बंजारी धाम की अपनी है रोचक कहानी: बंजारों ने की थी 15वीं शताब्दी में मूर्ति की स्थापना, छिपाते थे आसपास अपनी कमाई का पैसा ताकि ना हो चोरी

सिद्ध शक्ति मां बंजारी धाम जुंगेरा में दोनों नवरात्रि में होती है जोत जवारा की स्थापना, भक्तों की जुड़ती है भीड़

बालोद। बालोद से 4 किलोमीटर दूर राजनांदगांव मार्ग पर धार्मिक स्थल है सिद्ध शक्ति मां बंजारी धाम जुंगेरा। जहां दोनों नवरात्रि में जोत जवारा की स्थापना होती है। गांव व शहर के लोगों की यह आस्था का केंद्र है। मान्यता है कि अंग्रेज शासनकाल में बस्तर क्षेत्र से आने वाले बंजारों ने यहां अपने ईष्ट देवी बंजारी मां की मूर्ति स्थापित की थी। व्यापार और रोजगार के नाम से आने वाले बंजारे जिस इलाके में भी जाते थे, वहां लोगों को पैसा व चावल दान करते थे। बंजारी माता उनकी ईष्ट के साथ वन देवी मानी जाती है। जहां भी बंजारे जाते थे, अपनी ईष्ट देवी की याद में मूर्तियां स्थापित करते थे। 1969-70 में ग्रामीणों ने यहां बंजारी धाम मंदिर का निर्माण किया। शुरुआत से ही इस जगह में मां बंजारी के साथ शंकर- पार्वती और गणेश की मूर्ति रही।

15 वीं शताब्दी में आते रहते थे बंजारे

मूर्तियां पहले छोटे से चबूतरे में थी। ग्रामीणों ने बताया है कि हमारे दादा परदादा से सुनी बातों के अनुसार बंजारे इस इलाके में 15वीं-16वीं शताब्दी से आते रहे थे। उनके द्वारा ही मालीघोरी में कुकुरदेउर मंदिर और जगन्नाथपुर में शिव मंदिर का निर्माण भी किया गया था। बंजारों द्वारा रखी गई बंजारी मां की मूर्ति के प्रति भी शुरू से लोगों में आस्था बनी रही। लोग बस्तर के बंजारी मां की तरह इस पर भी मान्यता रखते हुए पूजा-अर्चना शुरू किए।

यहां का बरगद का पेड़ भी है वर्षों पुराना

जितना अस्तित्व बंजारी मां की प्राचीन मूर्ति का बताया जाता है, उतना ही पुराना मंदिर के बगल में खड़ा बरगद का पेड़ है। ग्रामीणों के अनुसार तीनों मूर्तियां उन्हें 1940 के पहले ही जंगलों के बीच मिली थी। उस समय बालोद से राजनांदगांव जाने सड़क भी नहीं थी। यहां पहले घना जंगल व पगडंडी भरा रास्ता था। बरगद के और भी कई पेड़ थे, जो हवा तूफान में गिर गए। अब एक ही पेड़ सलामत है। जिसके नीचे ही यह मूर्तियां हैं।

बंजारों की दानशीलता के कारण नाम पड़ा बंजारी धाम, मूर्तियों के आसपास बंजारे छुपाते थे पैसा

पूर्व सरपंच और बंजारी समिति के पूर्व अध्यक्ष दुर्जन साहू ने बताया कि हमारे बुजुर्ग बताते हैं कि अंग्रेजो के समय बंजारे लोग व्यवसाय करने के लिए आते जाते थे। वही लोग इस मंदिर की स्थापना किए थे। वह लोग व्यापार करते समय पैसा कहीं पर छिपा या गड़ा देते थे और इस तरह पैसा छुपाने के लिए भी बंजारी धाम का ही इस्तेमाल करते थे। उनका विश्वास था कि लोग मंदिर के आसपास चोरी नहीं करेंगे ।वहां पर एक चबूतरा भी बंजारों द्वारा ही बनाया गया है। जिसमें सभी प्राचीन मूर्तियां रखी होती थी। यहीं आसपास वे पैसा छिपाते थे। 1970 में मंदिर का निर्माण किया गया। फिर वह मंदिर जीर्णशीर्ण होने लगा। उसके बाद 2010 के आसपास नया मंदिर का निर्माण बंजारी समिति और ग्राम वासियों तथा दानदाताओं के सहयोग से किया गया है। इस मंदिर में आसपास के श्रद्धालु जन की काफी आस्था है। लोग मनोकामना लेकर पूरा होने की आशा के साथ यहां जोत जलाते हैं। माता के प्रति लोगों में खास आस्था है। बंजारी माता की मूर्ति काफी प्राचीन है। बंजारा लोगों के द्वारा स्थापित किए जाने के कारण यहां का नाम बंजारी धाम पड़ा। उस समय इसके आसपास काफी बड़ा जंगल हुआ करता था। आज भी पीछे में एक नर्सरी है जो उसी जंगल का ही कुछ हिस्सा है। धीरे-धीरे विकास के बाद जंगल कट गए और काफी क्षेत्र मैदान के रूप में परिवर्तित हो गया। दोनों नवरात्रि में यहां जोत जवारा स्थापित किया जाता है। दिवाली के बाद प्रथम सप्ताह में मेला का भी आयोजन किया जाता है।

इस साल हो रहा है यह आयोजन

सिद्ध शक्ति मां बंजारी धाम जुंगेरा में इस चैत्र नवरात्र पर 16 अप्रैल मंगलवार रात्रि 8 बजे से स्वरांजलि जस जगराता ग्रुप ग्राम खुरसुल मोहंदीपाट जिला बालोद के प्रस्तुति होगी। साथ ही इसी दिन अष्टमी हवन और भंडारा का आयोजन भी किया गया है। मंगलवार 9 अप्रैल को जोत जवारा स्थापना सुबह विशेष मुहूर्त 11 बजकर 36 मिनट में यहां हुआ। तो वहीं पंचमी पूजा 13 अप्रैल शनिवार को संध्या 7:00 बजे होगा। हवन अष्टमी 16 अप्रैल मंगलवार को शाम 4:00 से शुरू होगा। जोत जवारा का विसर्जन 17 अप्रैल गुरुवार को सुबह 9:00 से होगा।

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