सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले का स्वागत, मुस्लिम महिलाएं भी मांग सकती हैं पति से गुजारा भत्ता : शाहिद खान
बालोद। सुप्रीम कोर्ट ने तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं के हित में विगत दिनों अहम फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा कि अब तलाकशुदा मुस्लिम महिलाएं सीआरपीसी की धारा 125 के तहत याचिका दायर कर अपने पति से भरण पोषण के लिए भत्ता मांग सकती हैं। सुप्रीम कोर्ट के फैसले का अल्पसंख्यक मोर्चा के प्रदेश महामंत्री शाहिद खान ने स्वागत किया है।
राजीव गांधी के कार्यकाल में बने विवादित कानून को झटका:
उन्होंने बताया कि, सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के कार्यकाल में बने एक बेहद विवादित कानून को बड़ा झटका दिया है। हर औरत को गुजारा भत्ता मिलना ही चाहिए। यह उसका संवैधानिक अधिकार है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले से देश की मुस्लिम महिलाओं को उनका वाजिब अधिकार मिल सकेगा।
पहले सिर्फ 3 महीने भत्ते का नियम:
गौरतलब हो कि मुस्लिम महिलाओं को महज इद्दत की अवधि तक ही गुजारा भत्ता मिलता है। आमतौर पर इद्दत की अवधि महज तीन महीने होती है। दरअसल, इस्लामी रवायत के अनुसार जब किसी मुस्लिम महिला के पति का देहांत हो जाता या उसे तलाक दे दिया जाता है, तो ऐसी सूरत में उसे तीन महीने तक शादी की इजाजत नहीं होती है। इस दौरान, इन तीन महीनों तक उसे पति द्वारा गुजारा भत्ता दिया जाता है, लेकिन इसके बाद उसे यह भत्ता नहीं दिया जाता। लेकिन अब इस पूरे मामले में सुप्रीम कोर्ट ने हस्तक्षेप कर मुस्लिम महिलाओं के लिए गुजारा भत्ता का मार्ग प्रशस्त किया है।
वर्तमान मोदी सरकार पर मुस्लिमों का विश्वास गहरा:
छत्तीसगढ़ अल्पसंख्यक मोर्चा के प्रदेश महामंत्री शाहिद खान ने बताया कि, केंद्र की मोदी सरकार पर मुस्लिमों का विश्वास काफी गहरा है। असल में यह बदलता भारत है, जहां मुस्लिम महिलाएं अपने हक के लिए आवाज बुलंद करने लगी हैं। संवैधानिक अधिकारों पर मजबूती से बात कर रही हैं। मुस्लिम धर्मगुरुओं के साथ हिंदू संत भी इस फैसले को ऐतिहासिक बताते हुए इसकी सराहना कर रहे हैं।
गुजारा भत्ता भीख नहीं अधिकार है:
उनका कहना है कि गुजारा भत्ता भीख नहीं अधिकार है। जब लड़की अपना घर छोड़कर दूसरे घर में जाती है और उसे संवारती है। उसे अपना घर बनाती है। अचानक उसे जब वहां से निकाल दिया जाता है तो उसके पास जगह नहीं होती कि वह कहां जाए। गुजारा भत्ता भीख नहीं, बल्कि हर शादीशुदा महिला का अधिकार है और सभी शादीशुदा महिलाएं इसकी हकदार हैं, फिर चाहे वे किसी भी धर्म की हों।