सौ मन ज्ञान की अपेक्षा मनुष्य में रत्तीभर आचरण श्रेष्ठ – संत निरंजन
महात्मा सुकदेव जी महाकाल के अवतार हैं ,श्रीमद्भागवत परमहंसो की संहिता है-संत निरंजन
बालोद। नगर के आमापारा के आमा बगीचा में पुरुषोत्तम सुकतेल एवं पूर्णिमा सुकतेल के पावन संकल्पों से आयोजित नौ दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा के पावन अवसर पर भागवत आश्रम लिमतरा से पधारे पूज्यपाद संत प्रवर निरंजन महाराज ने द्वितीय दिवस की कथा यात्रा को प्रारंभ करते हुए व्यासपीठ से महर्षि व्यास की खिन्नता, उदासी निरंतर अज्ञान चिंता में नैराश्य के भाव तथा देवर्षि नारद द्वारा उदासी के भाव को जानने की जिज्ञासा ,भूतभावन भोलेनाथ द्वारा मां भगवती ,पार्वती के जिज्ञासा पर श्री कृष्ण नाम ,श्री राम नाम की अमर कथा सुनाते हैं सती अमर कथा सुनकर निर्विकल्प समाधि में चली जाती है और निर्जन वन में तोते के सड़े हुए अंडे से तोता चैतन्य भाव से अमर कथा सुनकर हुंकारू भरते हैं भगवान शिव के जागने पर देखते हैं कि सती समाधि में हैं और हुंकारू भरने वाला कौन है ।शिव क्रोधित हो उठते है और तोता महर्षि व्यास की अर्धांगिनी अरणी देवी के गर्भ में समाहित हो जाते हैं और उन्हीं के गर्भ से भगवान वितराग महापुरुष श्री सुकदेव मुनि का जन्म होता है जो महाकाल भगवान शिव के अंशावतार माने जाते हैं।महाराज श्री ने कथा सूत्र को विस्तार देते हुए कहा कि महर्षि व्यास की निराशा में श्रीमद भगवत महापुराण को जन्म दिया ।अर्जुन के मन में ग्लानि और विषाद ने श्रीमद्भागवत महापुराण को जन्म दिया ।मां भगवती रत्नावली द्वारा तुलसी को फटकार ने भारत को श्रीमद् रामचरितमानस ग्रंथ को जन्म दिया ।ज्ञान ,भक्ति और प्रेम की अनन्यता घोषित करते हुए स्वामी जी ने कहा कि भक्ति के बिना ज्ञान अधूरा है और सौ मन ज्ञान की अपेक्षा मनुष्य में रत्ती भर आचरण श्रेष्ठ है। श्रीमद् भागवत कथा के विभिन्न अख्यानों में वर्णन तथा महाराज परीक्षित के श्राप को बताते हुए कहा कि जीवन को परीक्षित होना चाहिए। अपरीक्षित जीवन जीने का कोई अर्थ नहीं है ।कलयुग के समान कोई युग नहीं है अगर हम राम नाम के विमल यश को गायन कर रहे हैं तो यही हमारे लिए सतयुग है ।भारतीय दर्शन ने असत को सत ,तमस से ज्योति और मृत्यु से अमृत की ओर ले जाने का मार्ग प्रशस्त किया है इसलिए श्रीमद्भागवत परमहंसो की संहिता है ।कथा श्रवण करने श्रद्धालुओं की भीड़ देखी जा रही है।