पुरखा पुरातन “परब” : प्रकृति के जोहार -हरेली तिहार “
हरेली सावन महिना के अम्मउस तिथि म मनाए के चर्चित लोक परब आय। जेला देश के आन -आन भाग मा अलगे -अलग नाव ले जाने जाथे जइसे – मध्यप्रदेश म जीवती, अउ छत्तीसगढ़ मा हरेली। इहि ला भारत म ‘ हरियाली’ कहिथे।
मानुष सभ्यता संस्कृति के गोठ बात ल करन त आज ले हजारों बरस पहिली मानुष जंगल पहाड़ के खोढ़रा मा राहत रहिन। पेट ल बोजे खातिर कांदाकुशा, फर अउ जंगली जीव के शिकार करके मांस ल तको खा लेवय। एकर बढ़िया उदाहरण आदिमानव ले समझे जा सकथे। बाद म इहि मनुष मन जंगल ला छोड़के मईदान म बस्ती बसाके रहे लागिन । बउरे लइक जनावर ल पालिस पोसिन। तहाँ ले भुइयाँ मा किसान जुग के सुरुवात होइस। बड़अकन बीजा मन के फसल तइय्यार होइस। भुइयाँ मा खाय के (खाद्य श्रृंखला) सिरजन होगे। मनखे मन कांदा कुशा, मांस ल छोड़के बनस्पति अनाज ल खायके सुरू करदिन।
जब सावन महिना मा फसल के पऊधा तइय्यार होइस, प्रकृति हर चारोमुड़ा लहलात हरियर होगे।तब हर कोई के मन मनरम नजारा ल देखकेे झूमे नाँचे लागिस अऊ एक तिहार बरोबर माहोल बनगे। जेला हमन आज हरेली कहिथन।
हरेली प्रकृति ले जुरे तिहार आय। ये मउसम म भुइयाँ अपन साज सिंगार करथे।किसान अपन आप मा _बिज्ञान, भूगोल, गणित इतिहास, कला, संसकिरती, भूत,भविष्य, वर्तमान ल लेके चलथे। आधुनिक जुग मा बिज्ञानिक अपन अनुसंधान बुता ले खुश होथे, वइसने किसान उन्नत फसल ल देखकेे बड़ मंगन होथे।
हरेली” फसल के काम- बुता मा सहियोग देवईया मनके सेती वंदन बंदन सरधा – भक्ति भाव समरपित करेके तिहार आय। किसान अपन गरबपूर्ण प्राकृतिक संस्कीरिति, प्रथा ,परम्परा के जड़ ला दमदम्हा बनाके पीढ़ी ले पीढ़ी एक दुसर तक पहुंचाय के जुम्मेदारी ल निभाथे। जेन आजो भी सरलग चलत हाबे।
हरेली के ये तिहार मा किसान भाई फसल म काम देवइय्या कृषि यंत्र, अउजार, हथियार ल पानी मा सूघ्घर धोके बिधि – बिधान पूर्वक सेवा अर्जी करथे। किसान के मितान राऊत भाई उपास रहिके एक दिन पहिली जंगल ले दसमूर अउ पताल कुम्हड़ा ले आथे।
हरेली के दिन बिहिनिया ले खईरखा डार म सबो किसान एकट्ठा होथे। किसान अपन पशुधन ल दवई बरोबर महुआ के लड्डू, अण्डा पान म निमक, पिसान के लोंदी अउ कंदमुल ला पकाके खवाथे। जेकर ले पेट म होवइया क्रीमी रोग भगा जाथे। दसमूर पताल कुम्हड़ा ल आपस मा बांटके खाथे।
ये बुता करके अपन पुरखा पुरातन के सच बात ल दोहराय के सोर संदेश देथे कि, हमर पुरखामन अइसने कांदाकुशा, फर,फूल ल खाके बाढ़े रिहिन हे। किसान अपन घर मा जाके नवा मुरूम ले चौड़ी बनाके अस्त्र- शस्त्र ल रखथे। चाऊर गुर के चीला रोटी, हुम धूप, अगरबत्ती, नरियर चघाके अपन परिवार के जिनगी के सुघराई बर मंगल कामना करथे। लोगन अपन पूरतीनुसार रोटी पीठा बनाके खाथे अउ खवाथे।
ये मउसम मा बिखहर कीरा- मकोरा मनके जनम (प्रजनन) धरे के रहीथे। रोग भगाय, स्वच्छता संदेश देहेे खातिर मंझनिया के बाद पहाटिया(राउत) हर घरो घर जाके नीम डारा,दसमूर डंगाली ल आघू मुहाटी मा खोंचथे। जेकर ले अनचिन्हार (सुक्ष्म) जीव घर भीतर नई जावाय। लोहार धातु के खिला ढोक के टोटका टारथे, केंवट हर मछरी फाँदा के सूत बांधथे।
हरेली तिहार ले गेड़ी के शुरूवात तको होथे। लकड़ी, बांस के बने गेड़ी बरसा ऋतु मा गोड़ म होवइया रोग – राई जइसे -केंदवा, बिखहर जीव जंतु ले बाँचे के उदिम करे जाथे। येला रोग निवारण अउ खेल यंत्र के रूप म बऊरे जाथे। गांव के परम्परागत खेल मा – कबड्डी, फुगड़ी,, डंडा जइसन खेल एमा समा जाथे। महिला मन क्षेत्रीय लोक गीत मनके गायन करथे। हरेली प्रकृति परमुख लोक परब आय। ये दिन किसान प्रकृति ले अच्छा ले अच्छा, अधिकतम अनाज पईदा होयके अर्जी बिनती करथे।
किसान ये भुइयाँ के बिन कहे बोले (अघोषित) भगवान आय, जेनहर अपन खांध म मानुष संग जीवजन्तु ल भोजन देय के बीड़ा उठाए रखे हे। ये भाव के निर्वहन येमन जुग – जुग (सदियों), ले करत आवत हे।
हरेली “हर कोई ल सुख समृद्ध बनाके,आपसी मनमुटाव टारके भाईचारा के संग रहे के संदेश देथे।
लेखांकन मदन मंडावी
ग्राम -ढारा डोंगरगढ़