आवेश में ना ले कोई निर्णय, कोई भी कदम उठाने से पहले सज्जनों से ले सलाह,रावण की दुर्दशा का कारण यही उपेक्षाएं थी
महापुरुषों के उपदेशों को बुद्धि में नहीं बल्कि हृदय में स्थान देना शुरू करिए, आने लगेगा बदलाव
बालोद। सहजानंद जी चातुर्मास में प्रवचन श्रृंखला के अंतिम दिन महावीर भवन में विराजित परम पूज्य श्री ऋषभ सागर जी ने लोगों को रामायण के प्रसंग के जरिए रावण द्वारा की गई तीन गलतियों से सीख लेने की सलाह दी। उन्होंने कहा हमें मनुष्य के रूप में एक विशेष उपलब्धि प्राप्त हुई है। यह उपलब्धि तभी सार्थक है जब हम महापुरुषों के उपदेशों को अपने बुद्धि में नहीं बल्कि हृदय में स्थान देंगे। जब तक महापुरुषों के उपदेश बुद्धि तक सीमित है जीवन में परिवर्तन नहीं आ सकता। जब हम देखते हैं कि उन पापी पुरुषों के जीवन में भी परिवर्तन आ गए हैं लेकिन हमारे में नहीं आ पाए। हम यही भूल करते हैं कि हर चीज हमारे बुद्धि में स्टोर कर रहे हैं। हमारे हृदय में उपदेश को स्टोर नहीं करते हैं। हम थोड़ी भी जगह अगर हृदय में दे तो हमारा जीवन बदलने लगेगा। इसलिए महापुरुषों की जीवन प्रसंग वाणी हमें प्रेरणा देती है कि हमें अपने जीवन को सुधारना है तो उपदेशों को अपने हृदय में प्रवेश देना होगा। अभी तो हमारे हृदय के दरवाजे बंद है। इसलिए हम देखते हैं कि दूसरों को समझाते हुए हमें हर एक उपदेश याद आते हैं लेकिन स्वयं जीते हुए हमें यह कोई उपदेश काम नहीं आते। बुद्धि स्वार्थ के बारे में सोचती है, हृदय हित के बारे में। अंतरात्मा हमें गलत करने से रोकते हैं। लेकिन हम अंतरात्मा की आवाज को नकारते हैं। इसलिए हम उपदेश सुन तो लेते हैं लेकिन इन उपदेशों को अपने हृदय में धारण करने में नाकामयाब हो रहे हैं। इस पर विचार करें। रामायण और महाभारत के प्रसंग भी इसी तरह से प्रचलित है। इन महापुरुषों के जीवन हमारे जीवन को जीने की कला सिखाते हैं। सभी महापुरुषों के जीवन जीने की कला सिखाती है। जिसे ये कला आती वह आनंद शांति से जी सकते हैं। इसलिए प्रयास करें कि दूसरी चीज़ सीखने के साथ-साथ महापुरुषों के चरित्र के माध्यम से उपदेश के माध्यम से जीवन जीने की कला को सीखें। महापुरुषों की तरह हमारी दृष्टि और सोच आएगी तभी हम आनंद से जी पाएंगे। रामायण के अंतिम युद्ध की प्रसंग के बारे में बताया कि रावण जब अधमरा अवस्था में थे तो श्री राम ने लक्ष्मण से कहा कि जाओ रावण से राजनीति की कला सीख कर आओ क्योंकि भविष्य में हमें भी राज्य संभालना है। जब लक्ष्मण रावण के पास पहुंचे तो थोड़ी देर बाद रावण ने आंखें बंद कर दी। उस पर लक्ष्मण ने कहा कि वह तो मुझसे आंखें फेर लिया। राम का कथन था कि तुम जब रावण के पास गए तो उसके सिर के पास खड़े थे और उसे आदर पूर्वक नहीं बल्कि तिरस्कार पूर्वक बात कर रहे थे। इसलिए उसने कोई सलाह नहीं दी। इसलिए जीवन में हमेशा याद रखना चाहिए कि अगर हम किसी से सलाह या राय लेना चाहते हैं तो उसके चरणों के पास जाए ना कि सिर के पास। उनका आदर करें सम्मान करें ना कि तिरस्कार। यह कितनी गहरी बात रामायण में छिपी है कि जिसके साथ इतना बड़ा संघर्ष था, राम जी उससे भी राजनीति की कला सीखना चाहते थे और रावण की इस कला का आदर करते थे। क्या हमारी जिससे अनबन है क्या हम उसके पास जाएं और उसे सलाह लेना पसंद करेंगे? क्या और वह व्यक्ति सलाह दे भी दे तो क्या वह सही सलाह देगा क्या? लेकिन रावण का व्यक्तित्व ऐसा नहीं था। वह कुछ देर बाद सुमित्रानंदन लक्ष्मण से कहते हैं कि राज्य को संचालित करना तो बाद की बात है लेकिन जीवन को संचालित करने के लिए तीन सुझाव देना चाहता हूं। जिसमें वे कहते हैं चूक होने के कारण ही व्यक्ति जीवन को हार जाता है।
