कृषि विश्वविद्यालय के छात्रों ने चरोटा में किसानों को दिया मटका खाद बनाने का प्रशिक्षण, पढ़िए क्या होता है यह मटका खाद
बालोद। इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर से संचालित बीएससी कृषि चतुर्थ वर्ष के अध्यनरत छात्र छात्राओं ने रावे कार्यक्रम के अंतर्गत ग्राम चरोटा में किसानों और ग्रामीणजनों को मटका खाद , एवं वर्मी कम्पोस्ट खाद तैयार करने के बारे में प्रशिक्षण दिया और उनसे होने वाले लाभ के बारे में जानकारी दिया। इस दौरान कृषि महाविद्यालय भाटापारा के छात्र सूर्या ठाकुर विकाश साहू हिमांशु सहु तोषण कुमार कृषि महाविद्यालय कांकेर से प्रेरणा सिन्हा उद्यनिकी महाविद्यालय से भारती ठाकुर कृषि महाविद्यालय बिलासपुर से ऋषभ एवम बालोद कृषि विज्ञान केंद्र से अटैच सभी छात्र एवम ग्रामवासी उपस्थित थे। किसानों को मटका खाद बनाने की तकनीक से अवगत कराया गया। पढ़िए कैसे होता है इसका निर्माण, क्या है फायदे।
मटका खाद के फायदे :-
ये किफायती है। सभी जगह आसानी से बनाया जा सकता है | मटका खाद बनाने के लिए सामग्री गाँव में ही उपलब्ध होती है | खेत की उपजाऊ क्षमता एवं सूक्ष्मजीवों की संख्या में तीव्र विकास होता है| सही अंतराल में इस्तमाल से किसी भी अन्य खाद की आवश्यकता नहीं पड़ती|
जरूरी सामग्री:-
देशी गाय का गोबर 10 किलो
देशी गाय का मूत्र 10 लीटर
काला गुड (देशी) 500 ग्राम
किसी भी दल का आटा : 500 ग्राम
पुराना मटका : एक 1
बनाने की विधि :-
सबसे पहले गुड को थोड़े से गौमूत्र में मिला लें, एवं सुनिश्चित करें की गांठ न बची हो
इसके बाद दाल के आटे को थोड़े से गौमूत्र में मिला लें
इसके बाद सभी सामग्री को मटके में डाल के हांथ से से मिला लें।
सभी सामग्री मिल जाने के बाद लकड़ी के डंडे से 3 मिनट सीधी दिशा में एवं 3 मिनट उल्टी दिशा में घुमाएं।
मटके के मुंह को सूती कपडे से बांधकर छाव में 10 दिन के लिए छोड़ दें।
10 दिन के बाद मटका खाद तयार है
उपयोग करने का तरीका :-
उपरोक्त मटका खाद 200 लीटर पानी मे मिलाने के लिए पर्याप्त है , इसे फसलों के बीच या मेड पर 12-15 दिन के अंतराल में छिडकें
सिंचाई के लिए 200 लीटर प्रति एकड़
ये है सावधानी:
खाद बन जाने के बाद 2-3 दिन के अन्दर ही इसका इस्तमाल कर लें। ध्यान रखें कि जब खेत में पर्याप्त नमी हो तभी इसका छिडकाव करें।