लाइव- इन दो गांवों में मुक्ति की डगर भी है मुश्किल, एक जगह मुक्तिधाम ही नहीं तो दूसरी जगह पहुंचने रास्ता नहीं, कहीं पंडाल तान जलाते हैं लाश, तो कहीं कांधे के बजाय कचरा गाड़ी में ले जाते हैं,,,,

आजादी के 75 साल बाद भी विकास में पिछड़ा लासाटोला और भरदा

फ़ोटो व कंटेंट- सुप्रीत शर्मा/ कमलेश वाधवानी,बालोद। बालोद जिले के ग्राम लासाटोला व भरदा में आज भी मुक्तिधाम की सही व्यवस्था नहीं है। इससे यहां के विकास का अंदाजा लगा सकते हैं। दोनों गांव में मृत्यु के बाद मुक्ति की डगर मुश्किल है। कहीं बारिश होती है तो पंडाल तान कर लोगों को लाश जलाना पड़ता है तो कहीं मुक्तिधाम तो है लेकिन वहां जाने का रास्ता न होने से कंधे के बजाय कचरा गाड़ी, ट्रैक्टर ट्राली में रख कर लाश को मुक्तिधाम तक पहुंचाना पड़ता है। पढ़िए विडंबना से भरी इन दो गांव की कहानी

केस 1
लासाटोला में आज तक मुक्तिधाम नहीं बन पाया है। आलम यह है कि अगर बरसात में किसी की मौत हो जाए तो उन्हें दफनाने या जलाने के लिए इस तरह तिरपाल तानकर जलाना पड़ता है। मुक्तिधाम में मुक्ति की डगर ही मुश्किल हो जाती है। लोग यहां जैसे तैसे पहुंचे जाते हैं पर बिना शेड के चलते लोगों को पंडाल लगाकर चीता जलानी पड़ती है। बरसात में कई बार चीता जल्दी भी नहीं जलती है। इससे लोगों को घंटों इंतजार करना पड़ता है। तो वहां पहुंचे लोगों को भी बारिश में इधर-उधर भटकना पड़ता है। शनिवार को भी गांव में एक ग्रामीण चैतराम उर्वशा की मौत हुई थी। सुबह करीब 11 बजे अंतिम संस्कार के लिए शव को मुक्तिधाम स्थल लाया गया था। लेकिन शेड के अभाव में वहां इसी तरह से ही जलाया गया। बारिश भी हो रही थी। इससे चीता नहीं जल पाती तो ग्रामीणों ने प्लास्टिक का पंडाल तान दिया और जब तक चीता ना जल जाए तब तक उसे संभाले रखा गया। कई साल से ग्रामीण यहां मुक्तिधाम शेड निर्माण की मांग कर रहें। लेकिन अब तक पूरी नहीं हो पाई है। बरसात में ही बहुत ज्यादा परेशानी होती है। बाकी समय तो जैसे तैसे गुजारा हो जाता है। पर पक्का शेड और मुक्तिधाम स्थल सुरक्षित ना होने के चलते अंतिम संस्कार में कई तरह की परेशानी होती है

क्या कहते हैं सरपंच

लासाटोला आश्रित ग्राम है।पंचायत मुख्यालय डुंडेरा में आता है। यहां के सरपंच छबीलाल का कहना है कि लासाटोला और डूंडेरा दोनों जगह के लिए एक-एक मुक्तिधाम निर्माण के लिए मनरेगा के तहत 2-2 लाख की स्वीकृति हो गई थी।डूंडेरा में तो उक्त निर्माण हो गया लेकिन लासाटोला में निर्माण शुरू नहीं हो पाया। सरपंच का कहना है कि 2 लाख स्वीकृति तो हुआ है लेकिन अब निर्माण दर बढ़ चुका है। इसलिए उस प्रस्ताव में बदलाव कर ढाई लाख रुपए करवाने का प्रयास किया जा रहा है। 2 लाख में कोई बनाने को तैयार नहीं हो रहे हैं। जनपद सीईओ से भी इस संबंध में चर्चा की गई है। मनरेगा से उसमें अतिरिक्त राशि जोड़ने की मांग की जा रही। दो की बजाय ढाई लाख की स्वीकृति मिल जाए तो तो काम शुरू हो जाएगा।

पहले सीमांकन के वजह से भी लटका था मामला

सरपंच छबिलाल ने बताया कि पहले लासाटोला के ग्रामीणों द्वारा कहा गया कि सीमांकन करवाया जाए तभी काम होने देंगे। फिर 5 से 6 माह सीमांकन के चक्कर में काम शुरू ही नहीं हो पाया। जिसके बाद निर्माण दर भी बढ़ गया। अब ठेकेदार दो लाख में बनाने तैयार नहीं हो रहे। उसे ढाई लाख का स्टीमेट संशोधन के लिए शासन प्रशासन को भेजा गया है। लगातार इसके लिए हम प्रयास कर रहें ताकि जल्द वहां मुक्तिधाम बन सके और लोगों की यह वर्षों पुरानी समस्या दूर हो सके।

केस 2

इधर बारिश के दिनों में मृत शरीर को नसीब नहीं होता चार कंधा, गौरव ग्राम भरदा (टटेंगा) में श्मशान घाट जाने वाले मार्ग पर दलदल ,ट्रैक्टर ट्राली में शव को रखकर ले जाते हैं अंतिम संस्कार करने