रावण ने दिए थे इस तरह से लक्ष्मण को सलाह
पहली सलाह उन्होंने दी की जब भी गलत या खराब करने का भाव आए तो उसे अमल पर लाने से पहले किसी समझदार, भले, सज्जन व्यक्ति से एक बार सलाह जरूर ले लेना। क्योंकि आज तुम यह मेरी हालत देख रहे हो इसी शिक्षा की मेरे जीवन में उपेक्षा के कारण है। मेरे भीतर जब सीता के अपहरण की दुर्भावना जगी तो मैंने उसे अमल में लाने से पहले किसी सज्जन से पूछा भी नहीं। अगर पूछ लेता तो शायद मेरी यह स्थिति नहीं होती। मैं उन्हीं लोगों से पूछा जो मेरे चापलूस थे और मेरी गलत चीजों में भी सहयोग देते थे। अगर मैं किसी सज्जन से पूछता तो जरूर वह इस बारे में रोक देते। सज्जन व्यक्ति हमें गलत मार्ग में जाने में ब्रेकर का काम करते हैं। मैंने इसी बात की उपेक्षा की और मैंने उन्हीं से सलाह ली जिन्होंने मुझे गलत सलाह दिया । हम भी हमारे अतीत को देखें। हम गलत करने में देरी करते नहीं तुरंत कर लेते हैं। हम यह सोचते नहीं की कई बार सलाह ले की ना ले? हमें भी रावण की इस गलती से सीख लेनी चाहिए और जब भी मन में ऐसा कुछ विचार आए तो एक बार किसी समझदार व्यक्ति से सलाह जरूर ले। रावण ने दूसरी सलाह दी की जब भी हो कोई भी परिस्थिति आए आवेश में आकर कभी भी किसी सज्जन व्यक्ति का अपमान नहीं करना ना कोई कार्य करना। मेरी इस स्थिति में दूसरी सलाह की भी उपेक्षा है। मैंने विभीषण से सलाह नहीं ली ,जो सज्जनों में श्रेष्ठ माने जाते हैं और मैंने सीता का अपहरण कर डाला। विभीषण मेरे पास समझाने आए कि मुझसे एक गलती हो गई रुक जाओ सीता जी को लौटा दो। कुल पर तो कलंक लग चुका है। पर मैं अहंकार और आक्रोश में था। मैंने आक्रोश में आकर सलाह की उपेक्षा कर दी। इसलिए वह विभीषण चाह कर भी मुझे समझा नहीं पाया और मैंने गलत कार्य किया और अच्छे व्यक्ति को भी दूर करके इस तरह दो अकार्य किया। रावण लक्ष्मण से कहते हैं आज जो मृत्यु हो रही है आप दोनों का पराक्रम तो है ही साथ ही विभीषण का मेरे द्वारा किया गया अपमान है, इस कारण से मेरा इतना बड़ा नुकसान हुआ। इसी तरह हमें भी देखना चाहिए कि आवेश में जाकर हमने क्या-क्या बिगाड़ रखा है। हम किसी से सलाह लेना पसंद नहीं करते हैं। अच्छी बात को किसी को जाकर बताना भी पसंद नहीं करते हैं ।हमें लगता है कि हमें अपमान कर दिया जाएगा। सबको पता है कि किस में किसका हित है लेकिन कोई बोलने को तैयार नहीं होता।तीसरी सलाह में रावण ने लक्ष्मण से कहा कि आवेश में आकर कभी कुछ ना करें । आवेश में किया हुआ कार्य हमेशा गलत होता है। आवेश भूतकाल को देखकर आता है आवेश को रोकना है तो भविष्य काल को देखिए । जब क्रोध का विचार आया तो हम क्रोध कर बैठते हैं लेकिन क्षमा या कुछ अच्छा करने का विचार आता है तो हम उसे टाल देते हैं। रावण लक्ष्मण जी से कहते हैं कि जब भी अच्छा कार्य करने का अवसर आए तो कभी भी विलंब न करना। पत्नी मंदोदरी ने मुझसे कहा भी था कि अगर मैं युद्ध जीत भी जाता हूं तो सीता मेरी होने वाली नहीं है। जब आपकी हो ही नहीं सकती तो क्यों आप उसे लौटा नहीं देते। इससे युद्ध भी अटक जाएगा और मेरा सुहाग भी रह जाएगा। मैंने मंदोदरी से कहा कि मुझे सीता को तो लौटाना ही है लेकिन राम को जीतकर लौटाऊंगा और ससम्मान सीता को वापस लौटाऊंगा। मैंने सिर्फ मैं अच्छा विचार जो मेरे भीतर है कि मैं सीता को लौटा दूंगा लेकिन उसे मैंने टाल दिया। इसलिए जब भी अच्छा भाव मन में आए उस पर विलंब ना करें। गलत चीज को हम तुरंत कर देते हैं और अच्छी चीज को टालते रहते हैं।