सर्व आदिवासी समाज, सुकमा जिले के सिलगेर गांव में सैनिक कैम्प बनाये जाने का कर रहे विरोध,9 आदिवासी मारे जाने की पुष्टि

कॉर्पोरेट कंपनियों के नीतियों से आदिवासी इलाकों में प्राकृतिक संसाधनों लूट तेज हो रही है:-पूरन सिंह कश्यप

जगदलपुर:– सर्व आदिवासी समाज ने सुकमा जिले के सिलगेर गांव में सैनिक कैम्प बनाये जाने का पिछले तीन दिनों विरोध कर रहे आदिवासियों पर गोली चलाये, आंसू गैस के गोले छोड़े जाने तथा मारपीट किये जाने की तीखी निंदा की है और दोषी अधिकारियों के खिलाफ प्रभावी कार्यवाही करने की मांग की है। इस गोली चालन में 9 आदिवासियों के मारे जाने की पुष्टि आदिवासियों ने की है।
आदिवासी नेता पूरन सिंह कश्यप ने प्रेस विज्ञप्ति जारी कर कहा कि कांग्रेस – बीजेपी के बड़े-बड़े कॉर्पोरेटकम्पनियों के नीतियों के चलते आदिवासी इलाकों में प्राकृतिक संसाधनों की लूट तेज हो रही है ,क्योंकि इन आदिवासी क्षेत्रों में अनेक प्रकार के खनिज की मात्रा अधिक होने के कारण इन आदिवासी क्षेत्रों में सरकार ने फर्जी ग्रामसभा के माध्यम से आदिवासियों पर एक बंदूक धारी खड़ा कर जल ,जंगल और जमीन को लूटने का कार्य सरकार कर रही है इन आदिवासी इलाकों का सौंदयकरण आदिवासियों का अधिकारों की रक्षा के लिए नहीं बल्कि उनके अधिकारों के हनन और विरोध के लोकतांत्रिक अधिकारों के दमन के लिए हो रहा है ।आदिवासियों के विरोध प्रदर्शन को दबाने के लिए थाने पर नक्सली हमला बताए जाने तथा प्रदर्शनकारी नो ग्रामीण मृतकों को नक्सली प्रचारित किये जाने की भी भर्त्सना की है। सर्व आदिवासी समाज ने मृतक आदिवासियों को बीस लाख लाख रुपये तथा घायलों को दस लाख रुपये मुआवजा देने तथा उनका पूरा उपचार कराए जाने की भी मांग की है। पूर्व में ही आदिवासी समाज ने ग्रामीणों की मौतों को ‘राज्य प्रायोजित हत्याएं’ करार दिया है। कांग्रेस सरकार की कॉर्पोरेटपरस्त नीतियों के चलते प्रदेश के आदिवासी इलाकों में प्राकृतिक संसाधनों की लूट तेज हो रही है। आज बस्तर में हर पचास नागरिकों पर एक बंदूकधारी खड़ा है। बस्तर के इतने सैन्यीकरण के पीछे एकमात्र मकसद यही है कि बस्तर की जमीन पर कॉरपोरेटों के आधिपत्य को सुनिश्चित किया जाए। इन नीतियों के खिलाफ पनप रहे असंतोष को दबाने के लिए यह सरकार भी अपने पूर्ववर्ती भाजपा सरकार की तरह ही सैन्य समाधान खोज रही है, जो आम जनता को स्वीकार नहीं है। उन्होंने कहा कि इस क्षेत्र की जनता यदि कैम्प नहीं चाहती, तो शांति बहाली के लिए सरकार को सैन्य कैम्प हटा लेना चाहिए। पराते ने कहा कि पेसा और 5वीं अनुसूची के प्रावधान भी सरकार को इस इलाके में मनमाने तरीके से सैनिक बलों के कैम्प खोलने की इजाजत नहीं देते। उन्होंने कहा कि इस इलाके का सैन्यीकरण आदिवासियों के अधिकारों की रक्षा के लिए नहीं, बल्कि उनके अधिकारों के हनन और विरोध के लोकतांत्रिक अधिकारों के दमन के लिए हो रहा है। कब तक आदिवासियों को जंगल से खदेड़ने के लिए या प्रमोशन पाने के लिए फर्जी एनकाउंटर से मार दिया जाता है और फर्जी फर्जी मुठभेड़ कराने के बाद शिकायत की जाती है इन्ही टीम द्वारा इन्हें सही ठहरा दिया जाता है आखिर कब तक होंगी । इस घटनाक्रम में न्यायिक जांच होना चाहिए क्योंकि पुलिस और नक्सली के द्वारा आदिवासी ही मारा जा रहा है क्योंकि सरकार की मंशा यह है कि जल, जंगल और जमीन के क्षेत्र से आदिवासियों को भगाकर बड़े बड़े कॉर्पोरेट कंपनियों को फर्जी ग्रामसभा के माध्यम से देने का कार्य कर रही है । चाहे वह पूर्ववर्ती सरकार बीजेपी हो या वर्तमान की सरकार कांग्रेस हो क्योंकि दोनों आदिवासियों हक और अधिकार के बारे में नहीं सोच रही है क्योंकि दोनों सरकार की एक ही मंशा की है आदिवासियों को जल ,जंगल और जमीन से बेदखल करना। सिलगेर मैं आदिवासियों को कुत्ते कुत्ते बिल्ली की तरह मार दिया जा रहा है लेकिन बस्तर के सभी आदिवासी विधायको अभी भी कुछ कह नही रहे । क्योंकि इन आदिवासी विधायकों को आदिवासियों समाज से कोई लेना देना नही है।छत्तीसगढ़ गृहमंत्री और मुख्यमंत्री के द्वारा कुछ बयान अभी तक नहीं आया है और जितने भी जनप्रतिनिधियो को सिर्फ कैमरे के सामने भी अपना दुख दर्द बयां कर लेते हैं जैसे कैमरा से निकल जाते हैं, दुख – दर्द को भूल जाते हैं। वर्तमान की कांग्रेस सरकार ने जन्म घोषणा पत्र में कहा था कि नक्सली समाधान के लिए नीति तैयार की जाएगी और वार्ता शुरू करने के लिए गंभीरतापूर्वक प्रयास किए जाएंगे। प्रत्येक नक्सली प्रभावित पंचायतों को सामुदायिक विकास के लिए एककरोड़ ₹ दिए जाएंगे जिससे विकास की के माध्यम से उन्हें मुख्यधारा से जोड़ा जा सकता है। यह जन घोषणा पत्र सिर्फ कागजों में बना है।

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