एक आस्था ऐसी भी: 1994 में चार दिन के लिए दुनिया में आई बच्ची को लोगों ने मान लिया बमलेश्वरी का अवतार, उन्हीं की याद में समाधि स्थल पर बना दिया मंदिर, आज भी लोग दूर-दूर से दर्शन को यहां आते हैं
बालोद। छत्तीसगढ़ का डोंगरगढ़ का बमलेश्वरी मंदिर तो विश्व विख्यात है लेकिन बालोद जिले में भी ऐसा ही एक मां बमलेश्वरी का मंदिर है। जिसकी कहानी अजीबोगरीब है। यह मंदिर है ग्राम राणाखुज्जी में।
जो की देवरी बंगला से डोंगरगांव जाने के मार्ग पर अंतिम छोर पर स्थित है। इस गांव में बमलेश्वरी मंदिर की स्थापना के पीछे अजब गजब कहानी है।
दरअसल में 1994 में यहां कौमार्य परिवार में 1 जुलाई को एक बच्ची का जन्म हुआ। जिसका आकार नवजात की तरह नहीं अपितु 6 माह की उम्र के बच्ची की तरह था। यह बच्ची चार दिन ही इस दुनिया में रह पाई। लेकिन इस बच्ची के पैदा होने के बाद से गांव में अजीबोगरीब चमत्कार होने लगे। जब बच्ची इस दुनिया में नहीं रही तो एक जगह पर इसकी समाधि बनाई गई फिर इस समाधि स्थल को मंदिर का रूप दे दिया गया। लोगों में विश्वास और आस्था है कि यहां जो भी अपनी मनोकामना लेकर आते हैं वह पूरी होती है। मां बमलेश्वरी सब की सुनती है। मंदिर समिति के प्रमुख जीवनचंद जैन ने बताया कि अपने कुछ दोस्तों के साथ मिलकर उन्होंने मंदिर का विकास किया । धीरे-धीरे ग्रामीण और दानदाता जुड़ने लगे और यहां मंदिर का उद्धार होता रहा। साथ ही मां बमलेश्वरी की ख्याति भी दूर-दूर तक फैली। जो कोई भी इस मार्ग से जाते हैं वह पहले इस राणाखुज्जी के मां बमलेश्वरी मंदिर में दर्शन करने के लिए जरूर रुकते हैं। इसके पीछे की वजह 1 जुलाई से 4 जुलाई 1994 तक इस दुनिया में रही बच्ची है। जिसका नाम लोगों ने मां बमलेश्वरी रखा था। जब यह बच्ची पैदा हुई तो लोग इसके दर्शन के लिए टूट पड़े। कौमार्य परिवार में बलराम और रोमिन बाई की बिटिया के रूप में इस दुनिया में आई बमलेश्वरी स्वरूप अवतार को देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते थे। जब वह दुनिया में नहीं रही स्वर्गारोहण हुआ जहां पर समाधि बनाई गई वहां पर भी लोगों ने कई तरह के चमत्कार देखें। कहा जाता था कि जिस समाधि स्थल पर बच्ची को दफनाया गया था वहां पर वह खेला करती थी। वहां जो कपड़ा बिछाया गया था वह हिलता ढूंढता था। यह दृश्य उस दौर में कई लोगों ने देखा था । धीरे-धीरे अब ऐसे चमत्कार तो नहीं होते लेकिन लोगों की आस्था आज भी इस जगह पर बनी हुई है।
भागवत आचार्य विष्णु अरोड़ा ने पहले ही कहा था इस गांव में होगा माता का जन्म
यह भी एक इत्तेफाक की कह सकते हैं कि 1994 के पहले इस गांव में बाल योगी भागवत आचार्य विष्णु अरोड़ा का भागवत हुआ था। जहां उन्होंने अपने प्रवचन के दौरान कहा था कि इस गांव में माताजी अवतरित होगी। और इसके कुछ सालों बाद 1994 में जब बच्ची के रूप में मां बमलेश्वरी कौमार्य परिवार में जन्मी और उनका अद्भुत चेहरा देखकर लोगों ने उसे मां का अवतार मान लिया और पूजा आराधना शुरू कर दी। कुछ दिनों के लिए ही सही लेकिन माता ने अपने कई चमत्कार दिखाएं ऐसा यहां के लोग मानते हैं । उसी आस्था को आज तक बरकरार रखा गया है । लोग यहां दोनों नवरात्रि में जोत जलाते हैं और अपनी मनोकामना मांगते हैं।
कैसे पता चला माता का अवतार? इसको लेकर भी है एक मान्यता
उक्त कौमार्य परिवार में जन्मी बच्ची मां बमलेश्वरी का अवतार है यह लोगों को कैसे पता चला इसके पीछे भी एक किवदंती प्रचलित है। कहा जाता है कि राणाखुज्जी से करीब 10 किलोमीटर दूर के गांव में किसी व्यक्ति को देव आया और उसे भान हुआ कि राणाखुज्जी में माता का जन्म हुआ है। फिर वह व्यक्ति राणाखुज्जी आया और इस बच्ची के बारे में बताया। फिर देखते-देखते वहां इतनी भीड़ लग गई कि मेला जैसा नजारा हो गया। धीरे-धीरे मां बमलेश्वरी के रूप में जन्मी बच्ची की ख्याति पूरे छत्तीसगढ़ में फैलने लगी ।लोग अपनी तरह-तरह की मुरादे लेकर आने लगे। पर चौथे दिन तक वह बच्ची दुनिया में नहीं रही। पर उनकी यादों में गांव वासियों ने मंदिर बनाकर उसे सहेज रखा और आज भी इस जगह के प्रति लोगों में विशेष आस्था है।