मदर्स डे पर पढ़िए विधायक संगीता सिन्हा से खास बातचीत: अनसुनी प्रेरक दिनचर्या से जानिए कैसे घर परिवार और कुर्सी संभाल रही,,,,,
विधायक ने कहा : मुझे टिकट मिला तो मैंने चुनाव लड़ने से पहले बच्चों से लिया था परमिशन, बच्चों ने किया मुझे पूरा सपोर्ट, आज इस मुकाम में उनकी भी है भूमिका
दीपक देवदास, गुरुर। मदर्स डे पर हमने क्षेत्र की विधायक संगीता सिन्हा से खास बातचीत की। वे एक विधायक होने के साथ गृहिणी और एक मां भी हैं और रोजाना वे अलग-अलग किरदारों को जीती हैं। परिवार, समाज सबका उन्हें अनुभव है। ऐसे में हमने मदर्स डे पर उनके जरिए जानने की कोशिश की कि उनके व्यक्तिगत जीवन में बच्चों के प्रति ममता का स्थान कहां है। राजनीतिक क्षेत्र में सक्रिय होने के साथ उस ममता को किस हद तक निभा पा रहे हैं। उनके बच्चे अनय सिन्हा आठवी और अनन्या सिन्हा दसवीं कक्षा में है। दोनो एक हॉस्टल में रहते हैं। हमने उनसे कुछ सवाल भी किए थे। जिनके उन्होंने अपने अंदाज में जवाब भी दिए। उनके जवाब दिल छू लेने वाले थे। पढ़िए उन्होंने क्या-क्या बातें कहीं?
विधायक संगीता सिन्हा ने कहा जब मुझे टिकट मिला तो मैंने बच्चों से ही कहा था कि बच्चों मुझे टिकट मिली है। चुनाव अगर जीती तो मैं आप लोगों को समय नहीं दे पाऊंगी। आप लोग तैयार है या नहीं? मैंने ऐसा पूछ कर बच्चों से ही परमिशन लिया था तो बच्चों ने ही मुझे कहा था कि आप लड़िए, हम आपके साथ हैं। बच्चों के प्रोत्साहन से ही मैंने चुनाव लड़ा और उनके सहयोग से मुझे जीत भी हासिल हुआ। मैं विधायक बनी, विधायक बनने के बाद मेरे बच्चे हॉस्टल में पढ़ते हैं। जब उन्हें समय मिलता है या कोई भी कार्यक्रम फंक्शन है, शॉपिंग है उसके लिए मैं स्पेशल छुट्टी लेकर जाती हूं।
लोग मुझे बच्चों के साथ शॉपिंग करते देख होते हैं हैरान, मैं कहती हूं: मैं विधायक से पहले इनकी मम्मी हूं
मैं उन्हें शॉपिंग करवाती हूं। इस दौरान जब लोग मुझे देखते हैं तो आश्चर्यचकित होते हैं तो मैं लोगों को कहती हूं कि मैं विधायक से पहले इनकी मम्मी हूं। अपने बच्चों के साथ क्यों नहीं घूमूंगी। उन्हें पूरा समय देती हूं। बच्चे बहुत खुश रहते हैं। मुझे दुख उस वक्त होता है जब रविवार को बच्चों को मोबाइल में बात करने की अनुमति रहती है और अगर उस दिन मैं कहीं कार्यक्रम में हूं तो मैं उनसे बात नहीं कर पाती। इस दौरान मुझे काफी दुख होता है। उस समय मुझे काफी अंदर से दर्द महसूस होता है। मुझे महसूस होता है कि मैं एक मां हूं लेकिन विधायक कार्यकाल के कारण मैं उनसे बात नहीं कर पा रही हूं।
जनता के लिए भी हम हैं मां-बाप
फिर मुझे लगता है कि मेरे पब्लिक भी मेरे बच्चे हैं। मेरे जनता के लिए भी मुझे अपने मां का रूप भी उन्हें दिखाना है। जनता भी हमें एक मां-बाप के रूप में देखते हैं। फिर मैं अपने आप को समझाती हूं और कोशिश करते हैं कि मैं आगे पीछे बच्चों से बात करूं।
उत्कृष्ट विधायक बनने में बच्चों का भी योगदान
विधानसभा सत्र के दौरान बच्चे एक महीने की छुट्टी के लिए आए हुए थे। उस समय बच्चों ने जो सहयोग किया उसी के कारण मैं उत्कृष्ट विधायक चुनी गई। मैंने एक भी दिन बच्चों के साथ ठीक से नही रह पाई। सुबह 9:00 बजे निकल जाती थी रात को 12:00 बजे आती थी। कई दिन बच्चे मेरा चेहरा देख नहीं पाते थे। जब मैं जाती थी तो बच्चे उठे नहीं रहते थे। आती थी तो बच्चे सोए रहते थे। उस समय मैंने महसूस किया कि बच्चों का जो सहयोग था और उन्हीं के प्यार और प्रोत्साहन के कारण से मैंने उत्कृष्ट विधायक का खिताब जीता है। उस उत्कृष्ट विधायक के खिताब का श्रेय मैं जनता और अपने बच्चों और पति को देती हूं। घर परिवार के बिना सहयोग से हम आगे नहीं बढ़ सकते। एक वर्किंग वुमन बिना पति और बच्चों, सास-ससुर के सहयोग से आगे काम कर ही नहीं सकती है। सबका सहयोग रहता है तभी वह महिला आगे बढ़ती है।
