1945 से रहस्यमय तरीके से अनवरत निकल कर रहा है सुरसुली में मां नर्मदा की धारा

आस्था ऐसी कि यहां माँघी पूर्णिमा पर जुटती है लाखों की भीड़, दोनों नवरात्र में भी होता है विशेष आयोजन

बालोद। बालोद जिले के डौंडीलोहारा ब्लॉक के ग्राम सुरसुली (देवरीबंगला) में मां नर्मदा की धारा अविरल 1945 से बह रही है। यहां पर इसी धारा को सहेजने के लिए नर्मदा कुंड का निर्माण किया गया है।

जहां से लगातार पानी निकलता रहता है। इसी स्थल पर नर्मदेश्वर धाम के रूप में शिवलिंग की स्थापना भी की गई है। 1945 में इस जगह की खोज हुई थी। जो की ग्राम नाहंदा और सुरसुली के मध्य में स्थित है। यहां के इतिहास के बारे में मंदिर समिति के लोग सहित ग्रामीणों ने बतलाया कि नाहंदा के एक अस्थिर नाम के व्यक्ति जो की पैदल ही अपने एक मित्र फरदफोड़ निवासी के यहां आया जाया करते थे। इस दौरान जब वह यहां विश्राम करने के लिए ठहरता था तब उन्हें ही पहले इस जगह के बारे में पता चला। यहां से एक छोटी सी प्राचीन माता की मूर्ति भी मिली है। जिसे बगल में स्थापित किया गया है। साल में मांघी पूर्णिमा का यहां भव्य मेला लगता है। जिसमें लाखों श्रद्धालु जुटते हैं। तो वही दोनों नवरात्र में भी यहां विशेष आयोजन होता है। मंदिर परिसर में सामाजिक समरसता का उदाहरण देखने को मिलता है । विभिन्न समाज के भवन सहित मंदिर जैसे माता कर्मा का मंदिर, राम दरबार सहित अन्य भवन और देवालय बने हुए हैं। जो सामाजिक एकजुटता को बताता है। ग्रामीण पोखन लाल साहू, मिलन यादव ने बताया कि 1945-46 में इस जगह के बारे में पता चला और इसे मां नर्मदा का उद्गम स्थल माना गया आज भी कुंड से धीरे-धीरे पानी निकल रहा है। यहां पर शिवरात्रि, मांघी पूर्णिमा का मेला सहित विविध आयोजन होते हैं। लोग अपनी मनोकामना लेकर यहां आते हैं। उद्गम स्थल से एक मूर्ति भी मिली है। जिसका अध्ययन पुरातत्व विभाग ने भी किया है। वह मां दुर्गा के स्वरूप में है जिसे मां नर्मदा मानकर उसकी भी पूजा की जाती है। वही पृथक से नर्मदा देवी की प्रतिमा और स्थापित की गई है।

इस तरह से मिला धार्मिक स्थल के रूप में यह नर्मदा कुंड

मां नर्मदा मैया मंदिर समिति के कार्यकारिणी अध्यक्ष बीआर साहू ने बताया कि 1944-45 में नाहंदा के अस्थिर गाड़ा नाम के व्यक्ति को स्वप्न आने की बात सामने आई जिसने लोगों को बताया कि वहां मां नर्मदा है, खोद कर देखो तो वहां से पानी निकलेगा। जानकारी मिलने पर नाहंदा और सुरसुली के लोग वहां इकट्ठा हुए और वहां खुदाई की गई तो पानी का बुलबुला निकलना शुरू हो गया और लोगों ने इसे मां नर्मदा कुंड नाम दिया। धीरे-धीरे यहां मंदिर का निर्माण हुआ। आज भी यहां से पानी निकलता है। श्रद्धा और विश्वास से लोग अपनी मनोकामना लेकर यहां आते हैं। इस जगह को पर्यटन स्थल बनाने के लिए भी प्रयास किया जा रहा है। वहीं दानदाताओं की मदद और विभिन्न समाज के लोगों के द्वारा मिलकर यहां विभिन्न भवन और मंदिर बनाए गए हैं। साल में चार मुख्य आयोजन यहां होते हैं ।

निसंतान दंपत्ति भी आते हैं अपनी मुराद लेकर

मंदिर समिति के सचिव कौशल कुमार देवांगन ने बताया कि इस जगह के प्रति लोगों में विशेष आस्था है। खासतौर से निसंतान दंपत्ति भी यहां अपनी मुरादे लेकर आते हैं और उनकी मुराद पूरी हुई है। उन्होंने कहा कि जब शुरुआत में इस स्थल की खोज हुई तो 5 एचपी मोटर बोर के रफ्तार के बराबर वहां से पानी निकलता था। धीरे-धीरे फिर आसपास बोर की अधिकता होने के कारण वाटर लेवल डाउन होने से अब पानी धीरे-धीरे निकल रहा है। पहले वहां पर चार से पांच जगह से पानी निकलता था। जिसे हम स्थानीय भाषा में “चंडी चूहरी” कहा करते थे। कुंड के बगल में ही प्राचीन शिव मंदिर है। वहीं समाज द्वारा अपने-अपने मंदिर और भवनों का निर्माण किया गया है। जिनके आगे पीछे कोई नहीं है ऐसे लोगों द्वारा वहां गणेश, दुर्गा, हनुमान आदि की मूर्ति स्थापित भी की गई है। नर्मदा धाम लोगों की आस्था का विशेष केंद्र है। इस मंदिर समिति के अध्यक्ष स्वयं विधायक कुंवर सिंह निषाद है। जिनके द्वारा इस स्थल को पर्यटन स्थल बनाए जाने के लिए विशेष प्रयास किया जा रहा है। जिसके चलते यहां शासन प्रशासन की ओर से भवन, सीमेंटीकरण, पुल निर्माण आदि भी संपन्न हुए हैं।

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