एक समाज सेवा ऐसी भी: 2019 से गांव के शोक परिवारों को दे रहे हैं राजेश सिन्हा स्वयं से सहायता राशि, अब तक 55 से ज्यादा परिवार हो चुके लाभान्वित, काम से नाम पड़ा “साधु”
बालोद । जिले के गुण्डरदेही ब्लॉक के ग्राम सिर्राभांठा के रहने वाले समाजसेवी राजेश कुमार सिन्हा अपने विशेष कार्यों के लिए जाने जाते हैं।
हाल ही में उन्होंने बर्तन बैंक के जरिए बालोद जिले को प्लास्टिक मुक्त बनाने की पहल शुरू की है। तो उनके द्वारा विभिन्न समाज सेवा के कार्य सड़क, शिक्षा, स्वास्थ्य, धर्म सहित अन्य क्षेत्र में किए जा चुके हैं। इस क्रम में उनके द्वारा शोक परिवारों को भी सहायता राशि दिलाने की एक मार्मिक पहल शुरू की गई है । यह पहल अभी से नहीं बल्कि 2019 से जारी है। पर अभी इस बात की चर्चा इसलिए हो रही है क्योंकि उन्होंने हाल ही में अपने गांव में माधवराव निषाद की पत्नी जानकीबाई निषाद के निधन पर उनके परिवार को सहायता राशि के रूप में ₹3000 और श्रीफल भेंट किया। इस तरह की सेवा और सहयोग वे 2019 से करते आ रहे हैं। अब तक गांव के लगभग 55 परिवारों को वे इस तरह से मदद कर चुके हैं। किसी को 2000, 3000 तो 5000 से 6000 तक दिया जाता है। इसके अलावा शोक कार्यक्रम के लिए चावल या अन्य सामग्री की सहायता भी उनके द्वारा समय-समय पर की जाती है। उनका कहना है कि शासन से कभी सहायता राशि मिलती है तो कभी नहीं मिलती है। ऐसे में गरीब परिवारों के लिए शोक के समय मुसीबत और बढ़ जाती है । जिसे देखते हुए गांव में किसी भी परिवार में निधन होने पर इस तरह से आर्थिक मदद करते हैं।
गांव को मानते हैं अपना परिवार, दुखियों की मदद को हमेशा तैयार
उनका कहना है कि दुख के समय एक दूसरे का साथ जरूरी है। वह पूरे गांव को अपना एक परिवार मानते हैं। उनके गांव में संपन्न परिवारों की कमी है। ऐसे में अधिकतर गरीब परिवार एक दूसरे की मदद करके ही अपना काम चलाते हैं। एक समय होता था जब किसी के घर शोक काम होता था तो पूरा गांव वाले मिलकर खाना आदि की व्यवस्था करते थे। सब अपने-अपने हिसाब से अन्न और धन व्यवस्थाओं के लिए दान करते थे। इस तकलीफ से वह भी गुजरे हैं। और आज जब धीरे-धीरे अपने मेहनत से मजदूरी करते हुए सक्षम हुए और मुंबई जाकर एक निर्माण एजेंसी कंपनी शुरू किए और स्वदेश अपने गांव की चिंता करते हुए लोगों की मदद करते हैं तो उनके कार्यों की ग्रामीण नेक दिल से प्रशंसा करते हैं।
आयोजनों में स्टील के थाली गिलास देते हैं निशुल्क
शोक कार्यक्रम हो चाहे कोई भी कार्यक्रम हो वह अपनी ओर से भोज के लिए लोगों को निशुल्क स्टील के थाली और गिलास भी उपलब्ध कराते हैं। ताकि पर्यावरण को भी प्लास्टिक की चीजों के इस्तेमाल से होने वाले नुकसान से बचाया जा सके। वे दूसरों को भी सीख देते हैं कि इंसान है तो इंसानियत दिखानी चाहिए। एक दूसरे के काम आनी चाहिए । एक समय वे खुद रोजी मजदूरी करके अपना जीवन गुजारा करते थे फिर काम की तलाश में मुंबई गए और धीरे-धीरे दूसरे ठेकेदार के नीचे काम कर करते रहे। आज स्वयं एक ठेकेदार हैं और कई मजदूरों को अपने नीचे काम दिलाते हैं।
काम से नाम पड़ा “साधु”
तकलीफों को उन्होंने करीब से देखा है इसलिए वह दूसरों की तकलीफ देखकर हमेशा मदद के लिए तैयार रहते हैं और यही वजह है कि उन्हें सिर्फ सिर्राभांठा ही नहीं बल्कि कई गांव में एक सच्चे समाज सेवक के रूप में पहचान मिल चुकी है। लोग उन्हें उपनाम “साधु” से भी जानते हैं ।उनका असली नाम तो वैसे राजेश कुमार सिन्हा ही है। लेकिन उनके सज्जनता पूर्ण व्यवहार और साधु संतों जैसी सेवा भाव के कारण उन्हें यह नाम ग्रामीणों ने दिया है।