बालोद। गुंडरदेही ब्लाक के ग्राम कचांदुर में कोरोना काल से पहले बंद पड़ा दिव्यांगों का आवासीय स्कूल अभी शासन की लेटलतीफी की भेंट चढ़ा हुआ है। लगभग 2 माह पहले तहसील स्तरीय कर्मा महोत्सव कार्यक्रम के दौरान विधायक कुंवर निषाद की मांग पर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने दिव्यांगों के लिए आवासीय स्कूल को फिर से शुरू करने की घोषणा की थी। यह आवासीय स्कूल पहले समाज कल्याण विभाग के जरिए ही संचालित होता था। शिक्षा विभाग से भी कुछ सहयोग मिलता था। लेकिन धीरे-धीरे स्कूल संचालन दम तोड़ गया। जिसके बाद शाला प्रबंधन समिति ने भी हाथ खड़े कर दिए थे। इसके बाद कोई देखने वाला नही था। जिसके चलते संचालन लगभग बंद हो गया और अब इसकी और कोई देखने वाला भी नहीं है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने भी स्वयं 2 माह पूर्व इसकी घोषणा की थी। लेकिन अब तक उनकी घोषणाओं पर अमल नहीं हो पाया है। जिसके चलते अब भी जिले के दिव्यांगों का भविष्य अधर में लटका हुआ है। स्कूल से जुड़े हुए शिक्षक और बच्चे आज भी आस में बैठे हैं कि आज नहीं तो कल मुख्यमंत्री जो घोषणा किए है उस पर अमल होगा और हमें हमारा स्कूल पुनः चालू हालत में मिल पाएगा। लेकिन शायद अब यह सपना दूर ही नजर आ रहा है। अब देखने वाली बात होगी कि समाज कल्याण विभाग और शिक्षा विभाग सीएम के इस घोषणा को कितनी गंभीरता से लेते हैं।
जिले में एकमात्र है आवासीय स्कूल
जानकारी के अनुसार गुंडरदेही का कचांदुर में संचालित उक्त आवासीय स्कूल जिले में एकमात्र ऐसा संस्थान है जहां पर दिव्यांगों को पढ़ाई के लिए पूरी सुविधा मिलती है। यहां पर ब्रेल लिपि से पढ़ाई होती है दिव्यांगों खासकर दृष्टिहीन के लिए यहां पाठ्य सामग्री उपलब्ध है। उनके लिए सभी माहौल है जो उन्हें मिलने चाहिए ।जो दूसरे जिले में बाहर जाने पर मिलते हैं। लेकिन बालोद जिले में कचांदुर स्कूल में वह सभी सुविधाएं थी। लेकिन कहते हैं ना शासन के फंड के अभाव में आखिर हर चीज दम तोड़ जाती है, आखिर वही हुआ है दिव्यांगों के साथ। फंड के अभाव में स्कूल ज्यादा दिन नहीं चल पाए और न ही जिला प्रशासन ने भी इसे गंभीरता से लिया। जिसके चलते अब यहां तालाबंदी की स्थिति है। आज भी यहां ताला लटका नजर आ रहा है । नया शिक्षा सत्र शुरू हो गया है। लेकिन अब तक यहां बच्चों की पढ़ाई शुरू नहीं हो पाई है।
12 बच्चे पढ़ते थे यहां
इस स्कूल से जुड़े शिक्षक अरविंद शर्मा ने बताया कि वे खुद दृष्टिबाधित हैं और वे दृष्टिबाधित बच्चों को कंप्यूटर की शिक्षा पढ़ाते थे। इसके अलावा अन्य लोग भी मदद करते थे पर फंड के अभाव में स्कूल संचालन बंद करना पड़ा। जहां पिछले सत्र कोरोना काल से पहले लगभग 12 बच्चे थे। लेकिन वे अबअपने गांव के स्कूल में पढ़ते हैं। उन्हें जो वहां सुविधाएं आवासीय स्कूल में मिलनी चाहिए वह नहीं मिल पा रही है। उनकी वहां ब्रेल लिपि से पढ़ाई नही हो पाती है। जिसके चलते बच्चे समुचित लाभ नहीं ले पा रहे हैं। नतीजा सरकार से एक आस में बैठे है। 2 माह पहले जब मुख्यमंत्री तहसील स्तरीय कर्मा महोत्सव में गुंडरदेही आए थे उनकी घोषणा से उम्मीद जगी थी कि हमें फिर से स्कूल का लाभ मिलेगा। लेकिन अब तक मुख्यमंत्री की घोषणा पर विभाग के अधिकारी अमल करने को लेकर गंभीरता नहीं दिखा रहे हैं। जो विचारणीय प्रश्न है।
नेशनल स्तर तक पहुंचे हैं दिव्यांग
ज्ञात हो कि इस आवासीय स्कूल में पढ़ने वाले दिव्याग पढ़ाई तक सीमित नहीं है बल्कि खेल की विधा में भी वे नेशनल स्तर तक अपना नाम कमा चुके हैं। दृष्टिबाधित खेलों में जुडो हो चाहे अन्य खेल, यहां के बच्चे नेशनल स्तर तक अपना खिताब जीतकर कचांदुर व गुंडरदेही ब्लॉक और बालोद जिले का नाम रोशन कर चुके हैं। आज भी बच्चे अधूरी सुविधा के चलते आगे की पढ़ाई नहीं कर पा रहे हैं। क्योंकि स्थानीय स्कूलों में वह सुविधा नहीं है जो दिव्यांगों के स्कूल में मिलती है। जिसके चलते उनका भविष्य अधर में लटका हुआ है। मुख्यमंत्री की घोषणा के बाद से बच्चों को लगा था कि अपनी अधूरी पढ़ाई पूरी कर पाएंगे लेकिन अब तक सपना अधूरा है।
क्या कहते हैं अधिकारी
समाज कल्याण विभाग के उपसंचालक नदीम काजी का कहना है कि मुख्यमंत्री की घोषणा को अमल में लाने का प्रयास कर रहे हैं। संबंधित आवासीय स्कूल कचांदूर के संचालन के लिए शासन को प्रपोजल भेजा गया है। इसमें जल्द स्वीकृति की उम्मीद है। एक हफ्ते में स्कूल संचालन शुरू करने की तैयारी है। हम भी पूरा प्रयास कर रहें है कि इस शिक्षा सत्र में जल्द से जल्द दिव्यांगों का आवासीय स्कूल शुरू हो जाए।
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