बालोद के इस गांव की संस्कृति में रची बसी है गेड़ी, शिक्षक ने बोया था बीज संस्कृति का, अब पौधे पेड़ बन चुके

बालोद जिले का चिलमगोटा गांव है गेड़ी के लिए प्रसिद्ध, यहां के कलाकारों ने दिलाई गेड़ी को छत्तीसगढ़ में विशेष पहचान

अब सरकार भी कर रही गेड़ी को प्रोत्साहन

रिपोर्ट”सुप्रीत शर्मा/ कमलेश वाधवानी” बालोद। आज हरेली है और हरेली में गेड़ी चढ़ने की परंपरा है हालांकि यह परंपरा अब विलुप्त होती जा रही है लेकिन इस परंपरा को बचाने का कार्य छत्तीसगढ़ की भूपेश सरकार भी कर रही है और यही उद्देश्य है कि शासन द्वारा इस बार विशेष रूप से स्कूलों में भी गेड़ी उत्सव का आयोजन करने का निर्देश जारी किया गया। हालांकि शिक्षकों की हड़ताल की वजह से कई जगह ये आयोजन प्रभावित हो सकता है लेकिन कई जगह ग्रामीणों की एकजुटता के कारण स्कूलों में बच्चों के जरिए या फिर गांव में इसे सामूहिक रूप से आयोजित कर गेड़ी परंपरा को बढ़ावा दिया जाएगा। बालोद जिले में गेड़ी परंपरा को विशेष प्रोत्साहन देने की शुरुआत डौंडीलोहारा ब्लाक के ग्राम चिलमगोटा से हुई थी। जिसके प्रेरणा स्रोत भी स्वयं एक शिक्षक हैं सुभाष बेलचंदन। जिन्होंने गेड़ी को बढ़ावा देने के लिए वर्षों से प्रयास किया और यही वजह है कि उन्होंने इस परंपरा को बचाया और अब गेड़ी के पुनरुत्थान की दिशा में सरकार स्वयं पहल का कर रही है। आज भी चिलमगोटा का वनांचल गेड़ी दल छत्तीसगढ़ में चर्चित है। छत्तीसगढ़िया क्रांति सेना के द्वारा बालोद जिला मुख्यालय में जिला स्तरीय गेड़ी उत्सव का आयोजन किया जा रहा है। इसमें भी उक्त गेड़ी दल की प्रस्तुति होगी। तो वही यही गेड़ी दल, स्कूली बच्चों सहित ग्रामीणों के लिए भी गेड़ी के प्रोत्साहन का एक जरिया है। गेड़ी एक विधा है और कई इसमें पारंगत नहीं हो पाते लेकिन हरेली में इसका खास महत्व होता है। छोटे बड़े सभी गेड़ी तैयार करते हैं और इस पर सवार होकर नृत्य करते हैं। वर्तमान में आधुनिकता के दौर में इस परंपरा को बचाए रखना बहुत जरूरी है ।इसका प्रयास गेड़ी नृत्य दल चिलम गोटा के द्वारा किया जा रहा है और यही वजह है कि अब सरकार ने भी इस विधा को बढ़ावा दिया है और स्कूलों में इसे प्रोत्साहित करने के लिए निर्देश जारी हुए हैं

कौन थे स्वर्गीय सुभाष बेलचंदन

गेड़ी के संरक्षण के नाम से छत्तीसगढ़ में कोई नाम आता है तो वह है शिक्षक स्वर्गीय सुभाष बेलचंदन। जिनका विगत वर्ष कोरोना काल में आकस्मिक निधन हो गया। उनका निधन छत्तीसगढ़ संस्कृति व शिक्षा जगत के लिए भी अपूर्णीय क्षति था। स्वर्गीय सुभाष बेलचंदन ने गेड़ी को गांव से शुरुआत करते हुए छत्तीसगढ़ के कोने कोने तक पहुंचाया। जब उनकी पोस्टिंग चिलमगोटा गांव में हुई तो बच्चे दलदल में गेड़ी बनाकर सवार होकर खेल रहे थे। उनकी कला देख उन्हें लगा इन्हें कलाकार के रूप में तैयार किया जा सकता है। उन्होंने स्कूली बच्चों को प्रोत्साहित किया और स्कूल में पढ़ाई के साथ साथ गेड़ी का अभ्यास शुरू होने लगा। देखते- देखते स्कूली बच्चों के जरिए उन्होंने गेड़ी दल तैयार किया और जब बच्चे स्कूल से निकल गए तो वह बड़े होकर छत्तीसगढ़ में गेड़ी नृत्य दल के नाम से विख्यात हुए। और कई जगह प्रस्तुति देने लग गए। उनके निधन के बाद आज भी ये दल सक्रिय हैं और उनकी प्रस्तुति सराहनीय होती है। जब छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा स्कूलों में गेड़ी को प्रोत्साहित करने आदेश जारी किया गया तो सबसे ज्यादा खुशी इस गेड़ी दल परिवार के लोगों को व साथ ही उन लोगों को हुआ जो इस विधा को संरक्षण देने के लिए प्रयास कर रहे हैं।

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