भागवत कथा में ध्रुव कथा सुन भावुक हुए जनमानस
बालोद। भाठागांव (आर) में विजय तिवारी एवं तिवारी परिवार द्वारा आयोजित श्रीमद भागवत महापुराण में कथावाचक आचार्य श्री श्री 108 ज्ञानेश्वर पांडेय जी बगदई(गुरुर) वाले ने तृतीय दिवस की कथा में
बताया की भगवान के अनन्य भक्त ध्रुव महाराज जिसने इस बात को सिद्ध किया कि कैसे एक छोटा बालक भी दृढ़ निश्चय और कठोर तपस्या के बल पर भगवान को धरती पर आने को विवश कर सकता है।
स्वायम्भुव मनु और शतरूपा के पुत्र उत्तानपाद मनु के बाद सिंहासन पर विराजमान हुए।
उत्तानपाद अपने पिता मनु के समान ही न्यायप्रिय और प्रजापालक राजा थे।
ध्रुव बड़ा होने के कारण राजगद्दी का स्वाभाविक उत्तराधिकारी था पर सुरुचि अपने पुत्र उत्तम को पिता के बाद राजा बनते देखना चाहती थी।
सुरुचि द्वारा भक्त ध्रुव का अपमान
एक दिन बालक ध्रुव पिता से मिलने की जिद करने लगा, माता ने तिरस्कार के भय से और बालक के कोमल मन को ठेस ना लगे इसलिए ध्रुव को बहलाने लगी पर ध्रुव अपनी जिद पर अड़ा रहा। अंत में माता ने हारकर उसे कहा कि उस पिता की गोद में बैठ जो जगतपिता है। यही बात उनके जीवन के लिए सिद्ध स्वरूप बनकर आज छोटे से बालक को भगवान तक पहुँचा देता है।
ध्रुव का मतलब होता है स्थिर, दृढ़, अपने स्थान से विचलित न होने वाला जिसे भक्त ध्रुव ने सत्य साबित कर दिया। भक्त ध्रुव की कहानी से हमें ये शिक्षा मिलती है कि जिसके मन में दृढ निश्चय और ह्रदय में आत्मविश्वास हो वह कठोर पुरुषार्थ के द्वारा इस संसार में असंभव को भी संभव कर सकता है आज हर जीव को वैसे ही संकल्प की आवश्यकता है जिससे जीवन में आमूल चूल परिवर्तन होगा और इस कलिकाल से मुक्ति प्राप्त हो सकती है। वही आयोजक परिवार द्वारा अधिक से अधिक संख्या में लाभ लेने का आग्रह किया।