व आदिवासी दिवस की थीम है “किसी को पीछे नहीं छोड़नाः स्वदेशी लोग और एक नए सामाजिक अनुबंध का आह्वान”. है।
कैसे हुई शुरुआत

साल 1994 में अमेरिका से अंतरराष्ट्रीय आदिवासी दिवस की शुरुआत हुई थी. दरअसल अमेरिका में पहली बार साल 1994 में आदिवासी दिवस कार्यक्रम का आयोजन किया गया था. जिसके बाद से हर साल 9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस का आयोजन किया जाता है.

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