आजाद देश के 75 साल में भी ऐसी विडंबना,मुक्ति का ठिकाना नही, सुंदरा में बारिश से बचने पुल के नीचे जलाते हैं शव

बालोद। आज देश आजादी की 75 वीं वर्षगांठ के साथ अमृत महोत्सव मना रहा है। ऐसे समय में बालोद के गांव सुंदरा में आज भी विकास के नाम पर पिछड़ा हुआ है। इसका प्रमाण हमें उस दृश्य से देखने को मिलता है जब यहां किसी की मौत होती है तो चिता जलाने के लिए सुरक्षित जगह तक नसीब नहीं होता है। लगातार बारिश होती है तो चिता जलाने के लिए लोगों को सुरक्षित जगह तलाशनी पड़ती है। कुछ नहीं मिला तो फिर पुल के नीचे ही आसरा लेना पड़ता है। ऐसा दृश्य रविवार को देखने को मिला। जब गांव के पूरन देशमुख उम्र 51 वर्ष का इलाज के दौरान अस्पताल में मौत हो गई। जिनके शव का अंतिम संस्कार तांदुला नदी पर बने पुल के नीचे किया गया ताकि बारिश में शव ना भीगे। ग्रामीणों ने बताया कि नदी किनारे चिता जलाया जाता है लेकिन आज तक शेड नहीं बना हुआ है और न प्रतीक्षालय बना हुआ है। जिससे खासतौर से बारिश होने पर बहुत परेशानी होती है। शासन प्रशासन इस दिशा में ध्यान नहीं दे रहा है। गांव नदी किनारे बसा हुआ है। मुक्तिधाम निर्माण के लिए जगह भी तय हुआ है लेकिन शासन प्रशासन की उपेक्षा के चलते विकास नहीं हो पा रहा है। नतीजा जब किसी के यहां कोई मौत होती है तो चिता जलाने के लिए लोगों को सोचना पड़ता है। बारिश में सबसे ज्यादा परेशानी होती है।

पुल है तो काम हो गया वरना मुसीबत बढ़ जाती

ग्रामीण परमेश्वर, शिवेंद्र देशमुख सहित अन्य लोगों ने बताया कि गांव में तांदुला नदी के पास ओवर ब्रिज पुल बना हुआ है। जिसके नीचे बारिश से बचने का स्थान है। गनीमत उस जगह पर चिता को जलाया जा सका। वरना रविवार को दिनभर बारिश हो रही थी चिता जलाना मुश्किल हो गया था। शासन प्रशासन को इस ओर देखना चाहिए। हर साल ग्राम स्वराज, भेंट मुलाकात जैसे कई आयोजन होते है। गांव की छोटी-छोटी समस्याओं को हल करने का दावा किया जाता है। लेकिन सुंदरा में आज तक मुक्तिधाम ना बनना एक उपेक्षा का दंश ही कहा जा सकता है। जो इस गांव के विकास के नाम पर भेदभाव शासन प्रशासन द्वारा हो रहा है।

क्या कहते हैं सरपंच

सरपंच वारुणी देशमुख ने बताया कि वह भी चाहते हैं कि जल्द से जल्द इस गांव में मुक्तिधाम और प्रतीक्षालय बने। इसके लिए वे अपने स्तर पर कई बार मांग कर चुके हैं। जगह चिन्हांकित कर जनपद में प्रस्ताव भी दिया जा चुका है। लेकिन प्रशासकीय स्वीकृति अब तक नहीं मिल पाई है। गांव से अरौद जाने के मार्ग की ओर मुक्तिधाम का निर्माण होना है। जहां अस्थाई रूप से शव जलाए जाते हैं। लेकिन बारिश होती है तो फिर शव जलाने में मुश्किल होता है।

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