आज भी घर पर मैं खुद भी खाना बनाती हूं
मैं विधायक बन गई हूं लेकिन आज भी मेरा काम खाना बनाना है। मैं अपने घर का शेड्यूल पालन करती हूं। मैं आज की ही बात बता रही हूं सुबह से ही मैंने बच्चों के लिए नूडल्स बनाई हूं फिर पालक पनीर की सब्जी बनाई और उनको अभी खाना खिला कर ही मैं घर से निकली हूं। जो मेरा काम है उसे मैं 1% भी कम नहीं करती हूं। उसके लिए मुझे बस अपना टाइम मैनेज करना पड़ता है। मैं अपना किचन नही छोड़ी हूं। चाहे विधायक बने चाहे मंत्री बनो चाहे और ऊंचे पद में जाऊं जो किचन का काम करती हूं वह हमेशा करती रहूंगी। मुझे यह अच्छा लगता है। मुझे यह शोभा भी देता है।
मां और बच्चे के बीच का रिश्ता भक्त और भगवान जैसा
मां और बच्चों के बीच रिश्ते भगवान और भक्त जैसा होता है। लोग सच्चे प्यार के लिए तरसते हैं लेकिन एक मां ही है जो अपने बच्चों को कभी बद्दुआ नहीं दे सकती। चाहे बच्चे कितने भी बुरे क्यों ना हो । लेकिन मां के मुंह से हमेशा दुआ ही निकलता है और अगर भगवान के रूप में देखना है तो अपने मां बाप की पूरी सेवा करिए। आप उन्हें खुश रखे। वह आपको इतनी दुआ देंगे कि वह दुआ ही आपके काम आएगी।
बड़ों का आशीर्वाद ही हमें आगे बढ़ाता
आज मैंने प्रत्यक्ष रूप से देखी हूं कि मेरे जीवन में खासतौर से सास-ससुर किरण देवी सिन्हा और बोहरण सिन्हा, मायके से जानकीबाई और दुलारी राम सिन्हा (मां-बाप) ने मुझे इतने अच्छे संस्कार दिए कि उसी संस्कार के साथ मैं ससुराल आई और मैंने अपने सास-ससुर में भी वही देखा। मैंने अपने सास-ससुर को सिर्फ 10% प्यार किया और उन्होंने 100% वापस किए ।जब भी मैं थोड़ा सा सेवा करती थी तो उनके बदले मुझे ढेरों आशीर्वाद मिलते थे। उनका ही आशीर्वाद था कि आगे चलकर में खूब नाम रोशन करूंगी और आज मैं वह प्रत्यक्ष रूप से देख रही हूं। यह मेरे ससुर का विशेष आशीर्वाद है। जो आज विधायक बनी हूं। क्योंकि बाबू जी ने मुझे इतने आशीर्वाद दिया है कि हर चीज में समर्थन करते थे। वे सास-ससुर के रूप में अपवाद हैं। मेरे सास ससुर का मुझसे इतना प्रेम रहा कि मैं आज भी बहुत खुश हूं। कुछ लोग कहते हैं कि सास-ससुर से मां-बाप जैसा प्यार नहीं मिलता लेकिन मुझे तो बहुत प्यार मिला है। जो संस्कार मुझे मां-बाप से मिले थे उसी संस्कार पर चलते हुए सास-ससुर और परिवार की सेवा की हूं।
बच्चों को सही रास्ते पर लाने मुख्यमंत्री ने किया अच्छा काम, संस्कृति, शिक्षा और संस्कार से जुड़ने लगे
आज के दौर में मैं देखती हूं कि जितने भी बच्चे हैं स्थिति खराब थी। लोगों की सोच भी खराब होती जा रही थी। नए जमाने में लोग ढल रहे थे। लेकिन मैंने ये भी महसूस किया कि जब से मुख्यमंत्री भूपेश बघेल जी सत्ता में आए हैं, हमारी सरकार बनी है। तब से छत्तीसगढ़ में कल्चर को उभारने का जो काम किया गया है, संस्कृति को उजागर करने का काम किया गया है इसमें कहीं ना कहीं युवा और बच्चे भी संस्कारित हो रहे हैं। क्योंकि अगर हम छत्तीसगढ़ की संस्कृति रोटी पीठा की बात करें तो लोगों में आस्था आई है। बच्चों में भी लगाव हुआ है। बीच में ऐसी स्थिति थी कि बच्चे मोबाइल को छोड़ते नहीं थे। अब सच्चाई यह भी है कि हम कहीं भी जाते हैं तो बच्चे रास्ते में गिल्ली डंडा खेलते रहते हैं और बाटी भौरा खेलते रहते हैं। हर युवा, बच्चे, बुजुर्ग भी पूछ परख कर रहे हैं। सीएम भूपेश बघेल ने युवा साथियों को भी जोड़ कर राजीव युवा मितान क्लब से जुड़कर संस्कार को आगे बढ़ाया है। यह बहुत सराहनीय कार्य है। अब हमारी संस्कृति वापस आ गई है। आज के बच्चों में काफी अच्छे से सुधार हुआ है। बच्चे छत्तीसगढ़ की कला, संस्कृति और संस्कार को समझ कर आगे बढ़ रहे हैं।