इसी तरह बालोद जिले के डौंडीलोहारा विकासखंड के गौरव ग्राम भरदा (टटेंगा) केवल नाम का गौरव ग्राम साबित हो रहा है। यहां पर किसी व्यक्ति की मृत्यु के बाद उनकी अंतिम यात्रा भी सुकून भरी नहीं रहती। श्मशान घाट मार्ग पर इतनी दलदल है कि मृत शरीर को चार कंधा भी नसीब नहीं होता। मजबूरी में ट्रैक्टर ट्राली में शव को रखकर अंतिम यात्रा पूरी करनी पड़ रही है। बता दें यह ग्राम स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, पूर्व कांग्रेसी विधायक (बालोद) एवं राष्ट्रपति पुरस्कृत शिक्षक स्व. हीरालाल सोनबोइर का जन्मभूमि व पैतृक ग्राम है।
कांग्रेस के शासनकाल में कांग्रेस के ही पूर्व विधायक व स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के गौरव को धूमिल कर रहा है गौरव ग्राम भरदा। यहां पर लोगों को श्मशान घाट जाने एक अदना सा अच्छा मार्ग के लिए तरसना पड़ रहा है। बारिश के दिनों में यहां लोगों को बहुत परेशानियों का सामना करना पड़ता है। गौरव ग्राम भरदा (टटेंगा )डौंडीलोहारा ब्लाक के अंतर्गत आता है। यहां के नागरिकों को वर्तमान में कांग्रेस शासन होने के बाद भी ग्राम की उपेक्षा एवं ग्राम पंचायत की निष्क्रियता का शिकार होना पड़ रहा है। इसका ज्वलंत उदाहरण चार दिन पहले देखने को मिला। 19 जुलाई को गांव के एक व्यक्ति बाबूलाल रंगारे की मौत हो गई। मृत शरीर को अंतिम संस्कार के लिए श्मशान घाट ले जाना था इस बीच समस्या आई कि शमशान घाट के रास्ते में दलदल है। कंधे पर लेकर शव को नहीं ले जाया जा सकता। इसके बाद परिजनों व ग्रामीणों ने ट्रैक्टर ट्राली में शव को रखकर श्मशान घाट तक पहुंचाए और अंतिम संस्कार किया।

रोड के किनारे से बड़ी मुश्किल से पहुंचते हैं ग्रामीण

ग्राम भरदा के लोगों ने बताया कि बारिश के दिनों में श्मशान घाट जाने बहुत दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। लोगों को रोड के किनारे कूदते बांधते किसी तरह पहुंचना पड़ता है। वही शव को श्मशान घाट तक ले जाने भी भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। रोड में कई जगह घुटने भर दलदल है। शव को केज बिल लगे ट्रैक्टर से ही ले जाया जा सकता है, अन्यथा ट्रैक्टर के भी फसने का डर रहता है।

मुख्य मार्ग का भी हाल बेहाल
ग्रामीणों ने बताया कि यहां पर कई मार्ग की हालत खराब है खासतौर पर मुख्य मार्ग से स्कूल तक रोड बहुत खराब है यहां पर स्कूल जाने वाले बच्चों को बहुत तकलीफ हो का सामना करना पड़ रहा है।
सरपंच राधिका देवांगन ने बताया कि दो साल पहले इस मार्ग के निर्माण का भूमिपूजन वर्तमान विधायक गुंडरदेही के द्वारा किया गया था किंतु अभी तक सीमेंटीकरण नहीं हो पाया है। सरपंच राधिका देवांगन ने जानकारी दी कि 15 अगस्त के पहले रोड पर मुरूम डालकर किसी तरह जाने के लायक बनायेंगे।हर साल मुरम डालते हैं लेकिन बारिश के दिनों में स्थिति जस की तस हो जाती है।

जानिए कौन थे हीरालाल सोनबोईर

डौंडीलोहारा से राजनांदगांव रोड पर लगभग तीन किलोमीटर की दूरी पर पूर्व दिशा में ग्राम भरदा स्थित है।यहां 1 जनवरी 1907 को हीरालाल सोनबोईर का जन्म हुआ। 1924 में प्राथमिक शाला सोरर और फिर 1928 में अर्जुंदा मिडिल स्कूल में शिक्षक बने। 1961 में उन्हें राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त हुआ। उन्होंने अंग्रेजो के खिलाफ स्वतंत्रता की अनेक लड़ाई लड़ी थी। 1967, 1972 और 1980 में वे बालोद के तीन बार विधायक रहे। हीरालाल सोनबोइर एकमात्र ऐसे शख्स रहे जो स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, विधायक एवं राष्ट्रपति पुरस्कृत शिक्षक रहे। ग्राम पैरी में वे प्रधान पाठक रहे 1967 से वे पैरी में ही बस गए थे। उनका परिवार आज भी पैरी में ही निवासरत हैं। शासन ने स्व. हीरालाल सोनबोईर के सम्मान में भरदा ग्राम को गौरव ग्राम तो घोषित कर दिया, लेकिन इस ग्राम के लोग अभी भी सुविधाओं से वंचित हैं।

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