November 21, 2024

“एक पेड़ बिटिया के नाम”: 8 साल पहले बिच्छू के डंक से दुनिया से चल बसी है बेटी, उनके याद में पिता ने लगाया था पौधा, आज बन गया है पेड़,अब दूसरों के बच्चों की सुरक्षा के लिए चला रहे जागरूकता अभियान, शहर में चिपका रहे पंपलेट

सुप्रीत शर्मा, बालोद। एक ओर जहां लोग एक पेड़ मां के नाम से अभियान चला रहे तो बालोद के संजय नगर का शर्मा परिवार एक पेड़ बेटी के नाम का अभियान आठ साल से चला रहा है। आज हम उसी एक ऐसे पिता और बेटी की कहानी बता रहे हैं जो आपके दिल को छू लेगी। संजय नगर में एक शर्मा परिवार रहते हैं। इस परिवार की बड़ी बेटी प्रगति शर्मा की मौत 27 जुलाई 2016 को यानी आज ही के दिन 8 साल पहले बिच्छू के डंक से हो गई थी। अपनी बेटी की याद में पिता ने उनकी यादों को जिंदा रखने के लिए शहर के अलग-अलग जगहों पर पौधे लगाएं हैं। उनका एक पौधा घर के सामने भी लगा है तो एक पौधा वहां पर भी है जहां पर उन्होंने अपनी मासूम बच्ची के शव को दफनाया है। आज 8 साल में वह पौधा पेड़ बन चुका है और हरियाली छाई है। हर साल 17 अगस्त को बेटी का जन्मदिन भी पिता इसी पेड़ के साथ मनाते हैं। दिल को छू लेने वाली बात यह है कि बेटी इस दुनिया में नहीं है लेकिन एक पौधे को ही अपनी बेटी मानकर उसे सहेज कर आज पेड़ बनाकर पिता उसी पौधे के साथ अपनी बेटी का जन्मदिन मनाते हैं। हर सुख दुख उसी पेड़ से बांटते हैं। बेटी के आठवें बरसी पर पिता शहर में जगह-जगह पंपलेट चिपका रहे है। जिसमें वे लोगों को बरसात के दिनों में सांप बिच्छू से सचेत रहने अपील करते हैं। पंपलेट में बेटी की ओर से अपील जारी किया है। जिसमें उन्होंने निवेदन करते लिखा है की माता-पिता से अनुरोध है कृपया अपने बच्चों को जूता चप्पल देखकर पहनाए। कहीं उसमें कोई जहरीले जीव जंतु तो नही है। जूती में बिच्छू काटा और मैं पापा मम्मी से दूर हो गई आप भूल न करें। पापा की याद में पेड़ के रूप में दुनिया में मौजूद इस बेटी की ओर से अपील पत्र जगह-जगह पिता शैलेंद्र शर्मा शहर में चिपका रहे हैं और लोगों को जागरुक कर रहे हैं।

पर्यावरण संरक्षण का भी एक तरीका

कहानी हमें पिता और बेटी की एक पवित्र रिश्ते को भी दर्शाती है तो पर्यावरण संरक्षण को लेकर भी एक नया संदेश देती है कि कैसे हम किसी खास मौके को भी पर्यावरण से जोड़ सकते हैं। किसी की यादों में किसी को तोहफे में हम पौधे भी गिफ्ट कर सकते हैं तो खुद उनका संरक्षण करके पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा दे सकते हैं। पिता के इस छोटे से प्रयास ने जहां हरियाली विकसित की है तो अपनी बेटी की यादों को हमेशा के लिए जीवित रखे हुए हैं। यह पेड़ हमेशा उनकी बेटी की याद दिलाता रहेगा और इसी भावना से प्रेरित होकर उन्होंने 8 साल पहले बेटी के जन्मदिन पर ही यह पौधा लगाया था। जो आज 8 साल का होकर पेड़ बन कर सामने है।

लोगों को भी करते हैं सावधान ताकि ना जाए किसी की जान

पिता द्वारा अन्य लोगों को भी बरसात के दिनों में सांप बिच्छू के डंक से बच्चों को बचाने के लिए जागरूक किया जाता है। वे सोशल मीडिया के अलावा शहर के अलग-अलग जगहों पर पोस्टर भी लगाए हुए हैं। जिसमें वे अपनी बेटी की ओर से ही लोगों से अपील करते हैं कि जूती में छिपे बिच्छू के डंक से उनकी जान चली गई। वह अपने पापा से दूर हो गई। आप यह गलती ना करें। जूती या कोई भी चीज पहनते या इस्तेमाल करते समय एक बार उसे अच्छे से जरूर देख लें। बेटी बचाने के लिए उनकी यह मुहीम 8 साल से जारी है। बेटी के नाम से उन्होंने जिस जगह उनके शव को दफनाया वहां भी पौधा लगाया है और रोज समय निकालकर उन पौधों को पानी देने के लिए जाते ही हैं। उनकी देखभाल करते हैं ताकि असामाजिक तत्व उन पौधों को नुकसान न पहुंचा दें। आज लगातार 8 साल की परवरिश के बाद वे पौधे पेड़ बन चुके हैं और हरियाली छाई है।

शासन प्रशासन से भी किए थे मांग ताकि वैक्सीन हो उपलब्ध

पिता संजय शर्मा ने अपनी बेटी को गंवाने के बाद शासन प्रशासन से भी यह मांग की थी कि अस्पतालों में बिच्छू के डंक के वैक्सीन रखा जाए। सांप का एंटी स्नेक वेनम तो आता है लेकिन बिच्छू को लेकर पर्याप्त उपाय नहीं किया जाता है। इस उद्देश्य से उन्होंने शासन प्रशासन के उच्च अफसरों और मंत्री तक को भी पत्र लिखा था। जिन पर कुछ प्रयास भी हुए। स्थानीय शासन प्रशासन का कहना था कि छत्तीसगढ़ में इसके संबंध में वैक्सीन या कोई बिच्छू को लेकर ही दवाई उपलब्ध नहीं है। डंक के असर को कम करने के लिए अन्य दवाई दी जाती है।

जन्मदिन के कुछ दिन पहले ही हुई थी मार्मिक घटना

ज्ञात हो कि 8 साल पहले 2016 में बेटी को पिता घुमाने ले जाने की तैयारी कर रहे थे। शाम का वक्त था। अंधेरा छाने वाला था और अचानक बिजली गुल हो गई। इस अंधेरे में बेटी अपनी जूती पहन रही थी। उसे पता भी नहीं था कि उस जूती में कब से आकर बिच्छू बैठा है और बिच्छू ने उनके पैरों में डंक मार दिया। बेटी बेसुध होने लगी।आनन-फानन में पिता उन्हें पहले जिला अस्पताल बालोद ले गए लेकिन यहां भी इलाज ना हो पाया फिर रिफर करते-करते भिलाई के अस्पताल तक पहुंचे लेकिन बेटी की जान नहीं बच पाई। कुछ दिनों बाद बेटी का जन्मदिन आया। बेटी तो इस दुनिया में नहीं थी लेकिन उनकी यादों को हमेशा जिंदा रखने और समाज को भी एक नया संदेश देने के लिए उन्होंने बेटी के जन्मदिन पर पौधा लगाया और उनकी देखभाल करते रहे। आज बेटी रूपी पौधा पेड़ बन चुका है और एक पिता उन्हीं पेड़ पौधों को ही अपनी बेटी मानकर उनकी परवरिश करने में जुटा है।

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